आर्किड के फूल, लोक कथा हिमालयी राज्य अरुणाचल प्रदेश की प्रसिद्ध लोककथा है। देवभूमी दर्शन की कोशिश है, उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति के प्रचार के साथ अन्य हिमालयी राज्यों की सुंदर लोक कथाओं का वर्णन करें।
प्राचीन काल में एक ईमानदार राजा राज्य करता था। उसके राज्य में ऊँचे-ऊँचे सुंदर पहाड़, जंगल, हरियाली भरे बगीचे, कल-कल की मधुर ध्वनि करती नदियाँ और सुन्दर पशु-पक्षी थे। राजा अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था। उसकी प्रजा बहुत सुखी थी। उसके राज्य में किसी चीज की कमी नहीं थी। राजा का परिवार में एक रानी और एक राजकुमारी थी। राजा का कोई बेटा नहीं था। अतः रानी और राज्य के शुभचिंतकों वी राजगुरु आदि ने राजा को सुझाव दिया कि वह दूसरा विवाह कर ले, किन्तु राजा ने उनकी बात नहीं मानी। राजा अपनी रानी को बहुत प्यार करता था और किसी भी हाल में दूसरा विवाह करना नहीं चाहता था।इसी तरह कई वर्ष बीत गए।
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राजा और उसका परिवार बहुत सुखी था। उसकी बेटी अब बड़ी हो गई थी। राजकुमारी भी अपनी माँ के समान सहृदय, और अद्वितीय सुन्दरी थी। उसके रूप और सौन्दर्य की चर्चा आसपास के राज्यों में होने लगी थी। राजा के पास आसपास के राजाओं ने अपने राजकुमारों के विवाह प्रस्ताव भेजने शुरू कर दिए थे। लेकिन राजकुमारी की अभी विवाह की कोई इच्छा नहीं थी। इसलिए राजा ने किसी भी विवाह प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था। राजकुमारी का कक्ष बहुत सुंदर था। उसके कक्ष के पीछे एक हरा-भरा सुंदर बगीचा था।
इस बगीचे में बहुत सुन्दर-सुन्दर वृक्ष थे। इन वृक्षों पर बड़े स्वादिष्ट फल लगते थे। राजकुमारी नित्य प्रातःकाल अपनी सहेलियों के साथ अपने कक्ष के पीछे बगीचे में आ जाती थी, और तेज धूप निकलने के पहले तक यहीं रहती थी। तेज धूप होते ही वह कक्ष में आ जाती थी। बाग में टहलना राजकुमारी का सबसे प्रिय शौक था।
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राजकुमारी के कक्ष के बगीचे में एक सीढ़ीदार कुवा था । इसका पानी बहुत साफ और स्वादिष्ट था। महल के लोग इसी सीढ़ीदार कुवे का पानी पीते थे। बगीचे में टहलते-टहलते जब राजकुमारी थक जाती थी तो इसी कुवें के किनारे पर बैठकर आराम करती थी। एक दिन सुबह का समय था। राजकुमारी रोज की तरह कक्ष के पीछे के बाग में टहल रही थी। उसके साथ उसकी सहेलियां भी थीं। अचानक राजकुमारी को आस पास दुर्गंध प्रतीत हुई । उसने अपनी सखियों से दुर्गन्ध के बारे में बताया और कुवें के किनारे आकर बैठ गई ।
वहां पर बैठते ही राजकुमारी की तबियत और खराब हो गई और वह बिहोश हो गई। राजकुमारी के बिहोश होते ही दोनों सहेलियां घबरा गईं। उन्होंने राजकुमारी को सँभाला और उसे उठाकर महल के भीतर ले आईं। राजकुमारी की एक सहेली ने राजकुमारी के विहोश होने की जानकारी राजा को दी। राजा उस समय दरबार में था। उसे जैसे ही राजकुमारी के विहोश होने का समाचार मिला तो वह राजवैद्य को लेकर राजकुमारी के कक्ष में आ गया।
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राजवैद्य ने राजकुमारी की जांच कि । उसकी समझ में बस इतना आया कि राजकुमारी की विहोशी का कारण कोई दुर्गन्ध है। राजकुमारी की सहेलियों ने भी राजा के सामने राजवैद्य को बताया कि राजकुमारी ने अचेत होने से पहले दुर्गन्ध की शिकायत कर रही थी। राजा ने यह बात मालूम होते ही अपने कई सैनिकों को बुलाया और उन्हें दुर्गन्ध का कारण ढूढने के लिए राजकुमारी के बगीचे में भेजा। सैनिकों ने बगीचे का चप्पा-चप्पा छान मारा, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला। अचानक एक सैनिक की नजर मरे हुए एक मोटे अधखाए चूहे पर पड़ी। इस चूहे से हल्की-हल्की दुर्गन्ध भी आ रही थी। शायद रात को बिल्ली अथवा कोई पक्षी चूहा ले आया होगा और आधा खाकर राजकुमारी के बगीचे में छोड़ गया होगा। सैनिकों ने तुरन्त जाकर राजा को खबर दी।
राजा ने राज्य के बाहर चूहे को जलाकर जमीन में गाड़ने का आदेश दिया और राजकुमारी के सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगे। लेकिन दोपहर हो चुकी थी और राजकुमारी अभी तक अचेत थी। धीरे-धीरे एक सप्ताह बीत गया लेकिन राजकुमारी को अभी तक होश नहीं आया था। राजवैद्य उसे तरह-तरह की औषधियाँ दे रहे थे, लेकिन उस पर किसी भी औषधि का कोई असर नहीं पड़ा था। राजा-रानी और राज्य की जनता बहुत परेशान थे और राजकुमारी के शीघ्र होश में आने के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे थे।
इसी तरह एक और सप्ताह और बीत गया। लेकिन राजकुमारी को होश नहीं आया। इस मध्य राजवैद्य ने अपने राज्य के अन्य वैद्यों तथा पड़ोसी देशों के राज वैद्यों को भी बुलाकर उनसे परामर्श किया और राजकुमारी को बहुत प्रभावशाली औषधियाँ दीं, किन्तु सभी औषधियाँ बेकार रहीं। राजा और रानी दो हफ्ते से राजकुमारी के पास ही थे। उनसे राजकुमारी की हालत देखी नहीं जा रही थी। राजकुमारी बिना कुछ खाए पिए दो हफ्ते से अचेत पड़ी थी।
राजवैद्य और उसके साथी वैद्यों की औषधियों को बेअसर होता देखकर राजा-रानी की चिन्ता बढ़ती जा रही थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्या न करें। इसी तरह एक महीना बीत गया। राजकुमारी अभी भी विहोश थी। उसका सुन्दर गुलाबी चेहरा पीला पड़ गया था। राजा-रानी, राजवैद्य और उसके साथी वैद्य सभी हिम्मत हार चुके थे। अब तो को केवल ईश्वर का सहारा रह गया था।
एक विशाल कक्ष के मध्य पड़े पलंग पर राजकुमारी बेजान सी पड़ी थी। उसके पास रानी और राजा बैठे थे। राजकुमारी से कुछ दूरी पर खड़े राजवैद्य, महामन्त्री, सेनापति, राजपुरोहित आदि आपस में राजकुमारी की बीमारी के सम्बन्ध में विचार-विमर्श कर रहे थे। अचानक महामन्त्री के दिमाग में एक ख्याल आया। महामन्त्री तुरन्त अपने स्थान से उठा और राजा के पास पहुँचकर हाथ बाँधकर , महामन्त्री ने राजा को सुझाव दिया कि वह अपने राज्य में और आसपास के राज्यों में यह घोषणा करवा दें कि जो व्यक्ति राजकुमारी को ठीक कर देगा उसे सोने की एक लाख मोहरें इनाम में दी जाएँगी।
राजा को महामन्त्री का यह सुझाव ठीक लगा। उसने इस सुझाव को और भी आकर्षक बनाते हुए महामन्त्री से कहा कि वह यह घोषणा करवा दे कि जो व्यक्ति राजकुमारी को ठीक कर देगा उसे आधा राज्य पुरस्कार में दिया जाएगा। महामन्त्री ने राजा की आज्ञा से अपने राज्य में और आसपास के राज्यों में यह घोषणा करवा दी और पुरस्कार में आधे राज्य की घोषणा करवा दी। अगले दिन से ही एक से एक बढ़कर अनुभवी वैद्य आने लगे। वे आधे राज्य के लालच में अच्छी से अच्छी औषधि राजकुमारी को देते, किन्तु कोई लाभ नहीं होता। अन्त में वे वापस लौट जाते। यह कार्यक्रम पन्द्रह दिन तक चलता रहा । काफी समय बीत चुका था। राजकुमारी अभी भी अचेत थी। उसकी स्थिति में लेशमात्र का भी सुधार नहीं हुआ था। राजा-रानी, महामन्त्री, सेनापति, राजवैद्य, राजपुरोहित सभी निराश हो चुके थे। अब राजकुमारी के ठीक होने की कोई आशा नहीं रह गई थी। सुबह का समय था। अचानक एक सेवक ने राजकुमारी के महल में प्रवेश किया और बताया कि एक दूसरे देश का युवक आया है। उसका कहना है कि वह राजकुमारी को स्वस्थ कर देगा।
राजा को उम्मीद की एक किरण दिखाई दी। उसने सैनिक को आदेश दिया कि वह पूरे सम्मान के साथ युवक को ले आए। सैनिक ने राजा की आज्ञा का पालन किया और नवयुवक को महल के भीतर ले आया। राजा ने यवुक को देखा तो देखता ही रह गया। वह युवक बीस-बाईस वर्ष की आयु का था। वह राजकुमारों के समान सौम्य और सुन्दर था। उस युवक के चेहरे पर एक अलग सा आकर्षण और आत्मविश्वास था। राजा के साथ ही राजा के आसपास के लोग भी युवक को बड़े ध्यान और उम्मीद से देख रहे थे।
युवक ने सबसे पहले राजा और रानी का अभिवादन किया और इसके बाद उनसे पूरी बात बताने को कहा। राजा के स्थान पर राजकुमारी की सहेली ने युवक को राजकुमारी के महल के बगीचे में घूमने और दुर्गन्ध आने से लेकर विहोश होने तक की कहानी सुना दी। वह युवक पूरी बात ध्यान से सुनता रहा। इसके बाद उसने राजकुमारी को बगीचे में ले चलने के लिए कहा।
राजा ने युवक से कुछ नहीं कहा। उसने राजकुमारी की सेविकाओं को आदेश दिया कि बगीचे में राजकुमारी के लिए आरामदायक बिस्तर लगाया जाए और फिर राजकुमारी को बगीचे में पहुँचाया जाए। राजा की आज्ञा का तुरन्त पालन हुआ और बगीचे में शानदार बिस्तर लगा दिया गया। इसके बाद सेविकाओं ने राजकुमारी को उठाकर बगीचे में पहुँचा दिया। युवक ने राजकुमारी का बिस्तर एक वृक्ष के नीचे लगवाया था। बसन्त के दिन थे।
सुबह की हल्की-हल्की धूप बहुत अच्छी लग रही थी। राजकुमारी एक वृक्ष के नीचे लगे बिस्तर पर अचेत पड़ी थी। उसके चारों ओर राजा-रानी और राज्य के अन्य लोग खड़े थे। सभी की नजर उस आकर्षक युवक पर थी। अचानक नवयुवक ने दोनों आँखें बन्द करके अपने हाथ आसमान की ओर उठाए और वह ईश्वर की प्रार्थना कर रहा था। इसके बाद उसने एक बाँसुरी निकाली और बजाने लगा। बाँसुरी की धुन में आलौकिक दिव्य आनन्द था। और उस बासुरी की धुन में ,सभी खो गए।
यकायक एक चमत्कार हुआ। राजकुमारी जिस वृक्ष के नीचे लेटी थी वह सुगन्धित फूलों से भर उठा और उसके फूल राजकुमारी पर गिरने लगे। अब वह युवक बगीचे में घूम-घूमकर बाँसुरी बजाने लगा। वह बाँसुरी बजाते हुए जिस वृक्ष के नीचे से गुजर रहा था ,वह वृक्ष फूलों से लद जा रहा था। उसी समय अचानक राजकुमारी को होश आ गया। वह उठकर बैठ गई और बगीचे में चारों ओर फैले हुए फूलों को आश्चर्य से देखने लगी।
इसके पहले राजकुमारी और किसी ने भी ऐसे फूल नहीं देखे थे। राजा-रानी और राज्य के सभी लोग बहुत खुश हुए। वे राजकुमारी के समाचार पूछने लगे और वे उस युवक को कुछ देर के लिए भूल गए। जब उन्हें युवक की याद आई तो वह जा चुका था। राजा और उसके सेवकों ने उस युवक को ढूँढ़ने की बहुत कोशिश की, किन्तु वह नहीं मिला।
अगले दिन राज्य के सारे वृक्षों पर रंग-बिरंगे फूल खिले थे और उनकी सुगन्ध से पूरा वातावरण महक रहा था। कहा जाता हैं कि वह युवक हर बसन्त में बाँसुरी बजाता हुआ निकलता है, और उसकी बाँसुरी की आवाज से सभी वृक्ष फूलों से लद जाते हैं। और चारों ओर मोहक सुगन्ध फैल जाती है।
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आर्किड के फूल अरुणाचल की लोक-कथा ।