Home इतिहास गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम और उनका इतिहास।

गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम और उनका इतिहास।

52 गढ़ के नाम

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उत्तराखंड में ऐसे कई नाम है जिनके पीछे गढ़ शब्द का प्रयोग होता है। वस्तुतः मध्यकाल में समस्त उत्तराखंड क्षेत्र इन गढ़ियों के शासकों द्वारा प्रशासित था। इनकी अपनी सामंती ठकुराई होती थी। और इनके अपने छोटे छोटे दुर्ग होते थे जिन्हे गढ़ ,गढ़ी  कोट या बुंगा कहते थे। इनका निर्माण पहाड़ी  ऊपर किसी समतल भूमि पर किया था।

कुमाऊं गढ़वाल में सभी राजवंशो के गढ़ों के अलावा इनके सामंतो भी अपने गढ़ होते थे। इनमे अधिकतर केवल नाम के रह  हैं अब। गढ़वाल जो पहले “केदारखंड’ के नाम से जाना जाता था। वर्तमान गढ़वाल का नामकरण ही गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम पर पड़ा है।

बताते हैं कि पँवारवंश के राजा अजयपाल( 1500-1515 ई.) के द्वारा इन गढ़ो को एक करके गढ़वाल नामक राज्य  गठन किया गया था। उस समय इनकी संख्या 52 थी। गढ़वाल के इतिहासकार श्री हरिकृष्ण रतूड़ी जी द्वारा गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम निम्न बताये गएँ हैं।

गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम

गढ़वाल के 52 गढ़ के नाम –

1 .अजमीरगढ़ (अजमेर पट्टी), 2 .इड़ियागढ़ (बड़कोट रवांई), 3. उप्पुगढ़ (उदयपुर), एरासूगढ़ (श्रीनगर के ऊपर), 5. कंडारीगढ़ (नागपुर), कांडागढ़ (रावतस्यू), 7. कुइलीगढ़ (कुइली), 8. कुजड़ीगढ़ (कुजड़ी), 9. कोलीगढ़ (बछणस्यू), 10.गढ़कोटगढ़ (टकनौर), 11. तड़तांगगढ़ (टकनौर), 12.गुजडूगढ़ (गुजडू), 13. चम्पागढ़, 14. चांदपुरगढ़ (तैली चांदपर्) 15. चौण्डागढ़ (शीली चांदपुर), 16. चौंदकोटगढ़ (चौंदकोट), 17. जौटगढ़ (जौनपुर), 18. जौलपुरगढ़, 19. डोडराक्वारगढ़ (डाडराक्वार), 20. तोपगढ़, 21. दशौलीगढ़ (दशौली), 22. देवलगढ़ (देवलगढ़), 23. धौनागढ़ (इडवालस्यू), 24. नयालगढ़ (कटूलस्यों), 25. नागपुरगढ़ (नागपुर), 26. नालागढ़ (देहरादून), 27. फल्याणगढ़ (फल्दाकोट)

28. बदलपुरगढ़ (बदलपुर), 29. बधाणगढ़ (बधाण), 30. बनगढ़ (बनगढ़), 31. बागरगढ़ (बागर), 32. बागगढ़ (गंगासलाण), 33. बिराल्टागढ़ (जौनपुर), 34. भरदारगढ़ (भरदार), 35. भरपूरगढ़ (भरपूर), 36. भुवनागढ़, 37. मुंगरागढ़ (रवांई) 38. मोल्यागढ़ (रमौली), 39. रतनगढ़ (कुजडी), 40. रवालगढ़ (बद्रीनाथ के मार्ग में), 41. राणीगढ़ (पट्टी राणीगढ़), 42. रामीगढ़ (शिमलास्टेट), 43. रैंकागढ़ (रैंका), 44. लंगूरगढ़ (लंगूर पट्टी), 45. लोदगढ़, 46. लोदनगढ़, 47 .लोहबागढ़ (लोहबा), 48. श्रीगुरुगढ़ (सलाण), 49. संगेलागढ़ (लोहबा), 50. सांकरीगढ़ (रवांई), 51. सांवलीगढ़, (खावलीखाटली), 52. सिलगढ़ (सिलगढ़)।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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