Home व्यक्तित्व बाबा मोहन उत्तराखंडी के अमर बलिदान को भूल गई उत्तराखंड की सरकारें

बाबा मोहन उत्तराखंडी के अमर बलिदान को भूल गई उत्तराखंड की सरकारें

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बाबा मोहन उत्तराखंडी का जीवन परिचय –

बाबा मोहन उत्तराखंडी के नाम से विख्यात मोहन सिंह नेगी  का जन्म उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल जिले के एकेश्वेर ब्लॉक के बैठोली गांव मे सन 1948 को हुवा था। इनके पिता का नाम श्री मनवर सिंह नेगी और माता जी  नाम श्रीमती कमला देवी था। १२वी की परीक्षा पास करने के बाद मोहन सिंह नेगी सेना के बंगाल इंजीयरिंग ग्रुप में ,क्लर्क के रूप में भर्ती हो गए। सेना की नौकरी में वे ज्यादा दिन नहीं रहे। उसका प्रमुख कारण था। उत्तराखंड की पृथक मांग के लिए आंदोलन शुरू हो गया। अपने राज्य के प्रति प्रेम उनके मन में कूट कूट कर भरा हुवा था।  इसी प्रेम के वशीभूत होकर वे 1994 में राज्य आंदोलन में उतर गए।

02 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहे पर हुए वीभत्स घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। उन्होंने इस जघन्य कांड के दोषियों को सजा न मिलने तक आजीवन बाल ना कटाने और गेहुवे वस्त्र धारण करने व् दिन में एक बार भोजन करने की  शपथ ली।उसी के बाद वे बाबा उत्तराखंडी के नाम से विख्यात हुए। बाबा उत्तराखंडी अपना परिवार छोड़ कर उत्तराखंड आंदोलन में कूद गए। राज्य के बनने के तुरंत बाद उनका मोहभंग हो गया था। उनको अहसास हो गया था ,केवल राज्य का नाम बदला है बाकि स्थितियां जस की तस हैं।

उनकी बाल ना काटने की शपथ की कठोरता  का पता तब लगा जब इन्होने अपनी माँ  के अंतिम संस्कार के लिए बाल कटवाने  इंकार कर दिया। बाबा मोहन उत्तराखंडी ने अलग उत्तराखंड राज्य, और गैरसैण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी बनाने के लिए और अनेक प्रमुख मुद्दों के लिए 13 बार आमरण अनशन किया। बाबा उत्तराखंडी एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने उत्तराखंड के लिए सबसे अधिक अनशन किये।

बाबा मोहन उत्तराखंडी
बाबा मोहन उत्तराखंडी

बाबा मोहन उत्तराखंडी के आंदोलन –

  • 11 जनवरी 1997 को उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए लैंसडौन में अनशन किया।
  • 16 अगस्त 1997 से 12 दिन का सतपुलि में आंदोलन।
  • गुमखाल पौड़ी गढ़वाल में  1 अगस्त 1998 से 10 दिन का आंदोलन किया।
  • 09 फरवरी 2001 से 5 फरवरी 2001 तक फिर 2 जुलाई से 4 अगस्त 2001 तक  गैरसैण राजधानी  के लिए  नंदाठोंक में आंदोलन।
  • 31 अगस्त 2001 को पौड़ी बचाओ अनशन
  • दिसम्बर 2002 से फरवरी 2003 तक चाँदकोट गढ़ी में गैरसैण राजधानी के लिए आंदोलन किया।
  • अगस्त 2003 में थराली में अनशन।
  • फरवरी 2004 में कोडियाबगड़ गैरसैण में आंदोलन।
  • 02 जुलाई 2004 से 8 अगस्त 2004 तक बेनीताल में अनशन

बाबा मोहन उत्तराखंडी ने सोच समझ कर बेनीताल को अपने आमरण अनशन के रूप में चुना। क्योकि यह स्थान गैरसैण के ठीक ऊपर स्थित है। और बाबा गैरसैण को स्थाई राजधानी बनाने के लिए अनशन कर रहे थे। बेनीताल पहाड़ी राज्य के लोकाचार का सही अर्थों में प्रतिनिधित्व करता है। 08 अगस्त 2004 को बाबा उत्तराखंडी को प्रशाशन ने जबरन उठा कर CHC कर्णप्रयाग ले जाया गया। 09 अगस्त 2004 की सुबह उन्हें मृत पाया गया था।

बाबा उत्तराखंडी के इस आमरण अनशन के समर्थन में स्थानीय लोगों ने राजधानी निर्माण संघर्ष समिति का गठन करके बाबा की प्रथम पुण्यतिथि 9 अगस्त 2005 को शहीद स्मृति मेले का आयोजन किया था। तबसे प्रतिवर्ष 09 अगस्त बाबा उत्तराखंडी की पुण्यतिथि को शहीद स्मृति मेला आयोजित किया जाता है।

गैरसैण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी बनाने के सपने  पर ,बाबा उत्तराखंडी ने 38 दिनों के आमरण अनशन के बाद अपने प्राण त्याग दिए थे।  लेकिन दुःखद आज भी बाबा उत्तराखंडी और कई शहीद आंदोलकारियों का सपना “गैरसैण स्थाई राजधानी ” केवल अब एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है। अब इस मुद्दे का प्रयोग केवल चुनाव जितने और सत्ताधारी पार्टी को विधानसभा में घेरने के लिए , राजनितिक दल बारी -बारी से करते हैं।

बाबा मोहन उत्तराखंडी के त्याग और बलिदान को आजकल की सरकारें भूल चुकी हैं। बाबा को याद करना तो दूर की बात ,बाबा के सपने के साथ राजनीती की जा रही है। उत्तराखंड के नवयुवाओं को बाबा के बलिदान से प्रेरणा लेकर ,मजबूत उत्तराखंड की दिशा में कदम उठाना चाहिए।

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