Home कुछ खास अल्मोड़ा का चमत्कारी पत्थर : जिसने रोका गावं का पलायन

अल्मोड़ा का चमत्कारी पत्थर : जिसने रोका गावं का पलायन

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अल्मोड़ा का चमत्कारी पत्थर – उत्तराखंड का अल्मोड़ा जिला अपने खूबसूरत पहाड़ों, घने जंगलों और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है। लेकिन सल्ट मनीला क्षेत्र का सैंकुड़ा गांव अब एक और वजह से प्रसिद्ध हो गया है – यहां का एक विशालकाय पत्थर, जिसे स्थानीय भाषा में “ठुल ढुंग” कहा जाता है। यह पत्थर न सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है, बल्कि गांव के विकास का केंद्र बन गया है।

एक सपने से शुरू हुई कहानी

सैंकुड़ा गांव के रहने वाले विक्रम सिंह बंगारी लंदन में नौकरी करते थे। गांव की छोटी-छोटी पगडंडियों और पहाड़ों के बीच उनका बचपन बीता, लेकिन बड़े होकर वे शहरों की चमक-दमक और अपनी करियर की दौड़ में व्यस्त हो गए। विक्रम ने कभी अपने गांव के जंगल में उस विशाल पत्थर को देखा जरूर था, लेकिन उसे कोई खास महत्व नहीं दिया। हालांकि, कुछ साल पहले विक्रम को अचानक इस पत्थर से जुड़े अजीब सपने आने लगे। उन्होंने इसे महज एक इत्तफाक समझा, लेकिन जब लगातार 8-10 दिन तक यह सिलसिला चलता रहा, तो उन्होंने इसे गंभीरता से लिया।

एक रात सपने में उस पत्थर की छवि इतनी स्पष्ट थी कि उसकी हर छोटी-बड़ी रेखा और आकार उनके सामने था।सपने में पत्थर मानो उनसे संवाद कर रहा था। विक्रम का कहना है कि पत्थर ने उन्हें संकेत दिया कि उन्हें अपने गांव लौटकर उसकी सुध लेनी चाहिए। यह भी बताया कि उनका असली उद्देश्य पहाड़ को संवारने और गांव का विकास करने में है।

अल्मोड़ा का चमत्कारी पत्थर

गांव लौटने का फैसला :

पत्थर के इन सपनों ने विक्रम को झकझोर दिया। उन्होंने लंदन की नौकरी छोड़ी और दिल्ली में शिफ्ट हो गए। लेकिन दिल्ली भी उनके लिए सही जगह नहीं थी। सपने लगातार उन्हें गांव लौटने के लिए प्रेरित करते रहे। आखिरकार, विक्रम ने सैंकुड़ा गांव वापस आने का फैसला किया ।

गांव लौटकर सबसे पहले विक्रम ने उस पत्थर के दर्शन किए। वह पत्थर अब वीराने में पड़ा कोई साधारण ढुंग नहीं था; वह उनके लिए प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत बन गया था। उन्होंने इस पत्थर को गांव के विकास का केंद्र बनाने की ठान ली।

लोगों की हंसी और विक्रम का जुनून :

शुरुआत में, गांववालों ने विक्रम के प्रयासों को लेकर मजाक उड़ाया। एक बड़े शहर से वापस आकर एक साधारण पत्थर पर ध्यान देना कई लोगों को हास्यास्पद लगा। लेकिन विक्रम ने परवाह नहीं की। उन्होंने पत्थर के आसपास साफ-सफाई की, उसे एक पवित्र स्थल का रूप दिया और गांव के लोगों को इसकी अहमियत समझाने लगे।

पर्यटन से गांव की नई पहचान :

धीरे-धीरे विक्रम के प्रयास रंग लाने लगे। उन्होंने अपने गांव में होमस्टे शुरू किए, ताकि पर्यटक यहां आकर रुक सकें और इस अद्भुत पत्थर के दर्शन कर सकें। कुछ ही समय में इस चमत्कारी पत्थर की ख्याति फैलने लगी। जो गांव कभी वीरान रहता था, वहां अब हर साल 500-600 पर्यटक पहुंचने लगे।

पर्यटकों की संख्या बढ़ने के साथ गांव में चहल-पहल भी बढ़ गई। लोगों ने दुकानें खोलीं, होमस्टे बनाए, और पर्यटकों के लिए स्थानीय व्यंजन तैयार करने लगे। इन प्रयासों ने गांव की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी।

आखिर क्यों कहते हैं इसे अल्मोड़ा का चमत्कारी पत्थर जानिए खासियत  :

इस पत्थर की खासियत यह है कि , यह पत्थर बहुत बड़ा है और सदियों से अपने से कई गुना छोटे दो आधारों पर टिका है ,और आधार भी इतने मजबूत नहीं है कि इतने बड़े विशालकाय पत्थर को रोक सकें। लेकिन वे रोक रहे हैं ,चाहे आंधी आये या तूफ़ान आये या , भूकंप के झटके आये ,इस विशाल पत्थर का बाल भी बांका नहीं होता है।

इसके आगे भयंकर खायी है। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि जब उनके पूर्वजों ने पहली बार इस पत्थर को देखा तो वे डर गए। उन्हें लगा ये पत्थर कच्चे आधार में अटका है ,इसलिए ये कभी भी गिर सकता है और हमे नुकसान पंहुचा सकता है। उन्होंने उसे गिराने का प्रयास किया तो वह टस से मस नहीं हुआ। कहते हैं उन्हें सपना आया कि उस पत्थर को मत छेड़ों वह तुम्हे कोई नुकसान नहीं पहुचायेगा।

उत्तरैणी मेले की शुरुआत :

विक्रम की पहल पर हर साल 14 जनवरी को उत्तरैणी मेले का आयोजन होने लगा। यह मेला गांव के लोगों और पर्यटकों के लिए खास अवसर बन गया। इस मेले में हजारों लोग शामिल होते हैं, और इससे गांव के व्यापार और संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।

गांव का पलायन रुकना शुरू हुआ :

एक समय था जब सैंकुड़ा गांव के लोग रोजगार की तलाश में पहाड़ छोड़ने पर मजबूर थे। विक्रम के प्रयासों और इस चमत्कारी पत्थर के कारण अब स्थिति बदल गई है। इस पत्थर के दर्शन और पर्यटकों से जुड़े रोजगार ने लोगों को गांव में ही रुकने का हौसला दिया। आज डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोग सीधे तौर पर रोजगार से जुड़ चुके हैं।

विक्रम का संदेश:

विक्रम सिंह बंगारी इस बदलाव का श्रेय पत्थर को देते हैं। उनके लिए यह सिर्फ एक पत्थर नहीं है, बल्कि प्रेरणा का प्रतीक है। वे कहते हैं कि यह पत्थर न केवल गांव के विकास का केंद्र बना है, बल्कि लोगों में आत्मविश्वास और सामूहिकता का भाव भी जगा रहा है।

अंतिम शब्द :

सैंकुड़ा का यह चमत्कारी पत्थर सिर्फ एक पर्यटक आकर्षण नहीं है। यह उन पहाड़ी गांवों के लिए प्रेरणा है, जो पलायन और उपेक्षा की समस्या से जूझ रहे हैं। विक्रम सिंह बंगारी के सपनों ने यह साबित कर दिया कि अगर एक व्यक्ति ठान ले तो वह अपने गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल सकता है।सैंकुड़ा का यह पत्थर आज न केवल पर्यटकों का ध्यान खींच रहा है, बल्कि गांववालों की जिंदगी भी बदल रहा है। यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो अपने जड़ों से जुड़कर कुछ बड़ा करना चाहता है।

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