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नौला का अर्थ क्या है?
नौला उत्तराखंड में घरनुमा पानी के श्रोत या बावड़ी को कहते हैं। उत्तराखंड में नौले का निर्माण एक खास वस्तुविधान के अंतर्गत किया होता है। प्राचीन काल में पहाड़ो में घरों के आसपास जो भूमिगत जल श्रोत होता था ,उसे वही महत्त्व दिया जाता था, जैसे मंदिरों को दिया जाता था। मंदिरों के वस्तुविधानों की तरह नौलों को भी खास वास्तु विधान बनाया जाता था। मंदिरों के गर्भगृह की तरह नौलों का भी गर्भग़ृह और दो या चार खम्भों पर आधारित वितान हुवा करता था। गर्भगृह में मजबूत तराशे हुए पत्थरों से उल्टे यञकुंड अर्थात नीचे से ऊपर को बढ़ती चौड़ाई में सीढ़ीयुक्त जलकुंड बनाया जाता था। सीढ़ियों के प्रस्तरों को इस प्रकार जोड़ा जाता है ,कि पानी उनकी दरारों से रिझ कर कुंड में इकट्ठा होता रहे। वर्गाकार या आयताकार इन नौलो के कुंड के ऊपर दोनों तरफ बड़े बड़े पटाल लगा कर, कपडे धोने और नहाने के लिए अलग अलग व्यवस्था होती है। और बैठने के लिए चबूतरों की व्यवस्था होती है। इसकी की छत को , पहाड़ी घरों शैली में पत्थरों से ढलवा छत के रूप में आच्चदित कर दिया जाता था। प्रवेशद्वारों के खम्भों पर पुष्पों , बेलों या देवआकृतियों से अलंकृत किया जाता था। कुछ नौलों के वितानों पर देवाकृतियो और कमलदल फूलों का अंकन था। नौले के माथे पर गणेश जी का अंकन लगभग सभी नौलों में किया जाता था। चन्द्रिका युक्त वितानों को सामान्यतया पटाल से ही आच्छदित करते थे।
इनकी शुद्धता को अक्षुण रखने के लिए जलदेवता के रूप में ,शेषशायी विष्णुभगवान की प्रतिमा को स्थापित किया जाता था। कुछ में आकर्षक सूर्यप्रतिमाओं से सुसज्जित हैं। कुछेक नौलों में ब्रह्मदेव की स्थापना भी मिलती है। गणेश भगवान् की स्थापना युक्त नौले उत्तराखंड में बहुताय मिलते हैं। नौलों के स्तम्भों पर द्वारपाल, अश्वरोही , नृत्यांगनाएं ,कलशधारिणी , सर्प और पशु पक्षियों की मूर्तियों का अंकन मुख्यतः होता था। जैसे की हमने इस लेख में बताया है कि ,अल्मोड़ा के स्यूनारकोट नौले में सरस्वती माँ और भगवान विष्णु के दशावतारों का अंकन विशेष है। नौलों के आस पास, पीपल ,सीलिंग जैसे धार्मिक महत्त्व के पेड़ लगाए जाते थे।
उत्तराखंड में नदी तटों से दूर ,आवासीय गावों में इस प्रकार के नौले बहुताय पाए जाते हैं। इनमे से कई नौले ऐसे हैं , जो अपनी खास वास्तुशैली के लिए प्रसिद्ध हैं। इनमे से मुख्यतः चम्पावत का एक हथिया नौला ,अल्मोड़ा के पास का स्यूनराकोट का नौला ,चम्पावत का नागनौला , गंगोलीहाट का जान्हवी नौला और चम्पावत का ही बालेश्वर परिसर का नौला , अपने खास वस्तुविधान के लिए प्रसिद्ध है।
उत्तराखंड के नौलों का इतिहास
शोधकर्ता डॉ मोहनचंद तिवारी जी के अनुसार , बागेश्वर जिले के गडसर गांव में स्थित का बद्रीनाथ नौला ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे प्राचीन माना जाता है। बताया जाता कि कत्यूरी शाशकों ने इस नौले का निर्माण ७वी शताब्दी में किया था। जलविज्ञान के सिद्धांतों पर इस नौले का निर्माण किया गया है। इसलिए यह आज भी जल से परिपूर्ण रहता है। उत्तराखंड के अधिकतर नौलों का निर्माण कत्यूर और चंद राजा,ओं के शाशन काल में हुवा था। चम्पावत के बालेश्वर मंदिर का नौला ,सांस्कृतिक विरासत से संपन्न माना जाता है। इस नौले की स्थापना १२७२ ईसवी में राजा थोरचंद ने की थी। और राजा कुर्मचन्द ने सन १४४२ में इस नौले का जीर्णोद्वार कराया था। चम्पावत का एक हथिया नौला भी सांस्कृतिक महत्व का नौला है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण एक हाथ वाले शिल्पी ने किया था। इसके अलावा रानीधारा का नौला ,पंथ्यूरा नौला ,तुलारमेश्वेर नौला ,द्वाराहाट का जोशी नौला ,जान्हवी नौला गंगोलीहाट और डीडीहाट का छनपाटी नौला व् अल्मोड़ा का भंडारी नौला और पल्टन बाजार का सिद्ध नौला अपने आप में उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति को समेटे हुए है।
स्यूनराकोट का नौला , भारत सरकार ने राष्ट्रीय महत्त्व का प्राचीन स्मारक घोषित ( Syunarakot ka naula ) –
उत्तराखंड अल्मोड़ा के 500 वर्ष पुराना स्यूनराकोट के नौले को ,भारत सरकार ने राष्ट्रीय महत्त्व का प्राचीन स्मारक घोषित किया है। उत्तराखंड और अल्मोड़ा जिले के लिए यह गर्व का विषय है। देखरेख के आभाव में यह ऐतिहासिक नौला धीरे -धीरे नष्ट हो रहा था। अब भारत सरकार इसको राष्ट्रीय महत्त्व का प्राचीन स्मारक घोषित करके इसका संरक्षण सुनिश्चित करेगी
अल्मोड़ा से कौसानी वाली रोड पर मुमुछिना से लगभग आधा किलोमीटर दूर पंथ्यूड़ा गांव में स्थित है यह ऐतिहासिक नौला। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह नौला १४वी शताब्दी का कत्यूरी काल में निर्मित नौला बताते हैं। और कुछ इतिहासकार इसे १५ वी या १६वी शताब्दी का मानते हैं। अर्धमण्डपाकार तल वाला यह नौला उत्तरमुखी है। कत्यूरी काल में बना यह स्यूनराकोट का नौला एक बेजोड़ शिल्पकला का अनोखा नमूना है। यहाँ भगवान विष्णु के दशावतारों का चित्रण के साथ महाभारत काल के दृश्य उल्लेखनीय हैं। स्यूनराकोट के नौले में हंस पर आरूढ़ वीणावादिनी सरस्वती और गणेश जी एवं उपासिकाओं द्वारा पूजित गजलक्ष्मी की आकृतियों का अलंकरण किया गया है। पुरातत्वविदों के अनुसार सम्भवतः इस नौले में परिक्रमा की परम्परा रही होगी। इसलिए यह इसको चारों तरफ से खुला रखा गया है। हलाकि पहाड़ों की परम्पराओं में नौले सदैव पूजनीय रहें हैं।
लेख संदर्भ –
- उत्तराखंड ज्ञान कोष
- पुस्तक ‘जल संस्कृति ‘
- डॉ मोहनचंद तिवारी जी का शोधपरख लेख
- स्यूनराकोट के नौले का समाचार हेतु आज के समाचार पत्र
- नौले के फोटो – हिमालयी क्षेत्रों में जल संरक्षण को समर्पित Naula Foundation facebook page
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