Home उत्तराखंड की लोककथाएँ कुमाऊँ के पहलवान धन बाहदुर की कुश्ती ,कुमाऊनी लोक कथा।

कुमाऊँ के पहलवान धन बाहदुर की कुश्ती ,कुमाऊनी लोक कथा।

0
इस कुमाऊनी लोक कथा में सांकेतिक चित्र का प्रयोग किया गया है।

एक कुमाऊनी लोक कथा में बताया जाता है कि प्राचीन काल में कुमाऊँ के एक राजा के पास धन बाहदुर नामक शक्तिशाली पहलवान था। उसकी ताकत के चर्चे दूर दूर तक थे। कहते हैं एक बार  दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने जबरदस्त कुश्ती का आयोजन किया। यह कुश्ती राष्ट्रीय स्तर पर होनी थी। इसके लिए हिंदुस्तान के सभी राज्यों और राजाओं को कुश्ती के लिए निमंत्रण भेजा गया।

कहते हैं औरंगजेब की जबरदस्त कुश्ती आयोजन में कुश्ती लड़ने  निमंत्रण कुमाऊँ के राजा को भी मिला। पहले तो कुमाऊँ के राजा घबरा गए कि कैसे बादशाह के निमंत्रण का मान रखू ! फिर उन्हें याद आया कि हमारे पास तो एक धन बाहदुर नामक प्रसिद्ध शक्तिशाली पहलवान है। कुमाऊँ के राजा आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर अपने प्रिय पहलवान धन बहदुर से जीत का वादा लेकर दिल्ली को विदा किया।

धन बहदुर सर पर पारम्परिक कुमाऊनी साफा बांध कर,कपडे का चोला पहन और कंधे पर काला कम्बल डाल कर जीत कर आने का वादा करके दिल्ली बादशाह औरंगजेब के कुश्ती स्थल की तरफ रवाना हुवा।

दिल्ली पहुंचकर उसने देखा कि बादशाह औरंगजेब के कुश्ती समारोह में पुरे हिंदुस्तान के बड़े -बड़े पहलवान हुए थे। एक से बढ़कर एक ताकतवर पहलवान अखाड़े में अलग -अलग प्रकार की कसरतें करके अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे।

फिर कुश्ती का आयोजन शुरू हुवा। एक -एक करके सभी पहलवान एक दूसरे को हराकर अखाड़े से बाहर कर रहे थे। आखिर में जो पहलवान बचा उससे धन बाहदुर की कुश्ती तय हुई।

धन बाहदुर , कुमाऊँ का पहलवान की कुमाऊनी लोक कथा।
इस कुमाऊनी लोक कथा में सांकेतिक चित्र का प्रयोग किया गया है।

कुमाऊँ के पहलवान धन बाहदुर ने उससे बड़ी विनम्रता से उस पहलवान से कहा ,”महाशय मैं पहाड़ो से आया एक सीधा -साधा पहलवान हूँ। मुझे ज्यादा दाव पेंच नहीं आते हैं। इसलिए हम सीधी लड़ाई लड़ेंगे। ” “पहले आप पूरी ताकत से मेरा सर दबाओगे। फिर मैं आपका सर दबाऊंगा। वह कुम्भकर्ण रुपी पहलवान मान गया।

पहले उस कुम्भकर्ण जैसे दिखने वाले पहलवान ने धन बाहदुर का सर पूरी ताकत से दबाया। उसे कोई असर नहीं हुवा अब धनबहदुर की बारी थी। धन बाहदुर ने उस पहलवान के सर को अपने हाथों के बीच रखा और जोर से दबाया तो उसका सिर अखरोट की तरह खुल गया। और पहलवान की वहीँ मृत्यु हो गई।

और धन बाहदुर विजयी हुवा। और बचे हुए जो भी पहलवान थे ,उनके अखाड़े में उतरने की हिम्मत नहीं हुई। और मजबूरन औरंगजेब को आदेश देना पड़ा कि, ” आज से कुमाऊँ का कोई भी पहलवान दिल्ली कुश्ती लड़ने न आने पावे

इन्हे भी पढ़े _

सिदुवा विदुवा की लोककथा , उत्तराखंड की लोककथा।

हमारे व्हाट्सअप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Previous articleहल्द्वानी-रुद्रपुर मार्ग कल रात 12 घंटे रहेगा बंद, जाने कहां से जाएगी गाड़ियां
Next articleलेह-लद्दाख में तैनात जवान संजय रावत का हार्ट अटैक से निधन, क्षेत्र में शोक
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

Exit mobile version