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दो बार फल देने वाला आम का पेड़ मिला है,उत्तराखंड के अल्मोड़ा में।

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दो बार फल

उत्तराखंड के स्नेही मित्रों के लिए खुश खबरी है। खुश खबरी यह है कि उत्तराखंड में साल में दो बार फल देने वाला आम का पेड़ मिला है।दगडियों आम के शौकीन तो सभी हैं, किसे अच्छा नही लगता आम! और आम का व्यसाय भी खूब होता है। मगर विडम्बना ये होती है,कि आम की फसल एक ही बार होती है। हमे रसीले आमों का आनंद लेने के लिए एक साल का इंतजार करना पड़ता है।

मगर इन सभी समस्याओं का समाधान मिला है,उत्तराखंड  अल्मोडा के नौला गांव में। कलमी (फजरी) प्रजाति का यह आम का पेड़ मिला है,विकासखंड ताड़ीखेत के नौला गांव निवासी, श्रीमान देवकी नंदन चौधरी जी के बागवान से। देेवकी नंदन चौधरी जी बागवानी का शौक रखते हैैं।

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श्रीमान देवकी नंदन चौधरी जी ने बताया कि, वो इस दो बार फल देने वाला पेड़ को 2004 में रामनगर के हिम्मतपुर डोटीयाल नर्सरी से लाये थे। उनका यह प्रयोग सफल रहा और चार साल बाद पेड़ ने फल देने शुरू कर दिए।

इस पेड़ की पहली फसल  जून जुलाई में होती है। और इसकी दूसरी फसल अक्टूबर नवंबर में तैयार हो जाती है। जून जुलाई में होने वाली आम की फसल में,प्रति आम का वजन लगभग 175 से 200 ग्राम होता है।

दो बार फल देने वाला,
दो बार फल देने वाला,  फ़ोटो साभार -अमर उजाला

अक्टूबर और नवंबर वाली फसल में प्रति आम का वजन लगभग 160 से 175 ग्राम तक  होता है। साल में दो बार फल देने वाले आम के पेड़ की लंबाई लगभग 10 फुट की होती है। इसका आम काफी मीठा होता है। उत्तराखंड उद्यान विभाग के अधिकारियों के अनुसार, गांव में एक प्रशिक्षण के दौरान इसका पता चला। उत्तराखंड उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है, कि वे इस पेड़ पर और खोज करेंगे। कुल मिलाकर निष्कर्ष ये हुवा कि अब जल्द ही हम सर्दियों में भी आम का स्वाद ले सकेंगें।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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