Home मंदिर अटरिया देवी मंदिर: उत्तराखंड के कुमाऊं की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर

अटरिया देवी मंदिर: उत्तराखंड के कुमाऊं की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर

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अटरिया देवी

अटरिया देवी मंदिर (Atariya Devi Mandir) उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जिले के रुद्रपुर में स्थित एक प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थल है। यह मंदिर कुमाऊं के तराई क्षेत्र में बसे थारू-बुक्सा जनजातियों के बीच विशेष रूप से पूजनीय है। रुद्रपुर के उत्तरांचल राज्य परिवहन निगम बस अड्डे से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यहाँ की पौराणिक कथा और अटरिया मेला इसे और भी खास बनाते हैं। आइए, इस लेख में अटरिया देवी मंदिर के इतिहास, कथा, और महत्व को विस्तार से जानें।

अटरिया देवी मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथा –

अटरिया देवी मंदिर का निर्माण कुमाऊं के प्रसिद्ध चंद शासकों के शासनकाल में हुआ था। यह मंदिर प्राचीन समय से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, प्राचीन काल में किसी आक्रमणकारी ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था और माता की मूर्तियों को पास के कुएँ में डाल दिया था।

कहा जाता है कि रुद्रपुर को बसाने वाले चंद वंश के राजा रुद्रचंद एक बार यहाँ के जंगलों में शिकार के लिए निकले थे। शिकार के दौरान उनके रथ का पहिया एक स्थान पर जमीन में धंस गया। कई प्रयासों के बाद भी जब रथ नहीं निकला, तो राजा थककर एक वट वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगे और उन्हें नींद आ गई। नींद में माता भगवती ने स्वप्न में दर्शन दिए और बताया कि जिस स्थान पर रथ का पहिया धंसा है, वहाँ एक कुआँ है जिसमें उनकी प्रतिमा दबी हुई है।

जागने के बाद राजा ने सैनिकों को उस स्थान पर खुदाई करने का आदेश दिया। खुदाई में कुएँ के अवशेष मिले और गहराई में माता की वह प्रतिमा भी प्राप्त हुई, जिसका जिक्र स्वप्न में हुआ था। राजा रुद्रचंद ने तुरंत उस स्थान पर अटरिया देवी मंदिर का निर्माण करवाया और मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की। संयोगवश, यह घटना चैत्र नवरात्र के दौरान हुई थी, जिसके बाद से यहाँ हर साल अटरिया मेला आयोजित होने लगा।

अटरिया मेला: चैत्र नवरात्र का भव्य उत्सव :

हर साल चैत्र नवरात्र के दौरान अटरिया मेलाका आयोजन होता है, जो इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है। चैत्र नवरात्र की अष्टमी को माँ अटरिया की प्रतिमा को रुद्रपुर के रम्पुरा से ढोल-नगाड़ों के साथ शोभायात्रा में लाया जाता है। मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना के बाद प्रतिमा की स्थापना की जाती है, और अगले 21 दिनों तक यहाँ मेला चलता है।

अटरिया मेला में स्थानीय लोगों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के दूरदराज के क्षेत्रों से श्रद्धालु शामिल होते हैं। मान्यता है कि अटरिया देवी के दर्शन मात्र से निसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। मेले के दौरान भक्त मन्नत माँगते हैं और मन्नत पूरी होने पर माता को प्रसाद चढ़ाने व बच्चों का मुंडन संस्कार करने वापस आते हैं।

अटरिया देवी मंदिर का परिसर :

अटरिया देवी मंदिर का परिसर विशाल और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है। मुख्य मंदिर में माँ अटरिया की प्रतिमा के अलावा शीतला माता, भद्रकाली, सरस्वती, शिव, और भैरव के छोटे-छोटे देवालय भी मौजूद हैं। यहाँ की शांत और पवित्र वातावरण भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देता है। थारू-बुक्सा जनजाति के लोग विवाह के बाद नवदंपति को यहाँ लाते हैं ताकि वे माता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

अटरिया देवी का महत्व :

अटरिया देवी को कुमाऊं क्षेत्र में शक्ति और ममता का प्रतीक माना जाता है। यहाँ आने वाले भक्तों का विश्वास है कि माता हर मनोकामना पूरी करती हैं, खासकर संतान प्राप्ति की। इस मंदिर का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी है, क्योंकि यह चंद शासकों और तराई की जनजातीय संस्कृति से जुड़ा हुआ है।

कैसे पहुँचें अटरिया देवी मंदिर?

  • स्थान : रुद्रपुर, ऊधमसिंह नगर, उत्तराखंड।
  • दूरी : उत्तरांचल राज्य परिवहन निगम बस अड्डे से 2 किमी।
  • यातायात: रुद्रपुर रेलवे स्टेशन और पंतनगर हवाई अड्डे से आसानी से टैक्सी या बस उपलब्ध है।

निष्कर्ष :

अटरिया देवी मंदिर (Atariya Devi Mandir) न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि कुमाऊं की समृद्ध संस्कृति और इतिहास का प्रतीक भी है। अटरिया मेला और यहाँ की पौराणिक कथा इसे और भी खास बनाती है। यदि आप उत्तराखंड की यात्रा पर हैं, तो अटरिया देवी के दर्शन और मेले का आनंद जरूर लें। यहाँ की शांति और आध्यात्मिकता आपके मन को सुकून देगी।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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