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धूम धाम से मनाया जायेगा महासू देवता का जागड़ा मेला, जानिए जागड़ा मेला के बारे में

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जौनसार के लोकदेवता महासू देवता के देवालय हनोल में प्रतिवर्ष  भाद्रपद के शुक्ल पक्ष को हरतालिका तीज पर विशाल जागड़ा पर्व मनाया जाता है। जौनसार बावर, रंवाई-जौनपुर, हिमाचल के जुब्बल-कोटखाई, नेरवा-चौपाल, और अन्य राज्यों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु  इस विशाल  जागड़ा मेला का आनंद लेने और देवदर्शन के लिए आते हैं। 2024 में जागड़ा मेला 6 सितम्बर और 07 सितंबर 2024  को मनाया जाएगा।

क्या है जागड़ा मेला –

जागड़ा का अर्थ होता है ,रात्रि जागरण। जांगड़ा उत्सव ,उत्तराखंड  गढ़वाल मंडल के देहरादून जिले में जौनसार बावर क्षेत्र के टौंस नदी के तट पर हनोल में स्थित लोकदेवता महासू से सम्बंधित एक धार्मिक उत्सव है। इस मेले या उत्सव का आयोजन हनोल में महासू देवता के मंदिर में भाद्रपद के शुक्लपक्ष की तृतीया – चतुर्थी को किया जाता है। जागड़ा उत्सव महासू  देवता की विशेष पूजा होता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर महासू देवता का रात भर पूजा पाठ ,स्तुति करते हैं। और रात भर जागरण करते हैं। सुबह पुजारी महासू देवता की मूर्ति को यमुना में स्नान के लिए बाहर लाते हैं।
धूम धाम से मनाया जायेगा महासू देवता का जागड़ा मेला, जानिए जागड़ा मेला के बारे में

भक्तजन देवडोली का दर्शन करते हैं। और लोकवाद्यों की मधुर ध्वनि के साथ देवडोली को  यमुना में स्नान के लिए लेकर जाते हैं। देवता को यमुना और भद्रीगाड़ में बारी -बारी से स्नानं कराया जाता है। देवता की डोली को एक बार उठाने के बाद मंदिर में ही उतारते हैं। बीच में डोली को उतारने का कोई प्रावधान नहीं हैं। भक्तलोग बारी -बारी से कन्धा बदलकर बिना डोली जमीन पर उतारे मंदिर तक पंहुचा देते हैं। दयाड़ो वादन पर मंदिर में महिलाएं लोक नृत्य प्रस्तुत करती हैं। मंदिर में पुनः स्थापना के बाद देवता की पूजा होती है। पूजा की समाप्ति के बाद व्रती व्रत ख़त्म करके भोजन करते हैं।

जागड़ा उत्सव के अवसर पर महासू देवता मंदिर में विशाल मेले का आयोजन होता है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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