पिछले दो हफ्तों से उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में एक गीत तहलका मचा रहा है— पंचाचूली देश ! यह गाना सोशल मीडिया पर खूब ट्रेंड कर रहा है, और लोग इसके ऊपर रील्स बनाकर इसे वायरल कर रहे हैं। लेकिन इस गीत के पीछे छिपे दर्द और गहराई को शायद ही हर किसी ने समझा हो। यह गाना न सिर्फ एक सांस्कृतिक प्रस्तुति है, बल्कि उत्तराखंड के वासियों के दिल के दर्द को भी अभिव्यक्त करता है। इसे लिखा और गाया है गणेश मर्तोलिया ने, जिन्होंने अपनी साथी गायिका रुचि जंगपांगी के साथ मिलकर इस गीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।
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पंचाचूली देश गीत का अनोखा आकर्षण: धुन और लिरिक्स –
पंचाचूली देश हर मायने में अलग है। इसकी धुन हिमालयी हवाओं की तरह मन को सुकून देती है, जबकि इसके बोल उत्तराखंड के पलायन और बिछोह की मार्मिक कहानी सुनाते हैं। गीत के लिरिक्स को ध्यान से सुनने पर वहां की जन्मभूमि से बिछड़ने का दर्द साफ झलकता है। यह गाना सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी लिए हुए है।
लिरिक्स का गहरा अर्थ –
पहले अंतरे में गणेश मर्तोलिया कहते हैं: “आसमानी तारा टिमटिम टिमटिम, हिमाली डाणा सफेद, हिमाल हमरी जनमभूमि, मरण होलो परदेश…” ये पंक्तियाँ हिमालय को जन्मभूमि के रूप में याद करते हुए यह दुख व्यक्त करती हैं कि जीवन के अंतिम क्षण कहीं परदेश में बीतेंगे। यह पलायन की विवशता को दर्शाता है—या तो आजीविका की तलाश में, या फिर स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मैदानों की ओर पलायन। कई बार गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए पहाड़ी लोग शहरों की ओर रुख करते हैं, लेकिन अक्सर यह यात्रा उनके जीवन के अंत का कारण बन जाती है।
दूसरे अंतरे में दर्द और गहरा हो जाता है: “काली गंगा कल कल, गोरी गंगा छल, छूटी गयो घरबार, आँसू ढलकी ढल…”*
यहां गीतकार ने घर-बार छोड़ने की पीड़ा को बयान किया है। काली और गोरी गंगा की कलकल बहती धारा भी इस बिछोह को शांत नहीं कर पाती। पहाड़ों की बदहाल व्यवस्था और रोजगार के अभाव ने लोगों को मजबूर कर दिया है कि वे अपनी जड़ों से दूर चले जाएं, और इस दर्द के आंसू उनकी आंखों से बहते हैं।
सांस्कृतिक और संगीतमय विशेषता –
गीत की शुरुआत “हिमाली हावा सुरूरू, बगन्या पानी तुरुरू… पंचाचूली देश गुरुरू” से होती है, जो हिमालयी संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाती है। यह पंक्तियाँ सुनने वालों को पहाड़ों की गोद में ले जाती हैं, जहां पंचाचूली पर्वत श्रृंखला गर्व का प्रतीक है। गीत में सुख-दुख को साथ निभाने की बात—”सुख दुख ज़िन्दगी को, संग संग कांटूलो, आधा तिमी, आधा हैमी, हिटी जूँलो बाटो”—एकता और साझेदारी का संदेश देती है।
संगीत समीक्षा: एक साहसिक प्रयास –
उत्तराखंड में आमतौर पर डीजे पर बजने वाले गीतों में नैन-नक्श या फैशन की बातें हावी रहती हैं, जहां गहरे अर्थ वाले गीत अक्सर दब जाते हैं। लेकिन “पंचाचूली देश” ने इस ट्रेंड को तोड़ने की कोशिश की है। गणेश मर्तोलिया जैसे नए कलाकार लंबे समय से इस तरह की सार्थक रचनाओं पर काम कर रहे हैं, और यह गाना उनकी मेहनत का फल है। चांदनी इंटरप्राइजेज ने इस प्रोजेक्ट पर पैसा और जोखिम उठाया, जिसके लिए उनका धन्यवाद करना बनता है। रुचि जंगपांगी की मधुर आवाज और गणेश की भावपूर्ण प्रस्तुति ने इसे और प्रभावी बनाया है।
हालांकि, इस गीत को व्यापक पहचान दिलाने के लिए अभी और प्रयास की जरूरत है। वर्तमान ट्रेंड में यह गाना भले ही रील्स के जरिए वायरल हो रहा हो, लेकिन इसके पीछे के दर्द को समझने वाले दर्शकों की संख्या बढ़नी चाहिए।
पंचाचूली देश कुमाऊनी गीत लिरिक्स –
हिमाली हावा सुरूरू,
बगन्या पानी तुरुरू
हिमाली हावा सुरूरू,
बगन्या पानी तुरुरू
तिमी हैमी नैसी जूँला
पंचाचूली देश गुरुरू,
पंचाचूली देश गुरुरू…
आसमानी तारा टिमटिम टिमटिम,
हिमाली डाणा सफेद,
हिमाल हमरी जनमभूमि,
मरण होलो परदेश…
काली गंगा कल कल,
गोरी गंगा छल
छूटी गयो घरबार,
आँसू ढलकी ढल
सुख दुख ज़िन्दगी को,
संग संग कांटूलो,
आधा तिमी, आधा हैमी,
हिटी जूँलो बाटो
गीत यहाँ सुनें :
निष्कर्ष
पंचाचूली देश सिर्फ एक गाना नहीं, बल्कि उत्तराखंड के पलायन और पहाड़ी जीवन की एक मार्मिक गाथा है। यह गीत हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने और प्रकृति से जुड़ाव को महसूस करने का संदेश देता है। गणेश मर्तोलिया और रुचि जंगपांगी की यह रचना निश्चित रूप से प्रशंसा की हकदार है, और उम्मीद है कि यह भविष्य में और लोगों तक पहुंचकर उनके दिलों को छूएगी।
लेखक परिचय-
इस दिल छू लेने वाली समीक्षा को लिखा है सोमेश्वर, उत्तराखंड के निवासी श्री राजेंद्र सिंह नेगी जी ने, जिनके पास पहाड़ों के लिए कोमल हृदय है। उन्होंने परदेस की नौकरी छोड़कर गांव में स्वरोजगार को अपनाया है। उनके होमस्टे के साथ-साथ “गांव वाला” नाम से एक सुंदर ब्लॉग भी है, जो उनकी जड़ों से जुड़ाव और ग्रामीण जीवन को बढ़ावा देने की भावना को दर्शाता है।
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