Home मंदिर हनुमान गढ़ी ,जहाँ की पत्तियां भी राम-नाम जपती हैं।

हनुमान गढ़ी ,जहाँ की पत्तियां भी राम-नाम जपती हैं।

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ये बहुत कम लोगों को पता है कि ,अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग में भवाली में स्थित कैंचीधाम के अलावा बाबा नीम करौली महाराज ने नैनीताल जिले में एक और मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर का नाम है हनुमान गढ़ी । समुद्र ताल से 6401 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर हल्द्वानी -नैनीताल हाईवे पर नैनीताल से तीन किलोमीटर दूर स्थित है।

नीम करौली बाबा ने की थी हनुमान गढ़ी की स्थापना –

पवित्र कैंचीधाम के साथ -साथ बाबा नीमकरौली महाराज ने हनुमान गढ़ी की स्थापना की थी। बताते हैं कि यह मंदिर बनने से पहले यहां मिट्टी का टीला था। वहां बाबा नीम करौली बाबा ने लगभग एक साल तक तपस्या की थी। कहतें उस स्थान के पेड़ पौधे भी राम नाम जपते हैं। बाबा नीम करौली ने 1953 में इस मंदिर की स्थापना की थी। कहते हैं एक बार यहाँ भंडारे में घी कम पड़ गया था तो बाब नीम करौली जी  बगल  रखा एक पानी  कनस्तर कढ़ाई में पलट दिया था ,जो कढ़ाई में डालते ही घी बन गया था।

हनुमान जी के चमत्कारी मंदिरों में से एक है ये मंदिर ! साल भर भक्तों का ताँता लगा रहता है –

देश के प्रसिद्ध हनुमान मंदिरों में से एक है यह मंदिर। मंदिर परांगण में एक विशालकाय हनुमान जी की मूर्ति है। जिसके बारे में कहा जाता है कि वह उस क्षेत्र के लोगों की रक्षा करती है हवाई अड्डा  उस मूर्ति के ऊपर एक बड़ा छत्र भी है। मंदिर के आंतरिक भाग में भगवान बजरंगबली की एक  मूर्ति है जिसमे भगवान राम और माँ सीता की मनमोहक छवि बनती है। यहाँ वर्षभर श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है। नैनीताल आने वाले लोग हनुमान गढ़ी अवश्य आते हैं। नव वर्ष पर विशेषकर बजरंगबली का आशीर्वाद लेने लोग अवश्य आते हैं।

हनुमान गढ़ी
फोटो साभार -सोशल मीडिया

कैसे पहुंचे हनुमान गढ़ी नैनीताल –

हनुमान गढ़ी नैनीताल जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। और हवाई अड्डा पंतनगर है। नैनीताल से 3 किलोमीटर के आस पास दूर इस मंदिर के लिए हल्द्वानी या काठगोदाम से रोड माध्यम द्वारा सभी यातायात के साधन आसानी से मिल जाते हैं।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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