अप्रैल मई के माह में पहाड़ों में रवि की फसल तैयार होती है। रवि की फसल में मुख्य खाद्यान गेहू होता है। पहाड़ों में गेहू की फसल के काम के दौरान अधकच्चे गेहूं से एक विशेष स्नेक्स बनाते हैं, जिसे पहाड़ी भाषा उमी कहते हैं। पहाड़ो में गेहूं की फसल तैयार हो जाने पर फसल की कटाई के समय उसकी हरी बालियों को आग में भून कर और ठंडा करके भुने हुए दानों को उमी कहा जाता है। ये दाने चबाये जाने पर विशेष स्वादिष्ट लगते हैं। बाद में इसके खाजा या चबेने के रूप प्रयोग किया जाता है।
इसके बारे में प्राचीन साहित्य में बताया गया है कि ,वसंतोत्सव के अवसर पर लोग ,गेहूं ,जौं आदि रवि फसल के खाद्यानो और चना मटर की बालियों और फलियों को भूनकर खाते थे। जिन्हे उमा ,उमी ,होलक या होला कहते थे। पहले नगरीय क्षेत्र के लोग गेहूं या अन्य खाद्यान को आग में भूनकर बनाये गए इस स्वादिष्ट व्यंजन का स्वाद लेने के लिए धूमधाम के साथ नगरों से गावों में जाया करते थे। पहाड़ों में गेहूं की ऊमि (umi) चनों के “होले” बनाने की परम्परा अभी भी जीवित है। हिमालय के भोटान्तिक जनजातीय क्षेत्रों में छूमा और नपल धान्यो को भूनकर उसमे गुड़ मिलकर लड्डू बनाये जाते हैं। और उन्हें यात्रा भोजन के रूप में ले जाया जाता है।
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