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क्या आप शुभ अशुभ से जुडी इन पहाड़ी मान्यताओं के बारे में जानते हैं ?

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हर समाज में शुभ अशुभ से जुडी कई मान्यताएं होती हैं। ठीक उसी प्रकार हमारे पहाड़ो में दैनिक जीवन और क्रियाकलापों से जुड़ी घटनाओं को शुभ और अशुभ से जोड़ा जाता है। वर्तमान में शहरीकरण के प्रभाव इन पहाड़ी मान्यताओं का प्रभाव थोड़ा काम हो गया हैं ,लेकिन ग्रामीण अंचलों में ये मान्यताएं अपने पारंपरिक रूप में अभी भी प्रचलित हैं। उत्तराखंड में प्रचलित लोकविश्वासो ,आस्थाओं ,शुभ-अशुभ सम्बन्धी अवधारणाओं एवं वर्जनों -प्रतिवर्जनों में से अनेक ऐसे हैं कि जो सर्वत्र स्तर पर आंशिक भेदों के साथ पुरे हिमालयी क्षेत्र में माने जाते हैं। इनमे में से

आइये जानते हैं कुछ पहाड़ी मान्यताओं के बारे में –

  • लोहे से लोहा टकराना या खाली कैंची चलना पहाड़ी मान्यताओं में अशुभ माना जाता है।
  • गले में हाथ लगने से गले में गलकण्ड होने का खतरा माना जाता है। जिसका निवारण हाथ में फूंक मरना होता है।
  • कुत्ते का आकाश की ओर मुँह करके रोना ,दिन में उल्लू का बोलना और रात को कौओं का रात को बोलना अशुभ माना जाता है।
  • शिशु का बार -बार नाक मसलना अस्वस्थ होने का संकेत माना जाता है।
  • बच्चे को छींक आने पर कुमाऊँ क्षेत्र की माताएं , “जय श्री ” छैक छीका छतुर का उच्चारण करती है। जिसके पीछे मान्यता है कि ऐसा बोलने से शिशु से इसके नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं।
  • चूल्हे पर आग जलाते समय फूकं मारने पर यदि आग नहीं जलती है तो कहते हैं उक्त लड़के या लड़की को कंजूस सास मिलेगी या कही ये माना जाता है कि उक्त व्यक्ति की सास इस दुनिया में नहीं है।
  • पहाड़ों में चिल्लाने और चटख कपडे न पहनने की हिदायत दी जाती है। कहा जाता है कि पहाड़ों में चटख कपडे पहनने से या चिल्लाने से भूत प्रेत चिपटने का खतरा रहता है। मगर इसका वैज्ञानिक कारण भी है ,पहाड़ों पर जो से बोलने पर हिमस्खलन का खतरा रहता है।

पहाड़ी मान्यताओं पर लेख

  • पहाड़ी मान्यताओं में विवाह मंडप पर दूल्हा दुल्हन के हसने या बोलने की मनाही होती है। इसके पीछे मान्यता यह है कि जो दूल्हा या दुल्हन मंडप पर बोलते हैं या हँसते हैं उनकी संतान गूंगी होती है।
  • शिशुओं के दातों के संबंध में कहा जाता है कि बालक के सातवें महीने में और कन्या के सातवें महीने दांत निकलना शुभ होता है।
  • पहाड़ी मान्यताओं में दाएं हाथ की हथेली खुजाना मतलब पैसे आना और बायीं हथेली खुजलाना मतलब पैसे जाना होता है।
  • पहाड़ी मान्यता के अनुसार हिचकी आने का मतलब आपको कोई अपना याद कर रहा है। और आंगन में सुबह सुबह कौआ बोले तो उस दिन घर में मेहमान आने की उम्मीद रहती है।
  • घर के अंदर सिटी या मुरली बजाने पर कहते हैं घर में सांप आते हैं।
  • पहाड़ी मान्यताओं कुवारों के लिए में खाने के बर्तनो या करछी को चाटना मना है। कहते हैं ऐसा करने से उनकी शादी में बारिस होती है।
  • कहते हैं यदि दांत निकले से पूर्व शिशु के मसूड़े छू दिए तो उसके दांत देर में आते हैं।
  • कहते हैं छलनी को सिर या भूमि में रखने से छलनी के छिद्रों के बराबर कर्ज होता है।
  • कहते हैं हाथ में नमक पकड़ाना या मिर्च पकड़ाने से झगड़ा होने का खतरा होता है।
  • जलती हुई आग यदि भुरभुराएँ तो कहते हैं कोई अपना याद कर रहा होगा।
  • रोटी बनाने के बाद तवे को खाली उतारने से दरिद्रता आने की आशंका होती है।

निष्कर्ष –

मित्रों उपरोक्त में हमने उत्तराखंड के पहाड़ी समाज में मान्य कुछ मान्यताओं का वर्णन किया है। पहले संसाधनों के आभाव में लोग इन्ही मान्यताओं के आधार पर अपने दैनिक जीवन का निर्वहन करते थे। पुराने ज़माने के लोगों ने अपने जीवन शैली को सरल व्यवस्थित रखने के उस समय के अनुसार और अपनी जानकारी के आधार पर  इन मान्यताओं को बनाया था। हालांकि आजकल इन पहाड़ी मान्यताओं का अस्तित्व लगभग ख़त्म हो गया है। इनका प्रमुख कारण वर्तमान पहाड़ी समाज की जीवन शैली में काफी बदलाव आ गया है।

पुराने जमाने की इन मान्यताओं में से कुछ के बहुत गहरे अर्थों के साथ उनके पीछे वैज्ञानिक कारण भी होता है। जैसे – पहाड़ों में आवाज करने से भूत चिपट जाते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि  हिमालयी पहाड़ कच्चे होते हैं और तेज आवाज से दरकने का खतरा होता है। इसलिए पहाड़ों में तेज आवाज करने की मनाही होती है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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