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सिख नेगी, उत्तराखंड गढ़वाल की एक ऐसी जाती जो दोनो धर्मों को मानती है

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किसी ने सत्य कहा है, धर्म तोड़ने का नही जोड़ने का काम करता है। और इसका सटीक उदाहरण हैं, उत्तराखंड में बसे सिख नेगी जाती के लोग।

उत्तराखंड की चमोली में बसा सिखों का सबसे बड़ा तीर्थ हेमकुंड साहिब, प्राचीन काल उत्तराखंड में पहाड़ी समुदाय के बीच सिख समुदाय की बसावट का स्पष्ट सबूत है। इसी सबूत को पुख्ता करते हैं, उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल के मलास्यु पट्टी का पीपली गांव,और बिजौली और हलूनी गांव जहां सिख नेगी परिवार रहते हैं। इसके अलावा पौड़ी गढ़वाल के अन्य कुछ गांव और कोटद्वार में भी सिख नेगी रहते हैं। पिपली में और अन्य गांवों में इनके गुरुद्वारे भी हैं।

कौन है सिख नेगी? और गढ़वाल में कैसे बसे?

प्राचीन काल मे जब गुरुनानक जी महाराज गढ़वाल क्षेत्र में यात्रा के लिए आये तो, तीलू रौतेली के दादा जी गढ़वाल के गोर्ल थोकदार ने उन्हें अपने क्षेत्र में रहने के लिए स्थान दिया। गुरु नानक जी महाराज ने यहाँ पिपली गावँ के पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया । तदोपरांत गुरुनानक ने रिठाखाल में अपना निवास बनाया, वहां आज भी मीठे रीठे का पेड़ है। इसी रीठे के पेड़ की वजह से यहां का नाम रिठाखाल पड़ गया।

सिख नेगी
पिपली गांव का गुरुद्वारा

गुरुनानक जी के साथ गढ़वाल में उनके कुछ अनुयायी भी आये, जो बाद में यही सहपरिवार बस गए। हो सकता पहले ये केवल अपना धर्म और नियम मानते हों लेकिन धीरे धीरे , ये गढ़वाल की रीति रिवाजों और परंपराओं में रच बस गए, और पहाड़ी रिवाज और हिन्दू धर्म को भी मानने लगे। लेकिन इन्होंने अपना धर्म भी नही छोड़ा। ये आज भी गुरुनानक देव का झंडा बुलंद करते हैं। इन गांवों में गुरुद्वारे भी है। जहाँ ते अरदास करते हैं। और गुरुनानक जयंती और अन्य गुरु पर्वों को बड़े हर्षोल्लास के साथ मानते है । इसके साथ साथ ये हिन्दू धर्म को भी बराबर मानते हैं। हिन्दू देवी देवताओं की विधिवत पूजा अर्चना करते हैं और पहाड़ी रीति रिवाजों को भी उतने ही उत्साह के साथ मनाते हैं। इनकी शादी विवाह भी क्षेत्र के अन्य हिन्दू गढ़वाली राजपूतों के साथ होती है। कुलनाम से नेगी होने और सिख धर्म मे और हिन्दू धर्म मे मिश्रित आस्था रखने के कारण इन्हें सिख नेगी कहा जाता है । इनको बिना पगड़ी वाले सिख या सहजधारी सिख भी कहते हैं।कहते हैं ये सहजधारी सिख, मुंडन संस्कार के अलावा सनातन धर्म के पूरे पंद्रह संस्कारों को पूर्ण विधि विधान से करते हैं।

गुरुनानक जयंती पर इन पहाड़ के इन गुरुद्वारों में, भव्य मेले का आयोजन भी करते है। और समय समय पर झंडा आरोहण भी किया जाता है। इस प्रकार ये लोग दोनो धर्मों में बराबर आस्था रखते हैं।

सिख नेगी समाज के लोग, न तो पगड़ी पहनते हैं और न ही सिख धर्म के पांच ककार – कंघा, कड़ा, कच्छा, कृपाण और केस का पूरी तरह पालन करते हैं।

एक अन्य जानकारी के अनुसार, प्राचीन समय मे दयाल सिंह नाम के सरदार जी किसी काम से गढ़वाल में आये, और यहॉ के होकर रह गए। धीरे-धीरे उनकी वंश बढ़ता गया और गढ़वाल में सिंह नेगियों की जनसंख्या बढ़ती गई।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इन्होंने पंजाब से हिंदी गुरु ग्रन्थ साहब ला कर रखा हुव है। यहां ग्रंथी भी और सेवादार भी हैं। नेगी सिखों की सिख धर्म पर अटूट श्रद्धा है। फिर भी उन्होंने कभी सरकार से उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मांगा और न ही कभी गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी में जुड़ने की इच्छा दिखाई ।

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Note: इस लेख की फोटोज सोशल मीडिया के सहयोग से संकलित किये गए हैं।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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