Home संस्कृति उत्तराखंड की लोककथाएँ कुमाऊँ के पहलवान धन बाहदुर की कुश्ती ,कुमाऊनी लोक कथा।

कुमाऊँ के पहलवान धन बाहदुर की कुश्ती ,कुमाऊनी लोक कथा।

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इस कुमाऊनी लोक कथा में सांकेतिक चित्र का प्रयोग किया गया है।

एक कुमाऊनी लोक कथा में बताया जाता है कि प्राचीन काल में कुमाऊँ के एक राजा के पास धन बाहदुर नामक शक्तिशाली पहलवान था। उसकी ताकत के चर्चे दूर दूर तक थे। कहते हैं एक बार  दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने जबरदस्त कुश्ती का आयोजन किया। यह कुश्ती राष्ट्रीय स्तर पर होनी थी। इसके लिए हिंदुस्तान के सभी राज्यों और राजाओं को कुश्ती के लिए निमंत्रण भेजा गया।

कहते हैं औरंगजेब की जबरदस्त कुश्ती आयोजन में कुश्ती लड़ने  निमंत्रण कुमाऊँ के राजा को भी मिला। पहले तो कुमाऊँ के राजा घबरा गए कि कैसे बादशाह के निमंत्रण का मान रखू ! फिर उन्हें याद आया कि हमारे पास तो एक धन बाहदुर नामक प्रसिद्ध शक्तिशाली पहलवान है। कुमाऊँ के राजा आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर अपने प्रिय पहलवान धन बहदुर से जीत का वादा लेकर दिल्ली को विदा किया।

धन बहदुर सर पर पारम्परिक कुमाऊनी साफा बांध कर,कपडे का चोला पहन और कंधे पर काला कम्बल डाल कर जीत कर आने का वादा करके दिल्ली बादशाह औरंगजेब के कुश्ती स्थल की तरफ रवाना हुवा।

दिल्ली पहुंचकर उसने देखा कि बादशाह औरंगजेब के कुश्ती समारोह में पुरे हिंदुस्तान के बड़े -बड़े पहलवान हुए थे। एक से बढ़कर एक ताकतवर पहलवान अखाड़े में अलग -अलग प्रकार की कसरतें करके अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे।

फिर कुश्ती का आयोजन शुरू हुवा। एक -एक करके सभी पहलवान एक दूसरे को हराकर अखाड़े से बाहर कर रहे थे। आखिर में जो पहलवान बचा उससे धन बाहदुर की कुश्ती तय हुई।

धन बाहदुर , कुमाऊँ का पहलवान की कुमाऊनी लोक कथा।
इस कुमाऊनी लोक कथा में सांकेतिक चित्र का प्रयोग किया गया है।

कुमाऊँ के पहलवान धन बाहदुर ने उससे बड़ी विनम्रता से उस पहलवान से कहा ,”महाशय मैं पहाड़ो से आया एक सीधा -साधा पहलवान हूँ। मुझे ज्यादा दाव पेंच नहीं आते हैं। इसलिए हम सीधी लड़ाई लड़ेंगे। ” “पहले आप पूरी ताकत से मेरा सर दबाओगे। फिर मैं आपका सर दबाऊंगा। वह कुम्भकर्ण रुपी पहलवान मान गया।

पहले उस कुम्भकर्ण जैसे दिखने वाले पहलवान ने धन बाहदुर का सर पूरी ताकत से दबाया। उसे कोई असर नहीं हुवा अब धनबहदुर की बारी थी। धन बाहदुर ने उस पहलवान के सर को अपने हाथों के बीच रखा और जोर से दबाया तो उसका सिर अखरोट की तरह खुल गया। और पहलवान की वहीँ मृत्यु हो गई।

और धन बाहदुर विजयी हुवा। और बचे हुए जो भी पहलवान थे ,उनके अखाड़े में उतरने की हिम्मत नहीं हुई। और मजबूरन औरंगजेब को आदेश देना पड़ा कि, ” आज से कुमाऊँ का कोई भी पहलवान दिल्ली कुश्ती लड़ने न आने पावे

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