कुमाउनी कवि और हास्य व्यंग लेखक विनोद पंत खंतोली जी कि कुमाऊनी भाषा में हास्य व्यंग की किताब फसकटेल बाजार में बिकने के लिए उपलब्ध हो गई है। मूल रूप से बागेश्वर के खंतोली गाव के निवासी विनोद पंत जी वर्तमान में हरिद्वार में निवास करते हैं। कुमाऊनी भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित पंत जी के लेख और कविताएं ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनो प्रकार के माध्यमों में छपते रहते हैं। दुधबोली कुमाऊनी के संरक्षण के लिए प्रयासरत पंत जी ,कुमाऊनी भाषा के संरक्षण के लिए होने वाले सभी कार्यक्रमों में अग्रणीय रूप से भाग लेकर वहां श्रोताओं को अपनी कुमाऊनी कविताओं से मंत्रमुग्ध कर देते हैं। आज के समय में बहुत कम लोग हैं जो लेखन कार्य करना चाहते हैं । उसमे से अपनी लोक भाषा के लिए लिखने वाले ना के बराबर हैं । यदि किसी ने अपनी लोकभाषा में लिखकर, उसपे किताब छपवाने का साहस किया है,तो उसका साथ देना आवश्यक हो जाता है ।
उनके लेख जानदार भी हैं और शानदार भी है।
जैसे कुमाउनी बोली के अंदर भी कई तरह की बोलियां हुई। उन बोलियों में अगर कोई एयरटेल/ फ़ेयरटेल टाइप की कम्पनी आ गयी तो वह कैसे संवाद करेगी।
बानगी ये देखिए…
पहाड़ में एक मोबाइल कम्पनी शुरू हैगे .. सब काम पहाड़ि में हुण बैठ गो . मोबाइल कम्पनी नान फसकटेल छ . –
गहाक सहायता में एक आदिमैलि फोन कर तो कुछ यसि किसमैकि बात भै –
फसकटेल हिटाव फोन में तुमर स्वागत छ .
असकोटि भाषा लिजी एक च्यापो . बागशेरै भाषा लिजी द्वि च्यापो . दानपुरै भाषा लिजी तीन च्यापो.. अलमोड़ि लिजी चार च्यापो ….. ( तदुक में आदिम द्वि च्यापि दिं ).
तुमैलि बागशेरि भाष छाँटि राखी .. होय कूछा तो एक च्यापो . नतर द्वि च्यापो .
अगर तुम पैलि डबल चुकाइ ग्राहक छा तो एक च्यापो . डबल पछिल चुकूणी छा तो द्वि च्यापो .( आदिम एक च्यापि दीं )
अगर तुम हमार इसकीम जाणन चाछा तो एक च्यापो . ओर अगर इटरनैट क बार में जाणन चाछा द्वि च्यापो . फोन कि घण्टी में झ्वाड़ चाचैरि भगनौल सैट करण चाछा तीन च्यापो .
और अगर हमार गहाक सेवा सैप दगाड़ फसक करण चाछा तो नौ च्यापो .
तुमैलि नौ च्यापि राखो .. यां फोन करण में तीन मिनटाक आठान लागाल . अगर होय कूछा तो एक च्यापो . नन्तरि द्वि च्यापो .
(आदिम एक च्यापों )
तुमर फोन हमार लिजी जूरूरी छ . यो फसक फराव कें हम टेब ले कर सकनू .लैन झन काटिया . हमार गाहक सेवा सैप लोग दुसार नाक दगाड़ में फसक करण लागि रयी . तुमर दगाड़ ले कराल . तपार थाओ और लैन में रओ ( पारै भीड़ै की बसन्ती छोरी … यकैं आपुण फोन में स्यट करण चाछा तो एक दबाओ … ओ चन्दू डराइबर … यकै स्यट करण चाछा तो द्वि दबाओ … रुकमा चांदी को बटना ……हैलो .. फसकटेल गहाक सेवा केन्द्र बटी मी गोपाल सिंह बलाड़यू .. तुमरि कि सहायता कर सकू ?
आदिम – मील बेई यमैं पन्चास रुपे डालन पर कैकै दगाड़ फसक नै हुणाय .कि बात हैरैन्हेलि ?
जागो चां धें हो … कि हैरौ ….तुम लैन में रया ….
होय चा यार भुला …
तुम लैन मैं रया हां …
होय होय तु भलीके चा ..
होय चाड़यू हो .. तुम लैन में रया .
होय लैन में छ्यू … यार तेरी आवाज सुणी जसि लागड़ै … कां छ भुला तेर घर .
सनड्यार … और तुमार …
यार मेर मनकोट छ . सनड्यार को गौं छ ?
सनड्यार ब्यैड़ में छ हो …
ब्यैड़ कैक च्योल भये ला तु …
मदन सिंह क
को मधन सिंह जो कोपरेटिव बैंक में छी …
होय .. तुम पछाड़छा बाबू कें …
होय यार .. दगड़ै छ्यां नौकरी में …
तुम को भया ?
मनकोट क … नरैण सिंह ..त्योर बाब कस हैरौ रे च्याल ?
ठीक छन हो .
यार आपुण बाब छैं कये नरैण का याद करनैछी बल .
होय ठीक छ काका .. ब्याल बातै करै द्यूल ..
होय रे च्याल करै दिये पें ..
ठीक छ काकज्यू पैलाग पैं …
आशीर्बाद रे च्याल ….धरू पें ऐल .. भोव बात करुल ..
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