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ज्वाल्पा देवी मंदिर के बारे में :-
श्री ज्वाल्पा देवी माता मंदिर ,उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल जिले के कफोलस्यू पट्टी के पूर्वी छोर पर पश्चिमी नयार नदी के तट पर स्थित है। कोटद्वार -पौड़ी मुख्य मार्ग पर कोटद्वार से 63 किलोमीटर और पौड़ी से लगभग 33 किलोमीटर पर स्थित है। ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर यह मान्यता है,कि यह मंदिर हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित श्री ज्वालामुखी पीठ का उपपीठ बन कर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ बनकर प्रतिष्ठित हुवा।
ज्वाल्पा देवी शक्तिपीठ थालियाल और बिष्ट जाती के लोगो की कुलदेवी मानी जाती है। इस शक्तिपीठ में ग्रीष्म और शीतकालीन नवरात्र में विशेष आयोजन होता है। यहाँ विशेषकर कुँवारी कन्याएं मनचाहे वर की कामना लेकर इस मंदिर में आती हैं। ज्वाल्पा देवी के पुजारी कफोलसयुं, अणेथ गांव के अणथ्वाल ब्राह्मण हैं। जो बारी बारी से मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। शुरुआत में थपलियाल ब्राह्मणों द्वारा माता की पूजा का कार्य अणथ्वाल ब्राह्मणों को सौपा गया । अतः दान करने वाले थपलियाल देवी के मैती और दान प्राप्त करने वाले अणथ्वाल देवी के ससुराली कहे गए।
इस मंदिर में ज्वाल्पा माई के अलावा माता काली भैरव नाथ, शिवजी और हनुमान जी भी विराजित हैं।
श्री ज्वाल्पा देवी की पौराणिक कहानी :-
पौराणिक कथाओ के अनुसार ,आदिकाल सतयुग में दैत्यराज पुलोम की सुपुत्री देवी सती ने देवेंद्र अर्थात राजा इन्द्र को पतिरूप में पाने के लिए , यहाँ नायर नदी के किनारे माँ पार्वती की पूजा व कठोर तपस्या की थी। माता पार्वती ने देवी शचि की तपस्या से खुश होकर उन्हें दीप्त जवाला के रूप ने दर्शन दिए तथा उन्हें मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद दिया। देवी शचि को माता पार्वती के द्वारा ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण , इस शक्तिपीठ का नाम ज्वाल्पा देवी पड़ा । देवी शचि को मनवांछित जीवन साथी का वरदान मिलने के कारण, यह शक्ति पीठ कुँवारी कन्याओं को मनवंछित पति का वर देने वाला शक्तिपीठ माना जाता है। इसलिये यहाँ कुँवारी कन्याएं अपनी मनोकामना माँ को बताने और मनवंछित वर का आशीर्वाद लेने आती हैं।
माता पार्वती के ज्वाला रूप में प्रकट होने के कारण , माता के प्रतीक स्वरूप यहां लगातार अखंड दीपक प्रज्वलित रहता है। इस पुण्य परम्परा को चलाये रखने के लिए, नजदीकी पट्टीयों मवाल्सयूँ, कफोलस्यु, खातस्यू, रिनवाडस्यू, आदि के गावों से तेल एकत्रित किया जाता है।और माँ के अखंड दीप को जलाए रखने की व्यवस्था की जाती है। कहते हैं कि गढ़वाल राजवंश ने इस मंदिर को 20 एकड़ से अधिक जमीन दी है। और कहा जाता है, कि यहाँ आदि शकराचार्य जी ने मा की पूजा की थी । और माता ने उन्हें दर्शन भी दिए थे। यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तातां लगा रहता है। बसन्त पंचमी व नवरात्रों में मेले का आयोजन भी होता है। कहते हैं ,सच्चे मन से याद करने से और माँ के दर्शन करने से माँ ज्वाल्पा देवी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
ज्वाल्पा मंदिर से जुड़ीं स्थानीय लोक कथा :-
माता ज्वाल्पा की मूर्ति स्थापना की एक स्थानीय दंतकथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार यह स्थल प्राचीनकाल में अमेटी के नाम से विख्यात था। अमेटी आस पास के गावों वालों का इधर उधर जाते समय ,विश्राम करने का स्थल था। अर्थात पहले लोग पैदल ही जाते थे, तब लोग थोड़ी देर यहां पर बैठ कर जाते थे। एक बार कफोला बिष्ट नामक व्यक्ति नमक का कट्टा लेकर यहाँ पर आया।
उसने थोड़ी देर विश्राम के लिए यहाँ रुक गया। और अपने नमक के कट्टे के ऊपर कब उसकी आंख लग गई पता भी नही चला। जब उसकी आंख खुली तो,उसने अपना कट्टा उठाया,लेकिन उठा नही पाया। जब उसने कट्टा खोल के देखा, तो उसमें माता की मूर्ति थी। वह उस मूर्ति को वही छोड़कर भाग गया। तब बाद में नजदीकी गाव अणेथ गाव के दत्ताराम नामक व्यक्ति को सपने में माता ने दर्शन और वही मंदिर बनाये जाने की इच्छा जताई।
मंदिर में यात्री सुविधा व ठहरने की व्यवस्था
मंदिर के विकास व श्रद्धालुओं को ,सभी सुविधाएं प्रदान करने के लिए, सन 1969 में श्री ज्वाल्पा देवी मंदिर समिति की स्थापना हुई। जिसके अंतर्गत मंदिर में अनेक विकास कार्य हुए। वर्तमान में यहां संस्कृत विद्यालय और यात्रियों के ठहरने के लिए दो तीन धर्मशालाएं हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए , ज्वाल्पा देवी मंदिर पौड़ी गढ़वाल के कुछ दूरी पर गढवाल मंडल विकास निगम का विश्रामगृह भी उपलब्ध है।
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ज्वाल्पा देवी मंदिर कैसे जाएं :-
इस मंदिर में जाने के लिए आप कोटद्वार से सतपुली पाटीसैंण के रास्ते यहां पहुंच सकते हैं। ज्वालपा देवी मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार है। कोटद्वार से ज्वालपा देवी मंदिर 67 किलोमीटर दूर स्थित है। ज्वालपा देवी का निकट हवाई अड्डा देहरादून हवाई अड्डा है। यदि आप देहरादून से सीधे अपनी गाड़ी में जाना चाहते तो , देहरादून से ज्वालपा देवी पौड़ी गढ़वाल 168किलोमीटर पड़ेगा और NH7के रास्ते से लगभग 5 घंटे में पहुंच जाते हैं।
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