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महाकुंभ स्पेशल : जानें जब गढ़वाल के राजा के लिए गंगा ने बदला अपना मार्ग

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महाकुंभ स्पेशल: आजकल महाकुंभ चल रहा है ,यह महाकुंभ 144 साल बाद होता है। प्रति बारह वर्षों में एक कुम्भ होता है और 06 साल में एक अर्धकुम्भ होता है। आज कुंभ से जुड़ा पहाड़ का एक ऐतिहासिक किस्सा सुनाने जा रहे हैं !

उत्तराखंड के इतिहास में एक ऐसा किस्सा है जो राजाओं की भक्ति और उनकी शक्ति को दर्शाता है। यह कहानी है गढ़वाल के राजा “मेदिनीशाह” की, जिनके बारे में कहा जाता है कि गंगा नदी ने उनके लिए अपनी धारा बदल ली थी। यह घटना ऐतिहासिक है या पौराणिक, यह तो तय नहीं, लेकिन इसका महत्व आज भी गढ़वाल और उत्तराखंड की संस्कृति में है।

पृथ्वीपति शाह और मेदिनीशाह का दौर :

गढ़वाल के राजा पृथ्वीपति शाह के पुत्र मेदिनीशाह का राज्यकाल 1667 के आसपास माना जाता है। उनके पिता और दादी, रानी कर्णावती, ने मुगलों से कई युद्ध लड़े थे। लेकिन मेदिनीशाह को औरंगजेब से मित्रता के कारण यह संघर्ष नहीं करना पड़ा। उनका शासनकाल शांतिपूर्ण रहा, लेकिन एक घटना ने उन्हें अमर बना दिया।

महाकुंभ स्पेशल: गंगा की धारा बदलने का रहस्य :

कहानी के अनुसार, हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान गढ़वाल के राजा को सबसे पहले हर की पैड़ी पर स्नान करने का अधिकार था। लेकिन एक साल, अन्य राजाओं ने मिलकर यह तय किया कि गढ़वाल का राजा पहले स्नान नहीं करेगा। उन्होंने मेदिनीशाह को चेतावनी भी दी कि अगर उन्होंने जबर्दस्ती की तो युद्ध होगा।

मेदिनीशाह ने रक्तपात को रोकने के लिए कहा, “यह पुण्य क्षेत्र है, यहां युद्ध करना सही नहीं। यदि गंगा मेरी है, तो वह स्वयं मेरे पास आएगी।” बाकी राजा इस बात का मतलब समझ नहीं पाए और स्नान की तैयारी करने लगे।

महाकुंभ स्पेशल : जानें जब गढ़वाल के राजा के लिए गंगा ने बदला अपना मार्ग

गंगा की धारा का बदलना :

राजा मेदिनीशाह ने चंडी देवी के नीचे स्थित मैदान में डेरा डाला और मां गंगा की पूजा में लीन हो गए। जब दूसरे राजा सुबह हर की पैड़ी पहुंचे तो वहां पानी नहीं था। गंगा नदी ने अपना मार्ग बदल लिया था और वह गढ़वाल के राजा के डेरे के पास से बह रही थी।

मेदिनीशाह ने गंगा पूजन के बाद स्नान किया। यह देख अन्य राजाओं को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्हें लगा कि गढ़वाल का राजा सचमुच भगवान बदरीनाथ का अवतार हैं।

इतिहास या चमत्कार?

इस घटना के पीछे की सच्चाई क्या है, यह आज भी एक रहस्य है। कुछ लोग इसे मेदिनीशाह के कुशल कारीगरों का काम मानते हैं, जिन्होंने रातोंरात गंगा की धारा मोड़ दी। वहीं, अन्य इसे राजा की भक्ति और मां गंगा की कृपा का परिणाम मानते हैं।

गढ़वाल के इतिहास में मेदिनीशाह का स्थान :

गढ़वाल के राजा को भगवान बदरीनाथ का अवतार माना जाता था। मेदिनीशाह ने न केवल इस मान्यता को जीवित रखा, बल्कि इस घटना के जरिए अपने शासनकाल को अमर कर दिया। आज भी यह कहानी उत्तराखंड की धरोहर है और भक्ति, आस्था, और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

निष्कर्ष :

गंगा की धारा बदलने की कहानी मेदिनीशाह की भक्ति, आस्था, और उनके अनूठे व्यक्तित्व को दर्शाती है। यह घटना हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और विश्वास से कुछ भी संभव है। उत्तराखंड की भूमि ऐसी कई कहानियों से भरी हुई है, जो इसे देवभूमि बनाती हैं।

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