Home संस्कृति यकुलांस – पांडवाज टीम की इंटरनेशनल लेवल की प्रस्तुति

यकुलांस – पांडवाज टीम की इंटरनेशनल लेवल की प्रस्तुति

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यकुलांस

यकुलांस का मतलब होता है  अकेलापन। चमत्कारी शार्ट फ़िल्म है पांडवाज की यकुलांस। चमत्कारी इसलिए बोल रहे है, कहते हैं जब तक कोई अपना दर्द बयां नही करता ,तब तक किसी को पता नही चलता कि उसके अंदर कितना दर्द भरा है। मगर इसे पांडवाज की मेहनत और लगन का चमत्कार ही कहंगे बिना रोने धोने के सीन के ,बिना हल्ला गुल्ला के पहाड़ और पहाड़ में रहने वाले अकेले बुजुर्गों की पीड़ा का ऐसा चित्रण किया है, कि आखों से आंसू टपकते हैं,और दिल से आवाज आती है बस !!!!!अब नही!!

आइये इस अद्वितीय मूवी यकुलांस के बारे में शुरू से बात करते है। जैसा कि हम सबको पता है। ईशान डोभाल ,कुणाल डोभाल ,और सलिल डोभाल ये तीन भाइयों की जोड़ी का नाम है, पांडवाज , जैसे पांच पांडव पूरी सेना के बराबर दम रखते थे। वैसे ही ये तीन भाई ,कला संगीत ,और फ़िल्म के बारे में, अपने आप मे एक संपूर्ण टीम हैं। एक भाई ,लेखक और निर्देशक है। दूसरा संगीतकार  और गीतकार है। और कैमरे के पीछे कमाल दिखाते तीसरे भाई।

अभी तक पांडवाज टीम ने जो भी वीडियो ,या गीत निकाले हैं, उनमे अपनी क्रेटिविटी, मेहनत और लगन की अमिट छाप छोड़ी है। उनका फुलारी गीत और शकुना दे सबसे ज्यादा पसंद किए गए गीत हैं।

अब बात करते हैं पांडवाज की लेटेस्ट वीडियो यकुलांस की, यकुलांस की रिलीज के एक दिन पहले पांडवाज ने शाम को एक फेसबुक लाइव किया था, उस लाइव को देखकर अंदाजा हो गया था,कि एक नेक्स्ट प्रोजेक्ट यानी यकुलांस मूवी धमाका होगा, क्योंकि अमूमन मैंने जितने भी लाइव देखे सब मे बोरिंग लगी। मगर पांडवाज की लाइव मजा आया,एक मिनट के लिए फेसबुक से हटने नही दिया दोनो भाइयों ने ।

यकुलांस कहने को 28 मिनट की शॉर्टफिल्म है। लेकिन इससे जो तृप्ति मिलती है,वो 3:30 घंटे वाली हिंदी फिल्म में भी नही मिलती है। मतलब मूवी देखने के बाद आंखे नम ,और एक प्रवासी के रूप में दिल मे एक ही बात आती है “पहाड़ की ऐसी हालत का जिम्मेदार मैं भी हूँ ” कैमरा वर्क बेस्ट है, छाया वाला सीन हो ,या फिर फलेश बैक में जाने का सीन भी बेहतरीन है। कहानी तो बेस्ट है ही , लेकिन सबसे बेस्ट इसमे ढोल के डायलॉग हैं। जी हां ढोल के डायलॉग ,अब आप बोलेंगे कि ढोल कब से बोलने लगा ?

लेकिन जब आप पांडवाज की फ़िल्म यकुलांस देखेंगे ,तो ढोल का ऐसा प्रयोग देख कर आप भी चौके बिना नही रह पाएंगे, मेरी तरह शायद आप भी पहली बार यही सोचकर चकित हो जाएंगे, कि ढोल का ऐसा प्रयोग भी हो सकता है।

फ़िल्म का निर्देशन उच्च स्तर का है, उच्च स्तर के निर्देशन का ही कमाल है, कि फ़िल्म में बड़ी आसानी से समझा, दिया कि इंसान ने इंसान का साथ छोड़ दिया है, लेकिन जानवर अभी भी वफादार है। गीत संगीत और संगीतकार सब एकदम टॉप क्लास है। दीपा बुग्याली की दर्द भरी आवाज में गीत, उफ गला भर आता है, और जगदम्बा चमोला जी की कविता,वो भी रैप अंदाज में …बस दिल से एक ही बात निकलती वाह !!! क्या गीत है, और आह! ये क्या हाल हो गया मेरे पहाड़ का।

अब आगे नही बताऊंगा, मूवी के बारे में ,उसके लिए आपको फ़िल्म यकुलांस को देखना होगा। इसी लेख या मूवी रिवयू में हमने फ़िल्म का लिंक लगा रखा है। आप यहाँ यकुलांस मूवी देख सकते हैं।

अब बात करते हैं,इस मूवी की बुरी बात के बारे में , मतलब बुरा क्या है पांडवाज कि फ़िल्म में ?

पांडवाज की फ़िल्म में एक खराबी है, कि इतनी शानदार और क्रेटिव फ़िल्म को, नेशनल लेवल पर रिलीज होना चाहिए था। तभी पता चलता ,उत्तराखंड में टैलेंट किस स्तर पर है। नकली कॉन्टेंट, साउथ की फिल्मों की कहानी से धड़ा धड़, रिमेक बनाने वाले बॉलीवुड वालों को भी पता चले कि अच्छा कंटेंट और क़्वालिटी वर्क क्या होता है।

यकुलांस फ़िल्म यहां देखें –

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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