Home कुछ खास कुमाऊं रेजिमेंट जिसने बचाया था कश्मीर ! जानिए गौरवशाली इतिहास।

कुमाऊं रेजिमेंट जिसने बचाया था कश्मीर ! जानिए गौरवशाली इतिहास।

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उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लोग वीर साहसी होते हैं। इतिहास गवाह है उत्तराखंड के कुमाउनी और गढ़वाली क्षेत्रों के वीरों ने समय -समय पर अपनी वीरता और साहस का प्रदर्शन किया है। ऐसी वीरता और साहस को देख कर अंग्रेजों ने गढ़वाल राइफल और कुमाऊं रेजिमेंट की स्थापना की।

आजादी के बाद से ही कश्मीर की समस्या भारत के लिए बड़ी समस्या बना है। बटवारे के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर को हड़पने के लिए सारे अनैतिक रास्ते अपनाता रहा है। सन 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए कबाइली युद्ध छेड़ दिया था। भारत की तरफ से पाकिस्तान की इस अनैतिक हरकत का जवाब देने की जिम्मेदारी कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी को मिला था।

इस कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे मेजर सोमनाथ शर्मा। मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में कुमाऊं नेतृत्व के जाबांज सैनिको ने कबाइलियों के वेश में आई पाकिस्तानी सेना के हमले से श्रीनगर को बचाया था। आज कश्मीर का जो हिस्सा भारत के नियंत्रण में है वो कुमाऊं रेजिमेंट के पराक्रम के फलस्वरूप है। इस कबाइली युद्ध में असाधारण वीरता के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा को स्वतंत्र भारत का पहला परमवीर चक्र मिला था।

यह एकमात्र रेजिमेंट है जिसे दो – दो परमवीर चक्र मिले हुए हैं। दूसरा परमवीर चक्र मेजर शैतान सिंह को ( मरणोपरांत ) 1962 के भारत -पाकिस्तान युद्ध में असाधारण वीरता के लिए मिला था। मेजर शैतान सिंह इस रेजिमेंट की तेरहवी बटालियन चार्ली कंपनी के थे।

कुमाऊं रेजिमेंट
कुमाऊं रेजिमेंट

कुमाऊं रेजिमेंट की स्थापना –

कुमाऊं रेजिमेंट की स्थापना सन 1778 में हैदराबाद में निजाम के एक जागीरदार सलावत खान ने की थी। 1794 में इसे रेमंट कोर और उसके बाद निजाम कान्टिजेंट नाम दिया गया। सन 1813 में जब अंग्रेज अधिकारी हेनरी रसल हैदराबाद पहुंचे तो उन्होंने इन सैन्य टुकड़ियों को बटालियन के रूप में एक संगठन में बांधा। इसीलिए सर हेनरी रसल को कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्य संस्थापक माना जाता है। 1945 में इसे द कुमाऊं रेजिमेंट के नाम से स्थापित किया गया।  पहले इस बटालियन में मुस्लिम,राजपूत ,जाट और अन्य प्रांतो के सैनिक भी थे। लेकिन बाद में जब यह बाटलियन हैदराबाद से आगरा की तरफ आई तो इसमें कुमाउनी सैनिक अधिक थे।

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बाद में इसमें अन्य बटालियनें जुड़ती गई तो उनमे अधिकता कुमाउनी लोगो की ही रही। भारत की स्थापना से पहले ही कुमाऊं रेजिमेंट का इतिहास गौरवशाली रहा है। इस रेजिमेंट ने 1803 के मराठा युद्ध, 1877 का भीलों के विरुद्ध युद्ध, 1841 का अरब युद्ध ,रोहिल्ला युद्ध और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम झाँसी ( 1857 ) में अपनी अदम्य वीरता के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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