Saturday, February 22, 2025
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उत्तराखंड के भैरव देवता | पौराणिक भैरव और लोकदेवता भैरू में अंतर | प्रसिद्ध भैरव मंदिर

उत्तराखंड के भैरव देवता : उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, लोकदेवताओं और पौराणिक शक्तियों की भूमि रही है। इस क्षेत्र में भैरव देवता को अत्यधिक मान्यता प्राप्त है। लेकिन क्या उत्तराखंड के भैरू देवता वही पौराणिक भैरव हैं जिनका उल्लेख तंत्रशास्त्र और हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है? इस लेख में हम इस रहस्य का विश्लेषण करेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि उत्तराखंड के भैरव देवता का धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्वरूप क्या है।

भैरव देवता: पौराणिक परंपरा और तांत्रिक महत्व :

भैरव को हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता माना जाता है, जो शिव के गणों में प्रमुख हैं। तंत्रशास्त्र में भैरव को भूत, प्रेत, बेताल और योगिनियों का स्वामी माना गया है। वे कालभैरव के रूप में समय के अधिपति और रक्षक देवता भी हैं।

भैरव के स्वरूप और शक्ति

  1. शिव के समान शक्ति: शिव को भूतनाथ कहा जाता है, और भैरव को भी समान शक्तियों से युक्त माना गया है।
  2. आठ अष्टभैरव: तांत्रिक परंपरा में अष्ट भैरवों – गणनेत्र, चन्द, काय, उन्मत्त, नय, कपाली, भीषण और शंकर – को शिव की नगरी का रक्षक माना गया है।
  3. भैरव की शक्तियां: इन आठ भैरवों की अपनी-अपनी शक्ति (शक्ति स्वरूपिणी) होती हैं, जैसे ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, काली आदि।

कुत्तों के साथ भैरव –

पौराणिक कथाओं में भैरव का वाहन कुत्ता बताया गया है, जो उनके संरक्षक स्वरूप को दर्शाता है।

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उत्तराखंड में भैरव देवता की मान्यता :-

उत्तराखंड में भैरव देवता को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में भैरव की उपस्थिति अत्यधिक व्यापक है।

उत्तराखंड के भैरव देवता : लोक आस्था में भैरव की भूमिका :

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भैरव को क्षेत्रपाल देवता (भू-देवता) के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि उचित पूजा-अर्चना करने पर भैरव अपने क्षेत्र के लोगों, पशुओं और कृषि को सुरक्षा प्रदान करते हैं। उनकी पूजा में रोट (विशेष प्रकार की रोटी) चढ़ाई जाती है, और यह विधि भूमिया देवता की पूजा से मेल खाती है। गढ़वाल और कुमाऊं में शिव के अवतार के रूप में भैरव की प्रतिष्ठा रही है।

उत्तराखंड के प्रमुख भैरव मंदिर और सिद्धपीठ –

उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों पर भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनकी महत्ता लोककथाओं और ऐतिहासिक मान्यताओं से जुड़ी है।

उत्तराखंड  के प्रमुख भैरव स्थल –

  1. केदारनाथ भैरव मंदिर: केदारनाथ से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर भैरव के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है।
  2. हटकुणी भैरव (वासर पट्टी, टिहरी): इसे सिद्धपीठ माना जाता है और इसका मंदिर केदारनाथ शैली में निर्मित है
  3. गड़गांव भैरव (टिहरी): इसे गढ़वाल क्षेत्र का प्रमुख भैरव मंदिर माना जाता है।
  4. अल्मोड़ा के आठ भैरव मंदिर: काल भैरव, बटुक भैरव, बाल भैरव, साह भैरव, गढ़ी भैरव, आनंद भैरव, गैर भैरव और खुटकौनिया भैरव।
  5. धुनिया-मुनिया भैरव (श्रीनगर, गढ़वाल): यह भी एक प्रसिद्ध भैरव स्थल है।
  6. बड़ियारगढ़ भैरव: यह बड़ियार गांव के ऊंचे पहाड़ों में स्थित दो भैरव मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है ।
  7. नैनीताल का बटुक भैरव मंदिर : घोड़ाखाल स्थित इस मंदिर को गोलू देवता के नाम से भी जाना जाता है।
    भक्त अपनी समस्याओं को चिट्ठियों में लिखकर मंदिर में टांगते हैं, और मनोकामना पूर्ण होने पर घंटी चढ़ाते हैं।
  8. भैरवगढ़ी और लंगूरगढ़ी : समुद्र तल से 2400 मीटर ऊपर, उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित भैरव गढ़ी मंदिर भगवान शिव के 14वें अवतार काल भैरव को समर्पित है। यह मंदिर कीर्तिखाल गांव के पास स्थित है, जहाँ काल नाथ भैरव देवता की नियमित पूजा होती है। मान्यता है कि भैरव देवता को काली वस्तुएँ प्रिय हैं, इसलिए प्रसाद में मंडुवे का आटा चढ़ाया जाता है। यह मंदिर धार्मिक आस्था और लोकसंस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र है।

यहाँ विशेष अवसरों पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है, और भैरव देवता से जुड़ी अनेक लोककथाएँ और मान्यताएँ प्रचलित हैं। उत्तराखंड के प्रसिद्ध भैरवगढ़ी मंदिर से जुड़ी एक दिलचस्प कथा है। मान्यता है कि महाभारत काल के बाद हनुमान जी ने हिमालय में विश्राम किया, और उनके पीछे-पीछे श्री भैरवनाथ जी नेपाल से उत्तराखंड आए।

भैरवगढ़ी से जुड़ी एक घटना यह है कि बखरोड़ी गाँव के रामा बकरोड़ी की गाय-भैंसें एक चीड़ के पेड़ पर दूध छोड़ देती थीं। जब गुस्से में आकर उसने वह पेड़ काट दिया, तो उसमें से खून निकलने लगा। उसी रात उसे सपने में भैरव देवता के दर्शन हुए, जिन्होंने उसे वहाँ मंदिर बनाने का आदेश दिया। तब से यहाँ भैरवगढ़ी मंदिर की पूजा की जाती है।

भैरव देवता से जुड़ी लोककथाएं और रहस्यमय मान्यताएं :

भैरव की उत्पत्ति की कथा :

एक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती ने क्रमशः चंद्रशेखर और तारावती नामक मानव रूप में जन्म लिया, जिनसे वैताल और भैरव नामक पुत्रों की उत्पत्ति हुई। इनकी मुखाकृति बंदरों जैसी थी, और शिव ने इन्हें अपने गणों का नायक बना दिया।

गोपेश्वर का रहस्यमयी भैरव :

गोपेश्वर में एक भैरव देवता को विशाल शिला के नीचे दबाकर रखा गया है। यह कहा जाता है कि वह जिसे देख लेता था, उसे मोहित कर अपने पास बुला लेता था। इस डर से स्थानीय लोगों ने एक सिद्ध पुरुष की सहायता से उसे शिला के नीचे कैद कर दिया।

भैरव देवता की पूजा और अनुष्ठान :

भैरव अष्टमी (मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी): इस दिन उड़द के तले हुए बड़े (वड़ा) भैरव को अर्पित किए जाते हैं और बाद में कुत्तों को खिलाए जाते हैं।
शिव मंदिरों में भैरव की प्रतिष्ठा: उत्तराखंड के शिव मंदिरों में पहले भैरव की स्थापना की जाती है और शिव पूजा से पूर्व उनकी पूजा अनिवार्य मानी जाती है।
नाथ संप्रदाय में भैरव: भैरव को नाथ संप्रदाय के प्रमुख आराध्य देवता के रूप में पूजा जाता है और गुरु गोरखनाथ को भी भैरव का ही अवतार माना गया है।

क्या उत्तराखंड के भैरव और पौराणिक भैरव एक ही हैं ? :-

उत्तराखंड में भैरव देवता की पूजा और मान्यता पौराणिक भैरव की अवधारणा से काफी भिन्न है। जहां पौराणिक भैरव शिव के गण, तंत्र-सिद्ध देवता और कालचक्र के नियंत्रक माने जाते हैं, वहीं उत्तराखंड में वे क्षेत्रीय रक्षक देवता (लोकदेवता) के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

भैरव की स्थानीय विशेषताएं: उत्तराखंड में भैरव मुख्य रूप से क्षेत्रपाल के रूप में पूजे जाते हैं, जिनकी पूजा विधि भूमिया देवता की पूजा से मिलती-जुलती है।
लोककथाओं और मान्यताओं में भिन्नता: उत्तराखंड में भैरव देवता की कहानियां विशिष्ट रूप से स्थानीय इतिहास और भौगोलिक परिस्थितियों से प्रभावित हैं।

निष्कर्ष :-

उत्तराखंड के भैरव देवता पौराणिक भैरव से जुड़े अवश्य हैं, लेकिन उनकी पहचान एक लोकदेवता के रूप में अधिक है। यह क्षेत्रीय भक्ति और आस्था का एक अद्भुत उदाहरण है, जहां पौराणिक देवता लोकसंस्कृति में घुल-मिलकर एक नए रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं।

भैरव की पूजा न केवल धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाती है। चाहे वह केदारनाथ के समीप भैरव मंदिर हो, गोपेश्वर का रहस्यमयी भैरव, या फिर अल्मोड़ा के आठ भैरव मंदिर – यह सभी उत्तराखंड में भैरव देवता की व्यापक स्वीकृति और महिमा को प्रमाणित करते हैं।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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