मलयनाथ स्वामी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के लोकदेवता हैं। यह उत्तराखंड के कुमाऊं के पूर्वी क्षेत्र सीरा एवं अस्कोट के लोकदेवता हैं। इनका मंदिर डीडीहाट के नजदीक सीराकोट दुर्ग के पुराने खंडहरों के बीच स्थित है। मलयनाथ देवता के बारे में कहा जाता है कि मलयनाथ सम्भवतः कोई मल्ल राजकुमार था। इनके मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ ब्राह्मणों का प्रवेश निषिद्ध है।
मलयनाथ स्वामी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पूजा केवल क्षत्रिय और जागर गान करने वाले करते हैं। इनकी जागर चार दिन की होती है , जिसे चौरास कहते हैं। मलयनाथ स्वामी मंदिर पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर दूर स्थित है।
यह मंदिर समुद्रतल से लगभग 1725 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ सीराकोट की सूंदर पहाड़ियों के नयनाभिराम दर्शन होते हैं। मलयनाथ स्वामी मंदिर सदियों से लोगो की आस्था का केंद्र रहा है। भक्त बताते हैं कि यहाँ आकर सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य सफल होती है।
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मलयनाथ स्वामी की कहानी –
मलयनाथ स्वामी की कहानी कुमाऊं के अन्य लोकदेवता गंगनाथ देवता और भवलनाथ देवता से मिलती जुलती है। इनकी जागर गाथा में बताया जाता है कि ये छिपुलाकोट की रानी भाग्यश्री को देख कर उसे पाने के लिए जोगी बन गए थे। तंत्र मन्त्र की शक्ति से उससे मुलाकात भी होती रहती थी। कहते हैं एक बार ये अपनी प्रेमिका रानी भाग्यश्री को लेकर सीराकोट को आ रहा था तो ,बाइस छिपुलुओं ने मिलकर मलयनाथ स्वामी और उनकी गर्भवती प्रेमिका रानी भाग्यश्री को मार डाला। तत्पश्यात ये प्रेतयोनि को प्राप्त हो गए और तबसे इन तीनो का जागर लगता है और तीनो अवतरित होते हैं।
एक अन्य कहानी के अनुसार छिपुलकोट की रानी के प्यार में या उसे पाने के लिए ये जोगी बन गए थे। और इन्होने अपनी तंत्र शक्ति से उसे पा भी लिया था। कहते हैं ये रानी भाग्यश्री को अपनी तंत्रशक्ति से भगा कर ले आये थे। बाद में इन्होने विवाह भी किया था और इनसे एक असुर नाम का पुत्र भी हुवा था।
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