Home कुछ खास कौन हैं पहाड़ियों के इष्टदेवता या कुलदेवता।

कौन हैं पहाड़ियों के इष्टदेवता या कुलदेवता।

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वैसे तो कुलदेवता का अर्थ होता है ,मान्य ,आदरणीय ,पूज्य देवशक्ति। किन्तु उत्तराखंड के सन्दर्भ में इष्टदेवता का अर्थ होता है वे देवी देवता जो किसी परिवार या वर्ग विशेष द्वारा अपने घर परिवार की सुख समृद्धि के लिए वंशागत रूप में उस देवता की पूजा की जाती है।

कौन हैं पहाड़ियों के इष्टदेवता :

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में इष्टदेवता के प्रतीकात्मक लिंग या त्रिशूल घरों की कक्षों या ताखों में स्थापित किये जाते हैं। घरों की मुंडेर पर भी इन पाषाणी लिंगो की स्थापना की जाती है। लेकिन इसके बिपरीत कुमाऊं मंडल में एक निश्चित स्थानों पर इनकी स्थापना की गई होती है। ये पौराणिक देवी देवताओं से काफी अलग होते हैं ,लेकिन कई इष्टदेवता कहीं न कहीं पौराणीक देवताओं से भी जुड़े होते हैं। प्रत्येक परिवार या कुल का अपना इष्टदेवता होता है।

अपने परिवार या कुल की रक्षा के लिए और इष्टदेवता की अपने कुल पर अनुकम्पा बनाये रखने के लिए विभिन्न प्रकार के भौतिक और दैविक अनुष्ठान और पूजा करते हैं। कुलदेवता की इस पूजा ,उस कुल से सम्ब्नध रखने वाले सभी परिवारों का सम्मलित होना आवश्यक है। चाहे वे कही भी रहे या नौकरी के लिए कहीं भी रह रहे हों । इस प्रकार की पूजाओं को वर्ष में एक बार या वर्ष में दो बार सम्मूर्ण किया जाता है।

विद्वानों का मानना है कि यह परम्परा शायद उस कबीलाई युग की देन है ,जब प्रत्येक कबीले के सभी सदस्यों का सम्मलित होना उनके एकता का बोधक होता था। हुआ करता था। इसके लिए  जागर अथवा घड़ियाले का आयोजन करके पस्वा विशेष में उसका अवतरण कराकर देवनृत्य के रूप में उसे नचाया जाता है। उससे पारिवारिक विपत्तियों के कारणों को जानकर उनके निवारण के कारणों को भी पूछा जाता है।

इष्टदेवता

रांसू-मण्डाण लगाया जाता है। पूजा में पशुबलि भी चढ़ाई जाती है। जबकि पौराणिक देवताओं के सम्बन्ध में ऐसा कुछ भी नहीं किया जाता है। पूजा भी सात्विक रूप में फल, मिष्ठान्न, धूप-दीप, नैवेद्य के द्वारा ही सम्पन्न की जाती है। इसके अतिरिक्त कुलदेवता की एक अन्य महत्वपूर्ण भूमिका भी होती थी जोकि कुल विशेष में उत्पन्न विवादों को निपटाने में न्यायालय का भी कार्य करती थी ।

संदर्भ – उत्तराखंड ज्ञानकोष ,प्रो DD शर्मा। 

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