Home संस्कृति खान-पान उत्तराखंड का पहाड़ी फल हिसालू, जानिए फायदे और नुकसान।

उत्तराखंड का पहाड़ी फल हिसालू, जानिए फायदे और नुकसान।

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हिसालू
Hisalu fal ,himalayan raspberry

उत्तराखंड की पहाड़ियों के बीच कटीली झाड़ियों में  उगने वाला यह फल , हर एक उत्तराखंड निवासी की बचपन की यादें समेटे हुए दिव्य फल है। कुमाऊँ क्षेत्र में इसे हिसालू  और गढ़वाल क्षेत्र में इसे हिसर नाम से जाना जाता है।

हिसालु या हिसर पहाड़ी फल का परिचय –

हिसर को हिमालय की रसबेरी कहा जाता है। हिसालू का लैटिन नाम  (Rubus elipticus ) है। यह rosaceae वर्ग की काँटेदार झाड़ीनुमा वनस्पति है। हिसालू ( hisalu )  या हिसर ( hisar ) का फल छोटे छोटे , नारंगी रंग के रस भरे दानों से मिलकर बना होता है। कम पका हुआ हिसालू हल्का खट्टा, मीठा होता है। लेकिन जो एक दम लाल पका होता है। वो एकदम मीठा और मुंह मे एकदम घुल जाता है।

उत्तराखंड का पहाड़ी फल हिसालू बहुत ही लाभदायक फल है। मगर यह कटीली झाड़ियों में उगता है। हिसालू की झाड़ियों  के कांटे बहुत ही खतरनाक होते हैं। इसी लिए उत्तराखंड कुमाऊँ के प्रसिद्ध कवि गुमानी पंत जी ने हिसालू ( Hisalu)  एक कविता की कुछ लाइनों से इसका वर्णन किया है।

हिसालु की जात बड़ी रिसालू।

जा जाँ जाछे उधेड़ खाछे।।

यो बात को कवे गतो नि मानन,

दुद्याल गोरुक लात सैणी पडनछ।।

अर्थात हिसालु की वनस्पति, बड़ी गुस्सेल होती है। जहॉ तहां खरोच लगा देती है। मगर कोई भी इस बात का बुरा नही मानता, क्योंकि दूध देने वाले गाय की लात भी सहन करनी पड़ती है।

हिसालू (Hisalu ) ,हिसर ( Hisar ) भारत के लगभग सभी हिमालयी राज्यों में पाया जाता है। भारत के अलावा यह फल नेपाल, पाकिस्तान, पोलैंड, सर्बिया आदि देशों में भी पाया जाता है। विश्व मे हिसालू की लगभग 1500 प्रजातियां पाई जाती है। हिसालू ( hisalu ) जैसी  दिव्य औषधीय गुणों से युक्त फल को संरक्षित करने की दिशा में इसे IUCN द्वारा  World’s 100 worst invasive species  में शामिल किया गया है।

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आमतौर पर हिसालु  ( himalayan rasberi ) 2500 से 7000 फ़ीट की उचाई पर मिलता है। लेकिन वर्तमान जलवायु परिवर्तन परिस्थितियों का प्रभाव हिसर ( Hisalu ) पर भी पड़ा है, जिसके कारण यह बहुत ज्यादा उचाई में उगने लगा है।

हिसालू  के लाभ-

हिसालु में अनेक पोषक तत्व पाए जाते हैं। हिसर में विटामिन सी  , फाइबर , मैगनीज ,जिंक, आयरन, कैल्शियम, मैग्नेशियम, कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह अत्यधिक मीठा होने के बावजूद भी , इसमे शुगर की मात्रा एकदम बहुत कम होती है। उपरोक्त पोषक तत्वों के आधार पर हिसर के निम्न औषिधि लाभ हैं।

  • हिसर में  प्रचुर मात्रा में विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है, जिससे हिसालू सबसे अच्छा रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाला फल बन जाता है।
  • हिसर के फलों का रस , बुखार, पेटदर्द , खांसी, एवं गले के दर्द में लाभदायक है।
  • इसके तने की छाल का , तिब्बती चिकित्सा पद्वति में कामोत्तेजक दवाई के रूप में किया जाता है।
  • हिसर के फल के नियमित उपयोग से किडनी की बीमारियों में लाभ मिलता है। तथा इससे नाड़ी दुर्बलता भी दूर की जाती है।
  • हिसर मूत्र संबंधित बीमारियों तथा, योनिस्राव बीमारियों में लाभदायक माना जाता है।

हिसालू के नुकसान –

हिसालु एक पहाड़ी जंगली फल है। हिसर सभी दिव्य गुणों से युक्त है। वैसे इसके कोई नुकसान नही हैं। लेकिन अधिक सेवन से पेट खराब की समस्या हो सकती है। अत्यधिक सेवन किसी भी चीज का नुकसान दायक होता है। इसलिये प्राकृतिक दिव्य फल का संतुलित उपयोग अमृत का लाभ दे सकता है।

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हिसालु के उपयोग

हिसालु एक पहाड़ी जंगली फल है। वैसे तो ऐसे तोड़ते ही कहा लेने की इच्छा करती है। और ये मुह में घुल जाता है। मगर कुछ रचनात्मक प्रवर्ति के लोग इसके नए नए प्रयोग करके खाते हैं। कुछ लोग बहुत सारे हिसर तोड़ कर इसमे पहाड़ी पिसा हुआ नामक मिला कर, इसका चाट बना कर खाते हैं।

हिसर शेक की रेसिपी –

हिसर का सबसे अच्छा प्रयोग है ,  इसका का शेक बना कर पिया जाय। हिसालू का शेक अति पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। खूब सारे हिसर इकट्ठा करके, गाव के शुद्ध दूध में मिला कर थोड़ी चीनी मिला कर बड़ा स्वादिष्ट दिव्य पेय बनता है। हिसर शेक पौष्टिक और स्वादिष्ट रेसिपी है। थोड़ा हिसर इकट्ठा करने में समय लगता है। लगभग आधा किलो हिसर जमा हो गए तो, गाव का शुद्ध दूध मिलाकर पौष्टिक दिव्य हिसर पे­य बना सकते हैं। प्रयोगधर्मिता के रूप में आप इसमे , केले या अन्य चीजें मिला कर ऐसे और स्वादिष्ट और पौष्टिक बना सकते हैं।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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