Home संस्कृति लोकगीत सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन भगवान गणेश को समर्पित कुमाऊनी होली गीत।

सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन भगवान गणेश को समर्पित कुमाऊनी होली गीत।

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रंग एकादशी से उत्तराखडं के कुमाऊं में रंग भरी खड़ी होलियां शुरू हो गई हैं।एकदशी से होलिकोत्सव तक खड़ी होलियों की धूम रहती है। होली की शुरुवात प्रथम पूज्य सिद्धिविनायक गणेश जी की होली सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन से होती है। आज अपने इस पोस्ट में भगवान गणेश जी को समर्पित कुछ प्रसिद्ध कुमाऊनी होली गीतों का संकलन प्रस्तुत कर रहें हैं।

सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन –

सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन,
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
गौरी को नन्दन, मूसा को वाहन ।
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
लाओ भवानी अक्षत चन्दन,
पूजूँ मैं पहले जगपति नन्दन ।
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
गज मोतियन से चौक पुराऊँ,
अर्घ दिलाऊँ पुष्प चढ़ाऊँ ।
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
डमरू बजावै संभु-विभूषन,
नाचै गावैं भवानी के नन्दन ।
होली खेलें गिरजापति नन्दन।

सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन

तुम सिद्धि करो महाराज, होली के दिन में –

सिद्धि के दाता होली गीत के बाद भगवान गणेश को समर्पित एक और कुमाऊनी होली गीत है। जिसका नाम है तुम सिद्धि करो महाराज। यहाँ देखिये  इस गीत के बोल ( lyrics )-

तुम सिद्धि करो महाराज, होली के दिन में।
गणपति गौर महेश मनावें, पर-पर मंगल काज,
होली के दिन में तुम..
राधा कृष्ण सकल बृजवासी, राखो सबकी लाज।
राम लछीमन भरत शत्रुघ्न, रघुकुल के सिरताज।
ब्रह्मा विष्णु महेश मनावें, घर-घर गावें फाग।
ब्रह्मा विष्णु सदा प्रतिपालक, खग दुःख को
इन्द्रादिक सुर कोटि तैंतीसा, राखो सबकी लाज।
बालक वृद्ध सब होली खेलें, खेलत सब बृज नारा।
पाचों पांडव होली खेलें, खेलत द्रोपति नार।
राम जी खेलें लछीमन खेलें, खेलत सीता नारि (माई) |
जगदम्बा नव दुर्गा देवी, राखो हमरि लाज।
अबीर गुलाल के थाल सजे, घर-घर उड़त गुलाल ।

गिरजा सुत गणपति विघ्न हरो –

विघ्न हरो तुम सगुन करो गिरजा सुत गणपति विघ्न हरो ।
लम्बोदर गज बदन विनायक मस्तक चन्दन तिलक पड़ो।
चार भुजा मूसे की सवारी, विघ्न अमंगल देखि डरो।
हाथ में अंकुश शंख विराजै, श्वेत बदन एक दन्त खड़ो |
सुर नर मुनि सब, ध्यान धरत हैं, नहि गणपति बिन काज करो।
सुख में दुःख में और विपत में, नाम सुमिर से होय भलो।।
विनती करत हैं अरज करत हैं, विपत हमारी दूर करो ।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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