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गढ़वाली राजुला की प्रेम गाथा

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उत्तराखंड के गढ़वाल में तलवार का धनी नामक एक लोकगाथा है। इस गाथा में गढ़वाली राजुला नामक नायिका और सालवीर नामक वीर नायक की प्रेम कहानी बताई गई है। कहते हैं नंदाकोट का राजकुमार सालवीर एक वीर योद्धा था।वहीं राजूला गढ़वाल के सोनकोट की राजकुमारी थी। वह अद्वितीय रूप सौंदर्य की धनी राजकुमारी थी।

 नंदाकोट का राजकुमार राजुला को अपनी रानी बनाना चाहता था –

नंदाकोट का राजकुमार सालवीर सोनकोट की राजकुमारी को बहुत पसंद करता था। उसे अपनी रानी बनाना चाहता था। जब राजकुमार ने राजकुमारी राजुला के सामने अपना प्रेम प्रस्ताव रखा तो ,राजकुमारी ने उससे कहा ,”यदि आप मेरी शर्त पूरी कर देंगे तो मैं आपकी जीवन संगिनी बनने को तैयार हूँ।

राजकुमारी के प्रेम में आशक्त राजकुमार उसकी हर शर्त मानने को तैयार हो गया। तब राजकुमारी ने उसे अपनी शर्त बताई ,उसने कहा यदि आप मुझे अपनी जीवन संगिनी बनाना चाहते हो तो आपको सात नदियाँ पार करके ,मेरे पिता के परम शत्रु भीमा कठैत को मरना होगा।

राजकुमारी की शर्त सुनकर राजकुमार सालवीर चल पड़ा भीमा कठैत से युद्ध करने के लिए। सात नदियाँ पार करके वो भीमा कठैत के राज्य में पहुंच गया। वहां उसने भीमा को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भयकर युद्ध ठन गया। कई दिन कई रात युद्ध चलता रहा। आखिरकार सालवीर ने भीमा को पराजित करके उसे मार डाला।

राजुला

शर्त जीत कर आया राजकुमार लेकिन असली चीज वहीँ भूल गया –

राजकुमारी राजुला की शर्त पूरी करने के बाद वह उससे शादी करने उसके राज्य सोनकोट चला गया। वहां जाकर जब वह राजुला से मिला तो वह बहुत खुश हुई। उन दोनों ने ख़ुशी -ख़ुशी विवाह कर लिया। शादी के उपरांत उसको याद आया कि उसकी तलवार भीमा कठैत के राज्य में रह गई है। इससे वह परेशान हो उठा।

उसकी परेशानी देख राजकुमारी ने उससे पूछा ,” हे प्रिय आप इतना परेशान क्यों हो ? तब उसने कहा ,” राजुली मेरी तलवार भीमा  राज्य में कहीं छूट गई है। तब राजकुमारी बोली , ” तो इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है ? एक तलवार ही तो है। तब राजकुमार बोला , ” राजुली तू नहीं जानती ,तलवार का एक योद्धा के जीवन में कितना बड़ा महत्व होता है। जैसे पति और पत्नी का रिश्ता होता है ,वैसा ही एक योद्धा और उसकी तलवार का रिश्ता होता है।

इतनी बात कहकर राजकुमार अपनी तलवार ढूढ़ने के लिए भीमा कठैत के राज्य की ओर चल पड़ा। बड़ी मेहनत के बाद आखिर उसे अपनी प्रिय तलवार मिल ही गई। और वो अपनी तलवार लेकर वापस अपनी पत्नी के पास लौट गया। वापस आने पर राजकुमारी राजुली अपने पति की इस भावना पर बहुत खुश हुई ,उसने अपने पति को गले से लगा लिया।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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