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“ऊचेण” एक ऐसी भेंट जो कामना पूरी होने के लिए देवताओं के निमित्त रखी जाती है

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ऊचेण

उत्तराखंड के वासियों की औलोकिक आस्था एवं विश्वास के अनुसार, जब किसी व्यक्ति के अस्वस्थ होने पर, औषधीय उपचारों से कोई लाभ नहीं होता है, तब उसके परिजनों का यह विश्वाश रहता है कि, उसपर किसी ऊपरी छाया या स्थानीय भूत प्रेत का असर हो गया है। या उनके कुलदेवता, लोकदेवता, ग्रामदेवता रुष्ट हो गए हैं। ऐसी आशंका के चलते संभवित देवी देवता या स्थानीय भूत -प्रेत के नाम पर एक कटोरे या हरे पत्ते में थोड़े से चावल और एक रुपया या कुछ पैसे रखकर, उसे प्रभावित व्यक्ति के ऊपर इस वचनबद्धत्ता के साथ घुमाया जाता है, कि वह जो भी है, उसकी गणतुवा या पुछयारे के वहां जाकर उसकी पूछताछ करेंगे, और उसकी यथोचित पूजा अर्चना, भेट दी जाएगी। उत्तराखंड के अधिकतर स्थानों में इस प्रक्रिया को ऊचेण कहते हैं।

उच्चैण

कुमाऊं में कही-कही इसे बिट बांधना भी कहते हैं। और ऊचौन ,ऊचान भी कहते हैं। गढ़वाल में इसे उच्याणा कहते हैं। उत्तराखंड के अधिकतम हिस्सों (गढ़वाल, कुमाऊं) में इसे ऊचेण ही कहते हैं। उच्याणा के भाव एवं स्वरूप के बारे में डा वाचस्पति मैठाणी जी बताते  हैं, उच्याणा या ऊचेण का अर्थ है एक ऐसी भेंट जो कामना पूर्ति के लिए देवताओं के निमित्त रखी जाती है। यह भेंट एक रूपये या पैसे के रूप में भी हो सकती है या बकरे या अन्य योग्य बलिदान योग्य पशु के रूप में भी ” कामना करने वाला व्यक्ति यह संकल्प लेता है ,कि जब मेरी मनोकामना पूर्ण होगी ,तब मै इस आपके लिए जो भी यथायोग्य पूजा का विधान होगा उसे में पूरा करूँगा।

कुमाऊं क्षेत्र में ऊचेण के रूप में चावल और रूपये  को रुमाल या साफ कपडे में बांध कर मंदिर में रख दिया जाता है। और उस दिन पूजा या जागर में उस देवता के आगे खोला जाता है ,जिसके लिए  यह रखा गया है। सब कामना पूर्ण होने के बाद संबंधित देवता उन चावलों को चारों दिशाओं या एक विशेष दिशा की तरफ समर्पित करते हुए अपने भक्तों को वचनबद्धत्ता से मुक्त करता है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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