Home उत्तराखंड की लोककथाएँ लछुवा कोठारी और उसके बेटों के किस्से, कुमाउनी लोक कथा

लछुवा कोठारी और उसके बेटों के किस्से, कुमाउनी लोक कथा

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कुमाऊं में एक जगह का नाम है, बाराकोट, उसके पास कोठयार गावँ में एक लछुवा नाम का आदमी रहता था। लछुवा के सात बेटे थे। और सभी सात बेटे एक से बढ़कर एक मूर्ख थे। लछुवा कोठारी के बेटों के कई किस्से मशहूर हैं। उनमें से कुछ किस्से आज आपके सामने प्रस्तुत करते हैं। कहते हैं उनके कोठयार गावँ में कभी धूप नहीं आती थी। एक पर्वत सारे गावँ को ढक देता था। एक दिन लछुवा कोठारी के बेटों ने पर्वत को खोदने की ठानी, पर्वत खोदते, खोदते कई दिन बीत गए पर्वत टस से मस नही हुवा। फिर उन्होंने यह काम छोड़ कर , धूप सेकने के लिए और जाड़े से बचने के लिए माल भाबर चले गए, और साथ मे अपने गाय, बछिया समान भी ले गए। छः महीने बाद जब वो माल भाभर से वापस आये ,घर के नजदीक पहुचकर उनमें से एक भाई को याद आयी कि उनकी माँ के पास घाघरा नही है, तो माँ के लिए घाघरा ले जाया जाय ।यह विचार सभी भाइयों को उत्तम लगा, तब उनमें से एक ने कहा कि माँ कि नाप का पता कैसे चलेगा? उसके बाद सभी भाई एक चीड़ के पेड़ पर, अपने अपने अनुसार माँ की नाप बताने लगे। ऐसा करते करते उन्होंने पूरा दिन बिता दिया,और शाम को उनको खबर मिली कि उनकी माँ मर गई है।

लछुवा कोठारी

इसके बाद जब वे सातों भाई,अपनी माँ की चिता को अग्नि देने जा रहे थे तो, उनमें से एक भाई ने अपनी जेब से भट्ट का दाना निकाला और वो नीचे गिर गया। वह भाई बोला, पहले मुझे मेरा भट्ट का दाना ढूंढ कर दो, फिर जाएंगे माँ को अग्नि देने। भट्ट का दाना ढूढने के चक्कर मे उन्होंने सारे जंगल मे आग लगा दी। आग में भूनकर भट्ट का दाना उछला तो, उन्हें मिल गया। उसने वो भुना दाना खाया तो उसे बड़ा स्वादिष्ट लगा। अब वो भाई जिद करने लगा कि मुझे सारे भट्ट ऐसे ही भून कर खाने हैं। अन्य भाई जैसे तैसे उस भाई को मना कर अपनी माँ की चिता को अग्नि देकर आये तो आधे रास्ते मे सारे भाई परेशान हो गए, क्योंकि उनका एक भाई कम हो गया था। उन्होंने कई बार गिन लिया ,गिनती में उनकी संख्या 6 ही निकलती थी ,जबकि वे सात भाई थे। वे रास्ते मे हैरान परेशान होकर अपने एक भाई को ढूढने लगे, तब रास्ते मे एक बटोही आ रहा था, उसने लछुवा कोठारी के बेटों से पूछा, कि तुम लोग परेशान क्यों हो रहे हो ? तब उन भाइयों में से एक ने कहा , श्रीमान हम सात भाई थे, हमारा एक भाई खो गया है। बटोही ने गिना वो हैरान हो गया , क्योंकि वो तो सात ही थे । बटोही ने कहा मेरी गिनती में तो तुम सात ही हो रहे हो। तुम कैसी गिनती कर रहे हो ? तब फिर एक भाई ने गिनती की और उसकी गिनती 6 भाइयों तक आकर खत्म हो गई। अब बटोही की समझ मे आया कि इनमें से जो भाई गिनती कर रहा है, वो खुद को नही गिन रहा है। तब व्व बटोही ने सबके सिर में एक एक जूता मार के 7 तक गिनती की और उन्हें बताया कि वे सात भाई हैं।

तब सभी भाई खुश होकर घर को गए। घर की तरफ जाते हुए उन्हें अपनी गाय बछियों की याद आयी, वे पर्वत से उचक -उचक कर अपनी अपनी गाय बच्चियां देखने लगे। उनकी गाय बछिया भूख प्यास से पहले ही मर गई थी। उनमें से एक ने कहा, “मेरी काली थक गई” दूसरा बोला, “मेरी झाली थक गई ” तीसरा बोला, “मेरी माली थक गई ” ऐसा करते करते वे आपस मे लड़ने लगे और लड़ते लड़ते सारे भाई पहाड़ से गिर कर मर गए।

इन किस्सों के अलावा लच्छू कोठारी के बेटों के कई किस्से कुमाऊं में प्रसिद्ध हैं।

तबसे काली कुमाऊं में लोग, मूर्ख व्यक्ति की तुलना लछुवा कोठारी के बेटों से करते हैं । पिछले दशक में तो कुमाऊं के अध्यापक भी पढ़ाई में कमजोर छात्रों की तुलना लच्छु कोठरी के बेटों से करते थे।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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