ठठोरी देवी – उत्तराखंड को देवभूमि कहते हैं ,उत्तराखंड ही नहीं सम्पूर्ण हिमालयी भू भाग देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। हिमालयी भू भाग के परत प्रत्येक भू भाग प्रत्येक कण कण में देवों का वास है। यहाँ दैवीय दिव्य शक्तियों का वास हमेशा रहता है। और समय समय पर ये अपनी उपस्थिति और अपनी दिव्यता का प्रमाण देती रहती हैं। आज उत्तराखंड के माता के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं ,जिसे पहाड़ के छोटे छोटे बच्चों ने अपनी बाल श्रद्धा से अपनी बाल समस्याओं के निवारण हेतु स्थापित किया और माँ भी बाल आग्रह को मिथ्या न कर उनके आग्रह को स्वीकार करके उनकी कामना पूर्ण की।
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के नैनीडांडा विकासखंड में ग्राम जमरिया और दिगोलिखाल के पास स्थित है माँ ठठोरी देवी का मंदिर। इस मंदिर की स्थापना किसी ऋषिमुनियों ने नहीं या पौराणिक काल में नहीं हुई ,बल्कि क्षेत्र के स्कूली बच्चों ने की थी। जिन्होंने इस बात को सिद्ध किया कि उत्तराखंड का कण कण देवभूमि है और यहाँ हर जगह पर दैवीय शक्तियों का वास है। इस मंदिर की स्थापना सन 1975 में ग्राम विनोदू बाखल के स्कूली बच्चों ने की थी। कहते हैं उस समय माँ ठठोरी देवी से बच्चों ने जो भी मनोकामना की थी माँ ने वे सभी मनोकामनाएं पूर्ण की थी।
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ठठोरी देवी मंदिर से जुडी कहानी –
इस मंदिर की स्थापना से एक रोचक कहानी जुडी हुई है। हम सबको पता है बच्चे मन के सच्चे होते हैं और इंसान तो, इंसान भगवान् भी उनकी इच्छा पूर्ण करने से अपने आप को नहीं रोक सकते। ऐसा ही वाकया हुवा इन बच्चों के साथ। बच्चों के मन की तरह उनकी मनोकामनाएं भी बड़ी बाल सुलभ होती हैं। यहीं बाल सुलभ मनोकामनाएं माँ ठठोरी देवी मंदिर की स्थापना का कारण बनी।
हुवा यू कि जब बिनोदु बाखल के बच्चे जब किन्गोड़ीखाल स्कूल जाते थे तो बीच में ग्राम जमरिया पड़ता है । इस गावं में एक भयंकर कुत्ता रहता था जो बच्चों पर आते जाते समय भौकता था उन्हें काटने को दौड़ता था। जब बच्चे इस कुत्ते से बहुत परेशान हो गए ,तब उन्होंने ठठोरी ढैया में दो पत्थर रखकर उसपे फूल चढ़ाकर प्रार्थना की ,” हे माँ ये कुत्ता हमे बहुत तंग करता है ,और काटने भी आता है ,यदि इसको आज बाघ ले जायेगा तो हम रोज आपकी पूजा करेंगे।
बच्चों की मनोकामनाएं भी बच्चों जैसी लेकिन माँ बच्चों के कोमल ह्रदय से निकले इन शब्दों को कैसे झुठला सकती थी ,उन्होंने बच्चों की मनोकामना मान ली और उस रात वास्तव में उस कुत्ते को बाघ ले गया। अगले दिन बच्चे वहां से निकले तो उनपर कुत्ता नहीं भौका ! बच्चों को बड़ा आश्चर्य हुवा। उन्होंने उस कुत्ते के बारे में पता किया तो पता चला कि उसे रात को ही बाघ ले गया था ,बच्चे बड़े खुश हुए।
कुछ समय बाद बच्चे बड़ी कक्षाओं में चले गए। बड़ी कक्षाओं में परीक्षा के दबाव में पढाई ज्यादा होती थी ,अध्यापक डाटते और मारते भी थे। उनमे से एक अध्यापक बड़े खतरनाक थे वे बहुत मारते थे। बच्चों ने उनके डर से स्कूल जाना बंद कर दिया था। एक दिन बच्चों को अचानक अपने बचपन की कुत्ते वाली बात याद आ गई।
तब वे फिर पहुंचे ठठोरी ढैया पर वहां उन्होंने माँ से प्रार्थना की कि यदि उन मारने वाले गुरूजी की बदली हो जायेगी तो हम हमेशा आपकी पूजा करेंगे। माँ बच्चो के प्रति दयालु थी , दो तीन दिन बाद पता चला कि उन गुरु जी का तबादला हो गया है। और बच्चों की मनोकामना पूर्ण हुई और बच्चों ने उन पत्थरों को मंदिर का रूप देना शुरू कर दिया।
वैष्णवी रूप में विराजित है माँ यहाँ –
कहते हैं आगे भी बच्चों की मनोकामनाएं पूरी होती रही। बड़े होने के बाद उन्ही बच्चों की पहल पर इसे एक बड़े मंदिर का रूप दे दिया गया। जिस पर्वत पर यह मंदिर स्थित है उस पर्वत का नाम ठठोरी ढैया है इसलिए इस मंदिर का नाम ठठोरी माता मंदिर रख दिया गया। इसमें विराजित माँ दुर्गा के वैष्णवी रूप की पूजा होती है ,यहाँ किसी तरह की पशुबलि नहीं चलती है। यहाँ प्रत्येक अप्रेल में पूजा और भंडारे का आयोजन होता है।
संदर्भ –
इस कहानी का संदर्भ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जानकारियां और घसेरी यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध कहानी का यह वीडियो है। ठठोरी माता की कहानी वीडियो में यहाँ देखें –
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