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देहरादून की टोंस नदी का अनोखा इतिहास : आंसुओं से बनी एक नदी

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उत्तराखंड की टोंस नदी, हिमालय की गोद से निकलकर देहरादून जिले के कालसी के पास यमुना नदी में मिलने तक, अपनी गहराई, सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक महत्व की गाथा कहती है। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक कहानी है, जो सदियों से उत्तराखंड के इतिहास, संस्कृति और लोककथाओं का हिस्सा रही है।

टोंस नदी का उद्गम और प्रवाह :

टोंस नदी उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित टोंस ग्लेशियर से निकलती है। यह ग्लेशियर लगभग 20,720 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। लगभग 250 किलोमीटर तक फैली इस नदी का प्रवाह ऊबड़-खाबड़ इलाकों, गहरी घाटियों और घने जंगलों से होकर गुजरता है। टोंस नदी की प्रमुख सहायक नदियों में रूपिन, सुपिन और यमुना शामिल हैं। यह देहरादून के कालसी क्षेत्र में यमुना नदी में मिल जाती है।

टोंस नदी का प्राचीन इतिहास :

टोंस नदी के किनारे बसे स्थानों का इतिहास प्राचीन युगों तक जाता है। महाभारत काल में इस नदी का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद, द्रौपदी अपने पति पांडवों और बच्चों के साथ देहरादून में रहने आई थीं। अपने बच्चों की मृत्यु का शोक मनाते हुए, उन्होंने इस नदी के पास आंसू बहाए, और इन्हीं आंसुओं से टोंस नदी का निर्माण हुआ।

एक अन्य लोककथा के अनुसार, यह नदी बभ्रुवाहन के आंसुओं से भी बनी मानी जाती है। पाताल लोक के राजा बभ्रुवाहन ने कौरवों की हार पर रोते हुए इतने आंसू बहाए कि उनसे यह नदी बन गई। यही कारण है कि टोंस नदी को “आंसुओं की नदी” भी कहा जाता है।

टोंस नदी

मिथक और वास्तविकता :

हालांकि इन कहानियों में एक विशेष आकर्षण और सांस्कृतिक महत्त्व है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह नदी हिमालय की बर्फ और वर्षा जल से बनती है। लेकिन यह मिथक इस नदी के प्रति लोगों की भावनाओं और सांस्कृतिक जुड़ाव को दर्शाते हैं।

 पारिस्थितिक और सांस्कृतिक महत्व :

टोंस नदी न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसका पारिस्थितिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। यह नदी क्षेत्र के वनस्पति और जीव-जंतुओं के लिए जीवनदायिनी है। देहरादून के टोंस घाटी क्षेत्र में यह नदी धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र रही है। इसके किनारे कई पुरातात्विक स्थल, मंदिर, और गाँव स्थित हैं, जो इस क्षेत्र के समृद्ध इतिहास की कहानी कहते हैं।

टोंस नदी और स्थानीय जीवन :

टोंस नदी ने क्षेत्र के वाणिज्य, कृषि और जीवनशैली को गहराई से प्रभावित किया है। इसके किनारे स्थित गाँवों और नगरों का विकास इस नदी पर निर्भर रहा है। यहाँ के लोग इस नदी को अपनी आस्था और जीवन का आधार मानते हैं।

अंत में –

यह नदी केवल एक प्राकृतिक धारा नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर है। इसकी गहराई में महाभारत की कहानियाँ, पौराणिक मिथक और प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत संगम मिलता है। यह नदी आज भी उत्तराखंड के लोगों के जीवन में उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी सदियों पहले थी।

इस नदी की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारी नदियाँ केवल जल की धाराएँ नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता और संस्कृति की जीवनधारा हैं।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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