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गढ़वाली कविता – एक नवेली दुल्हन की गांव के पलायन की पीड़ा

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गढ़वाली कविता

मित्रों टिहरी गढ़वाल से श्री प्रदीप बिजलवान बिलोचन जी ने पलायन के दर्द को बताती एक गढ़वाली कविता भेजी है। गढ़वाली भाषा में कविता का आनंद लीजिये और अच्छी लगे तो शेयर करें।

गढ़वाली कविता – एक नवेली दुल्हन की गांव के पलायन की पीड़ा –

न बाबा न मिन कतै भी तै बांझा सैसुर नी जाणी ।
तख छ बाघ रिख की डैर ,
जीकुड़ी मां पड़ी जांदू झुराट अर मैं तैं त पोड़ी गेनी आणि ।
गोणी बांदूरू न त बल बांझा गेरी यालीन साग, सगवाड़ी ।
तब मिन अर सासु जी न तुमी बोला क्या त खाणी ।
गांव का सभी लोग उंदू चलीगेनी,
मिन अर सासु जी न यखुली यखुली कनै राणी ।
न बाबा न मिन कतै भी तै बांझा सैसुर नी जाणी ।
गांव मां त रई गेनी बल लाटा काला ।
अर कदम कदम पर खूल्यान जू स्कूल ऊं मां,
झटपट ही लगी जांदीन ताला ।
यख त हमारा गांव मां त होणु छः विकास ।
कना त छन म्यारा मैती स्वरोजगार ।
कट्ठा रैण मां यख त नी छ केकी डार ।
जबरी तलक मेरा सैसर माजी भी सैरू उंदा ,
लोग भी घर जना नी बोडला ।
अर अपणी इं जन्मभूमि मां स्वर्ग नी ढूंढला ।
तबारी तक नी कन मिन तै सैसूर जाण की स्याणी ।
न बाबा न मिन कतै भी तै बांझा सैसुर नी जाणी ।
भैर का लोग जब यख आइकी अपण सुख चैन, खोजदीन ।
त तुम तब होटुलू मां भांडा कुंडा ही धोंदा छीन ।
यख त छ छोया छमोटों कु ठंडो ठंडो सी अमृत,
सी जनू पाणी।
न बाबा न मिन त कतै भी तै बांझा सैसुर नी जाणी ।

गढ़वाली कविता के लेखक_ प्रदीप बिजलवान बिलोचन

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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