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काशीपुर का इतिहास ,वो शहर जहाँ गुरु द्रोण ने पांडवों को सिखाई धनुर्विद्या।

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वर्तमान में काशीपुर उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध औधोगिक नगर के रूप में स्थापित हो रहा है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध औधोगिक नगर के साथ साथ इस शहर का इतिहास बहुत ही समृद्ध रहा है। 

भौगोलिक स्थिति –

यह नगर उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के ऊधमसिंहनगर जिले का तराई क्षेत्र में इसके मुख्यालय रुद्रपुर से लगभग 60 किमी. पश्चिम में ढेला नदी के बाम तट पर 29°-13′ उत्तरी अक्षांश तथा 78°-58′ देशान्तर पर प्राचीन नगर गोविषाण टीले के निकट डेढ़ किमी. की दूरी पर स्थित है। चंद राजाओं के में यह उसके ‘कोटा’ मंडल का मुख्यालय हुआ करता था, किन्तु सन् 1639ई. में राजा बाजबहादुरचन्द (1638-1678ई.) के तराई क्षेत्र के प्रशासनाधिकारी श्री काशीनाथ अधिकारी के द्वारा सन् 1639ई. में एक नये नगर के रूप में बसाये जाने से इसका नाम काशीपुर हो गया।

काशीपुर का इतिहास –

सन् 1745 में यहां पर राजा के तत्कालीन अधिकारी शिवदेव जोशी के द्वारा यहां पर एक किले का निर्माण कराया गया था
जिसका प्रथम किलेदार हरिराम जोशी तथा बाद में बाजपुर के हाकिम शिरोमणिदास को नियुक्त किया गया था। सन् 1764 में फर्त्यालों द्वारा उकसाये गये विद्रोहियों द्वारा इसी किले में शिवदेव जोशी की हत्या भी की गयी थी।

सन् 1803 में इसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने अधिकार में ले लिया तथा अपनी एक प्रशासनिक इकाई के रूप में इसकी पृथक् प्रशासनिक व्यवस्था कर दी गयी और कम्पनी के संरक्षण में अल्मोड़ा के चंदवंशी शासक राजा महेन्द्र सिंह के वंशज शिवसिंह को पेंशन देकर यहां के राजा के नाम से यहां पर स्थापित कर दिया गया, जिन्हें बाद में यहां का  मजिस्ट्रेट भी बना दिया गया था। इसका प्राचीन नाम ‘गोविषाण’ था जिसका आंखों देखा विवरण सातवीं शताब्दि के चीनी यात्री ह्वेनसांग   ने अपने यात्रा विवरण में दिया है।

काशीपुर का इतिहास ,वो शहर जहाँ गुरु द्रोण ने पांडवों को सिखाई धनुर्विद्या।

गुरु द्रोण ने पांडवों को सिखाई धनुर्विद्या :-

मध्यकाल में इसका नाम शायद उझैनी हो गया था। इसका संकेत इस बात से मिलता है कि काशीपुर के पुराना किलाक्षेत्र को उझैनी/उजैनी तथा यहां की बहुमान्य देवी, जिसे ज्वालादेवी का रूप माना जाता है तथा जिसे आजकल ‘बालसुन्दरी देवी’ के नाम से जाना जाता है, को स्थानीय लोगों के द्वारा उज्जैनी/उज्झनी देवी कहा जाता है। यहां के प्राचीन किले के निकट एक सरोवर है जिसे ‘द्रोणसागर’ कहा जाता है। इसके विषय में मान्यता है कि यहीं पर पांडवों ने गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखी थी औरअपने गुरु द्रोणाचार्य के सम्मान में इसे बनवाया था।

इसके पास एक ऊंचे चबूतरे पर तीरसंधान किये हुए गुरू द्रोणाचार्य की एक बड़ी मूर्ति स्थापित है। यह शहर उत्तराखंड  के अनेक ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व वाले स्थानों में एक है। विगत शताब्दियों में कनिंघम तथा श्रीकृष्णदेव आदि पुरातत्वविदों के द्वारा किये गये उत्खननों के फलस्वरूप यहां पर पुरातात्विक महत्व की अनेक वस्तुएं मिली हैं।

आधुनिक समय में भी उत्तराखंड के अन्यतम पुरातत्वज्ञ डा. के.पी. नौटियाल के द्वारा 1960 ई. में कराये गये उत्खननों के फलस्वरूप आठवीं शताब्दि की ‘त्रिविक्रम’ की एकमूर्ति प्राप्त हुई है जो कि सम्प्रति राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में संरक्षित है। ऐसे ही डा. यज्ञदत्तशर्मा द्वारा किये गये उत्खननों में उन्हें अनेक चित्रित धूसर मृद्भाण्डों के अवशेष मिले हैं जो कि इसकी ऐतिहासिकता को महाभारत काल तक ले जाते हैं।

वैसे काशीपुर का इतिहास का वर्णन बहुत विस्तृत है यहाँ काशीपुर के इतिहास का एक संक्षिप्त विवरण  दिया है। जिसका संदर्भ साभार उत्तराखंड ज्ञानकोष पुस्तक से लिया है।

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