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स्वाला गांव उत्तराखंड का वो गांव जो बेवजह भूत गांव के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहाँ जाने सच्चाई !

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स्वाला गांव की वास्तविक कहानी : क्या आप जानते  हो उत्तराखंड में एक गांव ऐसा है जहाँ केवल भूत रहते हैं। और उस गांव को उत्तराखंड का भूतिया गांव या घोस्ट विलेज ऑफ़ उत्तराखंड के नाम से प्रसिद्ध है। अब आप बोलोगे आधुनिक ज़माने में कहाँ भूत -प्रेत होते हैं ? बात तो सही है आधुनिक टैक्नोलॉजी के दौर में भूत प्रेत की बात औचित्यहीन लगती है। लेकिन ! देवभूमि उत्तराखंड में सब संभव है।

यहाँ जितना विश्वास देवों पर या दैवीय शक्तियों पर किया जाता है ,उतना ही विश्वास भूत प्रेतों के अस्तित्व पर भी किया जाता है। और ये विश्वास कभी कभी विज्ञान को भी चौंका देता है और इसी विश्वास की अति समाज को वर्षों पीछे धकेल देता है।आइये जानते हैं भूत प्रेतों के इस विश्वास के बीच डोलते स्वाला गांव उत्तराखंड की कहानी।

स्वाला गांव उत्तराखंड की कहानी ( Swala gaon story in hindi ) –

उत्तराखंड के चम्पावत में एक गांव है स्वाला गांव। इस गांव के बारे में कहा जाता है कि यहाँ भूतों का बसेरा है। बर्षों पहले इस गांव में कुछ ऐसा घटित हुवा कि इस गांव के लोगो ने इस गांव को सदा के लिए छोड़ दिया। और यह गांव खंडहर वाला भूतिया गांव बन गया। स्वाला गांव के बारे में एक कहानी बताई जाती है। कहानी इस प्रकार है कि 1952 में PSC की आठवीं बटालियन की एक गाड़ी यहाँ गिर गई। कहते हैं इस गाड़ी में आठ जवान सवार थे ,और सभी इस सड़क दुर्घटना में मारे गए। दुर्घटना स्थल पर उन आठों जवानों की स्मृति में दुर्घटना स्थल पर एक स्मारक भी बना है।

अब इसमें मैन कहानी यह है कि इस दुर्घटना के बारे में अफवाह फैलाई जाती है कि जब यह दुर्घटना हुई तब घायल सैनिकों ने स्थानीय गांववासियों से मदद मांगी लेकिन कहते हैं यहाँ के लोगों ने उन सैनिकों की मदद नहीं की और उनका सामान छीन कर उन्हें मरने के लिए छोड़ गए। जिस कारण मरने के बाद आठों फौजियों की आत्माएं यहाँ भटकने लगी और लोगो को परेशान करने लगी। उनसे निजात पाने के लिए लोगों ने यहाँ दुर्गा मंदिर बनाया। फिर भी मृत आत्माओं ने उन ग्रामवासियों को परेशान नहीं छोड़ा ,जिसके फलस्वरूप लोगों ने वह गांव छोड़ दिया। और स्वाला गांव उत्तराखंड का भूतिया गांव बन गया।

स्वाला गांव
स्वाला गांव

स्वाला गांव के भूतिया गांव बनने की असली कहानी कुछ और है –

स्वाला गांव के भूतिया गांव बनने के पीछे की असली वजह जानने से पहले उत्तराखंड के पहाड़ी गावों की सामाजिक संरचना पर थोड़ी बात कर लेते हैं। जैसा हमने इस लेख के शुरू में बताया कि उत्तराखंड के पहाड़ी जनजीवन देवताओं पर भी विशवास किया जाता है और भूत -प्रेतों पर भी। पहाड़ो में निवासी इसी विश्वास के साथ सदियों से रह रहे हैं। पहाड़ी संस्कृति में देव भी पूजे जाते हैं और भूत भी। इसलिए इस कहानी पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है कि गांव वालों को भूतों की वजह से पूरा गांव खाली करना पड़ा।

और इसमें एक और कहानी जोड़ी हैं कि जब दुर्घटना हुई तब वहां के स्थानीय लोगों ने मदद नहीं की। ये कहानी पूरी तरह मनगढ़ंत लगती है। क्योंकि पहाड़ी समाज अपनी ईमानदारी और सरलता के लिए प्रसिद्ध हैं उनसे ऐसे कृत्य की उम्मीद तो कम ही लगाई जा सकती है। पहाड़ों में आज तक कई जगह मूलभूत सुविधाएँ नहीं पहुंची हैं तो 1952 में क्या ही पहुंची होंगी। इसलिए किसी को पता नहीं कि उस समय क्या हुवा होगा। बस एक मनगढ़ंत कहानी बना दी।

पहाड़ों में कई स्थान ऐसे होते हैं जहाँ पर दुर्घटनाएं अधिक होती हैं , लोग उन्हें ब्लेंक स्पॉट या धार्मिक विश्वास वालें मानते हैं कि वहां पर भूत प्रेत का साया है इसलिए वहां पर दुर्धटना पिलर के साथ साथ एक मंदिर की स्थापना इस विश्वास के साथ कर दी जाती है ,ताकि मंदिर में स्थापित देव प्रेत बाधां से रक्षा करेंगे। ऐसा ही ब्लेंक स्पॉट स्वाला गांव के पास भी है वहां अभी भी दुर्घटनाएं होती रहती हैं। सम्भवतः इसलिए वहां मंदिर बनाया गया होगा। अब बताते हैं स्वाला गांव खाली होने की असली वजह ! यह गांव खाली होने की असली वजह भूत नहीं बल्कि पलायन है। पलायन की वजह से खाली हुवा स्वाला गांव

पूरी तरह खाली नहीं है स्वाला गांव –

उत्तराखंड का भूतिया गांव के नाम से प्रसिद्ध स्वाला गांव पूरी तरह से खाली नहीं है ,वहां दो परिवार रहते हैं और खेती बाड़ी करते हैं। कई शोध वीडियो में उनके साक्षात्कार भी हैं ,जिनमे वे बड़ी सरलता से बताते हैं कि यहाँ भूत प्रेत जैसा कुछ नहीं है। लॉकडाउन के बाद कुछ परिवारों ने यहाँ बसने का निर्णय लिया और वे अच्छी जिंदगी बसर कर रहे हैं। उनकी हिम्मत देख गांव के अन्य परिवारों का भरोसा भी लौट रहा है। वे भी गांव में बसने की सोच रहे हैं।

नोट – यहाँ स्वाला गांव से सम्बंधित एक वीडियो लगा रहे हैं ,आप वीडियो देख कर स्वाला गांव की वास्तविक कहानी समझ सकते हैं।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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