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कालू सिद्ध हल्द्वानी के रक्षक क्षेत्रपाल की कहानी | kalu sidh mandir haldwani

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kalu sidh mandir haldwani

कालू सिद्ध बाबा ( kalu sidh mandir haldwani ) – उत्तराखंड का व्यापारिक नगर के नाम से प्रसिद्ध हल्द्वानी आज की तारीख़ में किसी पहचान का मोहताज नहीं है। इसे कुमाऊं का द्वार भी कहते हैं ,उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में जाने का मार्ग भी यहीं से खुलता है। हल्द्वानी नगर उत्तराखंड के नैनीताल जिले में समुद्रतल से 1434 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है।

ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, हल्द्वानी कुमाऊं क्षेत्र में व्यापार और प्रशासन का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा। ​​यह शहर उत्तरी भारत के मैदानों को हिमालय के पहाड़ी स्टेशनों से जोड़ने वाले मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में कार्य करता है । जैसा की हमको पता है हल्द्वानी का नाम यहाँ होने वाले हल्दू के पेड़ो के नाम पर पड़ा है। हल्दू + वानी ,जहाँ वानी का अभिप्राय वनो से है। और हल्द्वानी का शब्दार्थ हुवा हल्दू पेड़ों का वन क्षेत्र।

हल्द्वानी शहर के बीचो बीच कालाढूंगी चौराह पर कालू सिद्ध बाबा का मंदिर है जिन्हे कालू साई बाबा के नाम से जाना जाता है। कहते हैं ये बाबा हल्द्वानी के रक्षक देवता हैं। या उस क्षेत्र के क्षेत्रपाल हैं। हल्द्वानी नगर वासी किसी भी शुभ काम से पहले कालू साई बाबा या कालू सिद्ध का आशीर्वाद लेने जरूर आते हैं। आते जाते राहगीर भी कालू साई बाबा या कालू सिद्ध बाबा का आशीर्वाद अवश्य लेते हैं।

कालू सिद्ध हल्द्वानी के रक्षक क्षेत्रपाल की कहानी | kalu sidh mandir haldwani

कालू सिद्ध बाबा या कालू साई बाबा की कहानी –

कालू सिद्ध बाबा के बारे में हल्द्वानी में जनश्रुतियों के माध्यम से कहानी कुछ इस प्रकार बताई जाती है , कहते हैं अंग्रेजों के समय एक बाबा यहाँ आये थे ,उन्हें यहाँ भगवान शनिदेव की उपस्थिति का अहसास हुवा। इसलिए उन्होंने यहाँ पर शनि मठ की स्थापना की , यहाँ मंदिर में एक शनि मूर्ति भी है। इसलिए यहाँ प्रत्येक शनिवार भीड़ अधिक रहती है। कालू साई बाबा को हल्द्वानी का क्षेत्रपाल भी कहते हैं। हल्द्वानी वासियों का कालू सिद्ध बाबा से बहुत लगाव है। कहते हैं कालू साई बाबा को गुड़ बहुत पसंद था। इसलिए कालू साई बाबा की विशेष कृपा लेने के लिए उनका मनपसंद गुड़ का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

इसके अतिरिक्त हल्द्वानी ब्लाक के बसानी गांव के निकट एक घने जंगल के बीच भी बाबा कालू सैय्यद के नाम से एक पूजा स्थल है जहां पर बाबा को बीड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस परम्परा के विषय में कहा जाता है कि एक बार गांव के कुछ लोगों ने देखा कि यहां पर एक बाबा बैठा है जो बीड़ी मांग रहा था और स्वयं कुछ मांगने को भी कह रहा था। लोगों ने बाबा को बीड़ी तो दे दी पर मांगा कुछ नहीं।

कुछ दूर जाने पर उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो बाबा अन्तर्धान हो चुके थे। इसके बाद यह स्थान बाबा कालू सैय्यद शाह के नाम से जाना जाने लगा और आते-जाते पथिक एवं श्रद्धालु यहां पर बीड़ी चढ़ाकर जाते हैं। माना जाता है कि इससे बाबा प्रसन्न होते हैं।

कालू सिद्ध बाबा का इतिहास –

कालू सिद्ध बाबा के बारे में इतिहासकार बताते हैं कि कालू सैय्यद और मैमंदापीर तुर्क तैमूरलंग की सेना में पीर थे। कत्यूरी राजा धामदेव से हारने के बाद  मारे गए थे। कालू सिद्ध बाबा के बारे में प्रोफ़ेसर DD शर्मा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक उत्तराखंड ज्ञानकोष में कुछ इस प्रकार जानकारी संकलित की है। ,

गुरुपादुका (पांडुलिपि) में कहा गया है कि राजा धामदेव व तुर्कों (तैमूरलंग की सेना) के बीच पीराने कलियर में सन् 1398ई. में गंगातट पर हुए युद्ध में अनेक पीर और वली यौद्धा युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हुए थे और अनेकों को कैद कर लिया गया था। इनमें प्रमुख थे ‘मैमंदापीर’ व ‘कालू सैय्यद’।

इस सम्बन्ध में डॉ. भट्ट एक ओर लिखते हैं (पृ.45) कि वह स्थायी रूप से पहाड़ में बस गया और दूसरी ओर (पृ. 46 में) लिखते हैं वह हर की पौड़ी के पास शहीद हो गया। (कत्यूरी मानसरोवर अक्टू. दिस. 2001)। उत्तराखंड में कालू सैय्यद के कई आस्था स्थल हैं। इसका एक आस्था स्थल हल्द्वानी में कालाढूंगी रोड के चौराहे पर है जहां मंगल व शनिवार को गुड़ का प्रसाद चढ़ाया जाता है व काला टीका लगाया जाता है। “

एक अन्य जानकारी के अनुसार ये एक तुर्क पीर थे, जो अपने सेवकों के साथ हिमालय की यात्रा पर निकले थे। उत्तराखंड के पहाड़ों में जिस स्थानों में इन्होंने अपना डेरा जमाया या जहां रुके आज वहीं उनके पूजा स्थल हैं। कहते हैं ये हिंदुओं और मुसलमानों में बराबर लोकप्रिय थे इसलिए इन्हे दोनो धर्म के लोग अपनी अपनी पूजा पद्धति से पूजते हैं।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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