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मांगल गर्ल नंदा सती, उत्तराखंड माँगल गीतों के संरक्षण में दे रही महत्वपूर्ण योगदान

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आज उत्तराखंड के कई युवा अलग अलग क्षेत्रों में उत्तराखंड की संस्कृति के संरक्षण और उसके प्रचार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहें हैं। उन्ही में से एक नाम है नंदा  सती  का जिन्हे अब उत्तराखंड के लोग मांगल गर्ल के नाम से जानने लगे हैं।

उत्तराखंड माँगल गीत

जैसा कि हम सब लोगों को पता है , कि मांगल गीत हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। जैसा कि नाम से पता चल रहा है  उत्तराखंड  में मंगल अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को मांगल गीत कहते हैं। शादी ,विवाह ,नामकरण , जनेऊ आदि शुभ कार्यों पर उत्तराखंड की संस्कृति में शुभ गीत गए जाते हैं।  उत्तराखंड के इन मांगल गीतों को गढ़वाली में माँगल और कुमाऊनी में शकुन आखर या फाग  कहते हैं। मांगल गीतों को महिलाएं पारम्परिक वेश भूषा पहन कर ,समूह में एक सुर में गाती हैं।

विलुप्त हो रहे मांगल गीतों को दुबारा पहचान दिला रही है मांगल गर्ल :-

वर्तमान में उत्तराखंड के मांगल गीत अब विलुप्ति की कगार पर हैं। लोग अपनी लोक परम्परा को भूलते जा रहे है। इन्ही विलुप्त होती उत्तराखंड की परम्परा को दुबारा जीवंत करने की कोशिश कर रही उत्तराखंड की मँगलेर बेटी नंदा सती। उत्तराखंड चमोली। जिले के नारायणबगड़ ब्लॉक के नारायणबगड़  गावं की रहने वाली नंदा सती को दादी से विरासत में मिला मांगल गीत गुनगुनाने का हुनर। और  नंदा  ने मात्र 20 वर्ष की आयु में ही मांगल गीत गाना शुरू कर दिया था। नंदा सती की पढाई   तक विज्ञानं वर्ग से नारायणबगड़ में ही हुई। वर्तमान में नंदा सती हेमवती नंदन विश्वविद्यालय श्रीनगर में पढाई कर रहीं हैं। और अपनी  उत्तराखंड मांगल गीतों  मंगल यात्रा को  भी चलायमान किये है।

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मांगल गर्ल

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मांगल गर्ल नंदा सती बहुमुखी प्रतिभा की धनी है। नंदा एक होनहार छात्रा होने के साथ साथ एक अच्छी खिलाडी भी है। NSS विंग की होनहार भी है। इसके साथ साथ संगीत की अच्छी जानकार भी है नंदा।  हारमोनियम वाद्य का भी नंदा को अच्छा ज्ञान है।  जो उनके यूट्यूब वीडियोज से पता चलता है। कोरोना काल जहा कई लोगो के लिए दुखद स्वप्न की तरह आया तो कई लोगों ने आपदा में अवसर तलाश कर अपने हुनर को और चमकाया।  उन्ही में से एक नाम है नंदा सती का ,जिन्होंने  कोरोना।  काल में घर में रहकर  अपनी परम्परा को डिजिटल माध्यम , फेसबुक ,यूट्यूब आदि  से देश विदेशों तक पहुंचाया ही नहीं ,वरन अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

मांगल गर्ल् नंदा सती के इस अनुकरणीय कार्य से गदगद लोगो ने उन्हें , मांगल गर्ल ,का नाम दिया।  नंदा सती के इस सफर में उनका पूरा साथ दिया है ,उनकी मित्र किरण नेगी ने। मांगल गीतों पर दोनों को जुगलबंदी देखते बनती है। तबले पर इनका साथ देते हैं श्रीनगर के योगेश ( योगी जी ) प्रतिभा संपन्न नंदा सती और किरण नेगी ने ,अपनी संस्कृति अपने उत्तराखंड के मांगल गीतों को समृद्ध करने और संरक्षण की जो मुहीम शुरू की है ,वह अनुकरणीय है। अपनी परम्परा और अपनी संस्कृति से बिमुख हो रहे युवाओं के लिए ये दोनों एक प्रेणा श्रोत हैं।

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उत्तराखंड मांगल गीत का वीडियो यहाँ देखें :-

संदर्भ :- 

इस जानकारी रूपक लेख का संदर्भ हमने , नंदा सती  के सोशल मिडिया हैंडल्स और  यूट्यूब चैनल , तथा सोशल  मिडिया पर उपलब्ध  अशोक जोशी जी के लेख से लिया है। इस लेख में नंदा  सती जी के मंगल गीत का  वीडियो का लिंक द्वार दिखा रहे हैं।  सभी लोगों से निवेदन है ,उत्तराखंड संस्कृति के लिए अतुलनीय योगदान देने वाली नंदा सती जी से यूट्यूब पर जुड़े और उत्तराखंडी मांगल गीतों का आनंद लें। इस लेख में प्रयुक्त फोटोज नंदा सती जी के सोशल मीडिया हैंडल्स से लिये गए हैं।

नंदा सती के यूटयूब चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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