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छमना पातर – उत्तराखंड के इतिहास की वो नृत्यांगना जिसने कई राज्य तबाह किए।

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आज उत्तराखंड के कुमाऊं गढ़वाल के इतिहास की एक ऐसी राज नृत्यांगना का परिचय बताने जा रहे हैं ,जिसने अपने समय में अपनी कुटनीतिज्ञता और जासूसी से कई पहाड़ी राज्यों को तबाह किया था। यहाँ तक कहा जाता है कि उत्तराखंड की महाप्रेम गाथा राजुला -मालूशाही की सूत्रधार भी वो नृत्यांगना ही थी। उस नृत्यांगना का नाम था छमना पातर। पातर शब्द का प्रयोग आदिकाल  उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलो में स्वछंद जीवन यापन करने वाली महिला के लिए किया जाता था। या वो महिला नृत्यांगना का काम करती हो। राजस्थान आदि मैदानी क्षेत्रों में वैश्या को इस शब्द से संबोधित किया जाता है।

कहते हैं छमना पातर या छमुना पातर कत्यूरी राजा धामदेव के दरबार की राज नृत्यांगना थी। तीखे नैन नक्श वाली ,सुराई सी कमर वाली , बेहद खूबसूरत ,खनकती हुई आवाज की मल्लिका और उसे नृत्य करते देख ऐसा लगता था जैसे इंद्र की सभा में अप्सरा नृत्य कर रही हो। छमना उस दौर में कुमाऊं -गढ़वाल और हिमाचल और तराई भाबर के राज्यों में प्रसिद्ध नर्तकी थी। इनको जमुना देवी भी बताया जाता है। इनका निवास चकोट के सैलून के नौखाणा गांव बताया जाता है। इनके पति का नाम हमेरु नैक था। गाथाओं के अनुसार छमना धामदेव ,बिरमदेव ,मालूशाही ,और शौका शौक्याण राज्य में अपने नृत्य कौशल का प्रदर्शन करती थी।

कहा जाता है छमना पातर का पुत्र बिजुला नैक काफी वीर और साहसी योद्धा था। उसने राजा धामदेव के साथ सागर गढ़ तल युद्ध में अभूतपूर्व साहस और वीरता का परिचय दिया था। बिजुला नायक की इसी वीरता के कारण छमना का धामदेव दरबार में कद बढ़ गया था। कहते हैं राजा धामदेव की रानी कामसिना का दिल बिजुला नैक पर आ गया था। एक दिन रानी ने उससे कहा कि ,राजा तुम्हारी अभूतपूर्व वीरता से प्रसन्न होकर तुम्हे पुरस्कार देने की घोषणा करने वाले हैं। तुम उनसे पुरस्कार में मुझे मांग लेना। बिजुला नैक बहुत गिड़गिड़ाया ,कि महारानी जी मैं तो आपका दास हूँ ,भला ये पाप मई कैसे कर सकता हूँ ? लेकिन रानी तो प्यार में अंधी हो गई थी ,उसने कहा ,” यदि तुमने मुझे राजा से पुरस्कार में नहीं माँगा तो में तुम पर बलात्कार करने का आरोप लगा दूंगी।

अगले दिन राजा धामदेव ने दरबार में बिजुला की वीरता से खुश होकर ईनाम देने कि घोषणा की और उससे अपना मनपसंद पुरस्कार मांगने को कहा ! उसकी माँ छमना पातर ने उससे कहा कि ,पाली पछाऊ में चोकोट की जागीर मांग ले। लेकिन उसे तो रानी ने पहले ही समझाया था। उसने डरते -डरते पुरस्कार में रानी की मांग कर दी। राजा क्रोधित होकर तलवार निकालने वाले थे ,इतने में छमना ने राजा को कत्यूरी वचन मर्यादा की याद दिला कर मामला सम्हाल लिया। कहा जाता है धामदेव के बाद वो मालूशाही के दरबार की नृत्यांगना रही और उसी दौर में वो शौका राजा सोनपाल  दरबार में भी नृत्य प्रदर्शन के लिए जाती है। और अवसर मिलते ही वो राजुला के मन में मालूशाही के प्रति प्रेम के बीज बो देती है। राजुला मालूशाही प्रेम गाथा में छमना पातर का बहुत बड़ा योगदान बताया जाता है।

संदर्भ – डॉ रणवीर चौहान ,उत्तराखंड के वीर भड़ पुस्तक से। 

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