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हीरा सिंह राणा कुमाऊनी लोकगायक की जीवनी | Heera Singh Rana biogr aphy

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उत्तराखंड की संस्कृति , भाषा लोकगीतों का प्रचार प्रसार करने में बहुत लोकप्रिय लोकगायकों का योगदान रहा है। इन्ही प्रसिद्ध लोक गायकों में एक थे, कुमाऊँ प्रसिद्ध लोक गायक हीरा सिंह राणा ।

हीरा सिंह राणा कुमाउनी गीतों के प्रसिद्ध गायक थे। कुमाउनी गीतों में कैसेट युग मे सुपरस्टार गायक थे। हीरा सिंह राणा जी, गायक के साथ साथ, कवि संगीतकार भी थे। पहाड़ की पीड़ा, पहाड़ की समस्याओं को उन्होंने अपने गीत और कविताओं में प्रमुखता से जगह दी। हीरा सिंह राणा के प्रसिद्ध गीत कैसेट युग से यूट्यूब युग, ऑनलाइन युग तक पसंद किए जा रहे हैं। वो एक प्रतिभाशाली कलाकार थे।

प्रारंभिक जीवन

हीरा सिंह राणा जी का जन्म 16 सिंतबर 1942 , ग्राम – डंडोली , मनिला जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड में हुवा था। हीरा सिंह राणा जी पांच भाइयो में सबसे बड़े भाई थे। हिरदा की  प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा , मनिला में ही हुई। तदोपरांत 1959 में वे नौकरी के लिए, दिल्ली चले गये।

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हिरदा  का गायकी का सफर

दिल्ली में उन्होंने , कभी कपड़े की दुकान में , कभी कंपनी में काम किया। इसी बीच हिरदा की पहचान ( लोग उन्हें प्यार से हिरदा बुलाते थे। )  कुमाउनी गायक आनंद सिंह कुमाउनी जी से हुई। आनन्द कुमाउनी उस समय पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली के लिए काम करते थे। उन्होंने हीरा सिंह राणा जी की बहुत मदद की। हिरदा दिल्ली में रामलीलाओं में कुमाउनी गीत गाते थे। हिरदा ने मात्र 15 वर्ष में ही गीत गाना शुरू कर दिया था।

दिल्ली में पंडित गोविंद बल्लभ पंत  जी की प्रथम पुण्यवतिथि पर इन्होंने , आ लिली बकरी लिलिल छू छू  काफी शाबाशी बटोरी। इसी गीत संगीत के सफर को जारी रखते हुए, उन्होंने अपना पहला गीत,कविता संग्रह प्योली और बुरांश  नाम से 1971 में प्रकाशित हुआ। तत्पश्चात गीत और कविताओं का अगला संग्रह मेरी मानिले डानी 1976 में प्रकाशित किया। 1987 में मनखयु पडयाव जैसे गीत कविता संग्रह प्रकाशित किये।

हीरा सिंह राणा
हीरा सिंह राणा जी कुमाउनी प्रसिद्ध लोक गायक

पहाड़ के पलायन का दर्द उनके इस गीत , ”

मेरी मानिले डानी तेरी बलाई ल्यूला।

तू भगवती छे तू ही भवानी, 

हम तेरी बलाई ल्यूला ।।

यह गीत पहाड़ के पलायन के साथ साथ घर की याद को दिलाता है। उनके श्रगार रस प्रधान गीत,  हाई रे मिजाता गीत तो अभी भी शादी व्याह समारोह में काफ़ी बजाया जाता है। हिरदा का गाना आ लिली बकरी लिली छू कुमाउनी लोक संगीत के इतिहास का प्रसिद्ध गीत रहा है।

हीरा सिंह राणा जी ने , आकाशवाणी केंद्रों, नजीबाबाद, लखनऊ, दिल्ली में भी काफी गीत गाये। और इन आकाशवाणी केंद्रों और अन्य केंद्रों से भी  हीरा सिंह राणा हिरदा के गीतों का प्रसारण हुवा। 2019 में  दिल्ली सरकार द्वारा गढ़वाली ,कुमाउनी, जौनसारी भाषा अकादमी के पहला उपाध्यक्ष बनाया।    ( हीरा सिंह राणा जीवनी )

अंतिम सफर –

जीवन के शुरुआती संघर्ष से ज्यादा संघर्ष शील  हीरा सिंह राणा का अंतिम सफर । जीवन भर अपने पहाड़ के लिए गीत संगीत कविताओं द्वारा जंन जागृति करने वाले हिरदा जीवन भर आर्थिक स्थिति के लिए संघर्ष करते रहे। एक दुर्घटना में 2016 में हीरा सिंह राणा जी के कूल्हे की हड्डी टूट गई।

रामनगर के एक निजी अस्पताल में उनका ऑपरेशन हुवा, निजी अस्पताल का बिल देने की राणा जी की हालत नही थी। जैसे तैसे पत्र पत्रिकाओं और ज्ञापनों के माध्यम से सरकार तक बात पहुँचाई गई। सरकार ने हिरदा की मदद की घोषणा भी की,लेकिन वो घोषणा ही रही।

अपने पहाड़ अपनी भाषा को नया आयाम देने वाला यह बहुमुखी कलाकार जीवनभर संघर्ष में रहा। और इस संघर्ष को पूर्ण विराम मिला 13 जून 2020 को। 13 जून 2020 को  ह्रदयघात के कारण हीरा सिंह राणा जी हम सबको छोड़ कर सदा सदा के लिए अनंत यात्रा पर चले गए।

हीरा सिंह राणा के गाने :

  • आ लिली बकरी लिली छू छू
  • आई हाई – हाई रे मिजाता
  • मेरी मानिले डानी
  • मेरी नौली प्राणा
  • के भलो मान्यो छह हो

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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