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कार्तिक स्वामी मंदिर के बारे में –
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में रुद्रप्रयाग पोखरी मोटर मार्ग पर कनक चौरी नामक गाँव के पास क्रोंच पर्वत पर बसा है। कार्तिक स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर समुद्र तल से लगभग 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है। कहते हैं कि कार्तिक स्वामी यहाँ आज भी निवाण रूपमें तपस्या करते हैं। रुद्रप्रयाग से लगभग 36 किलोमीटर दूर कनकचौरी पहुँच कर वहां से लगभग 4 किलोमीटर की चढ़ाई के साथ 80 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद पहुँच जाते हैं,कार्तिक स्वामी मंदिर में। इस मंदिर में सैकड़ों घंटियां लटकाई हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर की घंटियों की आवाज 800 मीटर तक सुनाई पड़ती है।क्रोंच पर्वत के चारो ओर का दृश्य रमणीक है। यहां से त्रिशूल ,नंदा देवी ,आदि प्रसिद्ध हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन होते हैं। दक्षिण भारत मे कार्तिक स्वामी को कई मंदिरों में ,मुरुगन स्वामी या कार्तिक स्वामी के नाम से पूजा जाता है। लेकिन उत्तराखंड में कार्तिक स्वामी का एक ही मंदिर है। और कहते हैं ,यही वो मंदिर है ,जहाँ से कार्तिक स्वामी का दक्षिण का सफर शुरू हुआ था।
कार्तिक स्वामी मंदिर के चारों ओर लगभग 360 गुफाएं और जलकुंड हैं। कहते हैं कि क्रोंच पर्वत की घाटी में,विहड़ के बीच एक गुफा में कार्तिक स्वामी का भंडार है। यह भंडार ज्यादा ऊँचाई पर होने के कारण इसके दर्शन करना ,मुश्किल ही नही लगभग नामुमकिन है । कहते हैं कि इस भंडार के दर्शन ,अभी तक उनके दो ही भक्त कर पाएं है।
स्थानीय पंडित विद्वानों के मतानुसार, कार्तिक स्वामी मंदिर के आस पास लगभग 360 गुफाएं और इतने ही जलकुंड हैं। जगतकल्याण के लिए आज भी अदृश्य रुप से यहां साधना करते हैं। यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना माना जाता है। और इसी स्थान पर कार्तिक स्वामी ने भगवान शिव को अपनी अस्थियां अर्पित की थी।
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पौराणिक मान्यता
कार्तिक स्वामी मंदिर रुद्रप्रयाग में विशेष कर संतान प्राप्ति के लिए कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विशेष पूजा की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान और अखंड जागरण किया जाता है। यहाँ भगवान कार्तिकेय पुत्रदा के रूप में पूजे जाते हैं। संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत लेती हैं। और रात भर अखंड जागरण करते हुए हाथ मे दीपक लेकर खड़ी रहती हैं।
अगले दिन भगवान कार्तिकेय को पीले अक्षत से सजाया जाता है। भगवान की पूजा अर्चना के साथ भक्त लोग अपना व्रत खोलते हैं। कहते हैं इस प्रकार भगवान कार्तिकेय की सच्चे मन से पूजा औऱ व्रत करने से निसंतान लोगों को संतान प्राप्ति होती है। कहा जाता है, कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान कार्तिकेय ने देव सेनापति के रूप में ताड़कासुर का वध किया था ।
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कार्तिक स्वामी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा :-
पौराणिक कथाओं के अनुसार , कार्तिकेय भगवान शिव के बड़े पुत्र हैं और भगवान गणेश छोटे पुत्र हैं। एक बार देवताओं में यह चर्चा हुई कि श्रेष्ठ पूजा का अधिकार किसे मिले अर्थात किस देव की पूजा हर शुभ कार्य मे पहले हो? इस बात को लेकर काफी बहस हुई। सब लोग भगवान शिव के पास गए। इंद्र ने कहा कि मैं देवराज हूँ इसलिए प्रथम पूजा का अधिकारी मैं हूँ। और अन्य देवो ने भी खुद को प्रथम पूजा का अधिकारी बताया और कुछ ने भगवान कार्तिकेय को प्रथम पूजा के लिए उपयुक्त बताया क्योंकि वो देव सेनापति और भगवान शिव के पुत्र हैं।
तब भगवान शिव ने कहा, इस समस्या का समाधान एक प्रतियोगिता करके कर देते हैं। प्रतियोगिता इस प्रकार आयोजित की गई कि जो पूरे संसार का चक्कर काट कर सबसे पहले कैलाश पहुचेगा वो विजयी माना जायेगा और उसे प्रथम पूजा का अधिकार मिलेगा।
सभी देवता मान गए , सब लोग आपने अपने वाहन के साथ तैयार हो गए । तब भगवान गणेश भी अपने वाहन मूषक राज के साथ तैयार हो गए। जैसे ही प्रतियोगिता शुरू हुई सब देवता अपने अपने वाहन के साथ उड़ गए लेकिन गणेश जी का वाहन मूषक राज थे,वे उड़ नही सकते थे। अतः भगवान गणेश ने भगवान शिव और पार्वती की परिक्रमा की और प्रतियोगिता वाले स्थल में पहुच गए।
उनसे इस कृत्य का कारण पूछा गया तो ,उन्होनें कहा कि माता पिता को संसार का में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इसलिए मैंने संसार की परिक्रमा की जगह माता पिता कि परिक्रमा की । भगवान शिव और अन्य देव उनके इस तार्किक उत्तर से प्रसन्न हुए और उस दिन से गणेश भगवान को प्रथम पूजा का अधिकार मिल गया।
वापस आने पर जब कार्तिकेय जी को यह ज्ञात हुवा तो ,उन्होंने इसी क्रोचं पर्वत पर आकर अपनी समस्त अस्थियां भगवान भोलेनाथ को अर्पित कर दी और स्वयं निर्वाण रूप में तपस्या करने लगे। कहते है कि भगवान कार्तिकेय की अस्थियां यहीं हैं। और बताते हैं कि कार्तिक स्वामी अभी भी यहाँ निर्वाण रुप मे तप करते हैं। इसी घटना पर आधारित है यह प्रसिद्ध मंदिर।
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