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उत्तरायणी कौतिक लागि रो कुमाऊनी गीत के बोल

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उत्तरायणी कौतिक लागि रो कुमाऊनी गीत

उत्तरायणी, घुघुतिया, मकरैनी आदि नामो से उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस उपलक्ष में एक विशेष पकवान जिसका नाम घुघुत होता है, वह बनाया जाता है। और अगले दिन छोटे छोटे बच्चे , काले कावा काले बोल कर कौओं को बुला कर ,उनको घुघुती खिलाते हैं। घुघुतिया त्यौहार क्यों मनाते हैं ?

इसके पीछे एक प्रसिद्ध कहानी भी है। दोस्तों घुघुतिया त्यौहार के बारे में अधिक जानकारी और घुघुतिया की कहानी जानने के लिए और घुघुतिया की शुभकामनाएं 2024 के लिए  यहां क्लिक करें।

प्रस्तुत लेख में हम यहाँ उत्तरायणी पर आधारित एक प्रसिद्ध कुमाउनी गीत के बोल प्रस्तुत कर रहे हैं। जैसा कि हमको विदित है कि, मकर सक्रांति के उपलक्ष्य पर, बागेश्वर सरयू तट पर आदिकाल से प्रसिद्ध ऐतिहासिक मेले का आयोजन होता है। यहाँ दूर दूर से कुमाउनी लोग मेला देखने और स्नान दर्शन के लिए आते हैं। दूर दूर से बड़े बड़े व्यपारी अपने सामान ,खास कर हस्तनिर्मित समान के साथ यहां आते हैं।

उत्तरायणी
Uttrayni or ghughu wishes image download

उत्तराखंड के अमर गायक स्वर्गीय पप्पू कार्की और मीना राणा द्वारा गाया हुवा प्रसिद्ध गीत, उत्तरायणी कौतिक लागी रौ में कुमाउनी प्रेमी युगल का आपसी मधुर प्रिय संवाद है। जिसमे वे आपस मे उत्तरायनी मेला जाने वहाँ मेले में घूमने की नई नई मधुर योजनाएं बनाते हैं। इस गीत में कई पारम्परिक कुमाउनी शब्दों का बेहतरीन प्रयोग किया गया है।

यहाँ सर्वप्रथम उत्तरेनी कौतिक लागी रो गीत के बोल उसके बाद इसका मधुर वीडियो का आनंद ले।

यदि आप उत्तरायणी मेला पर निबंध ढूंढ रहे हैं तो ,उत्तरायणी मेला पर निबंध हेतु यहां क्लिक करें …

उत्तरायणी कौतिक लागि रो, सरयू का बगड़ मा …

उत्तरायणी कौतिक लागि रो, सरयू का बगड़ मा।
उत्तरायणी कौतिक लागि रो, सरयू का बगड़ मा।।
तू लै आये , मैं ले उलो, बागनाथ मंदिर ले जूलो।
मेरी सरूली …
ओ मेरी सरू , मेरी सरूली …

उत्तरेणी कौथिक लागी छौ, उत्तरेणी कौथिक लागी छौ।
सरयू का बगड़ में ….
तैले आये मैं ले उलो, बागनाथ मंदिर ले जूलो ।
म्यारा दीवाना …ओ म्यारा देवू , म्यारा दीवाना ….
ओ म्यारा देवू , म्यारा दीवाना ….
दनपुरा ,दनपुरी आला , सोर का सोरयाला।
अल्मोड़ा का अलमोड़िया । द्वारहाटा दोर्याला।
दनपुरा ,दनपुरी आला , सोर का सोरयाला।
अल्मोड़ा का अलमोड़िया । द्वारहाटा दोर्याला।।
तू लिभेर आये, घुघुते माला ,मेरी सरूली।
मेरी सरूली , ओ मेरी सरू मेरी सरूली।
बगशेरा बाजार देवू ,रौनक देखुलो ।
हाथ मे हाथ धरि दगड़े घूमोलो।।
बगशेरा बाजार देवू ,रौनक देखुलो ।
हाथ मे हाथ धरि दगड़े घूमोलो।।

नुमाइश खेत ,चरखी में बैठूलो , म्यारा दीवाना।
नुमाइश खेत ,चरखी में बैठूलो , म्यारा दीवाना।।
पुष्उड़िया कौतिके की हम निशानी ल्युलो।
तू मैके रुमाल देली , मैं मुनेड़ी द्युलो ।।
पुष्उड़िया कौतिके की हम निशानी ल्युलो।
तू मैके रुमाल देली , मैं मुनेड़ी द्युलो ।।
गंगा का किनारा ,फोटक खैचुलो , मेरी सरूली ।
मेरी सरूली ,ओ मेरी सरू मेरी सरूली ….
बागनाथ ज्यूँ को हम दर्शन करुलो ।
जोड़ी झन टूटो कभी ,आशीष माँगूलो ।।
बागनाथ ज्यूँ को हम दर्शन करुलो ।
जोड़ी झन टूटो कभी ,आशीष माँगूलो ।।
जनम जनम ,हम संग रुलो म्यारा दीवाना।
जनम जनम ,हम संग रुलो म्यारा दीवाना।।
…..सरयू किनारा …. उत्तरेणी कौतिक ऐरे बहारा …

पप्पू कार्की की आवाज में उत्तरेणी कौतिक गीत का वीडियो  देखने के लिए यहां क्लिक करें …
दक्ष कार्की की आवाज में यह गीत सुनने के लिए यहां क्लिक करें।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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