उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में भाद्रपद पंचमी से अष्टमी तक सातू आठूं नमक लोकपर्व मनाया जाता है।यह पर्व शिव और पार्वती को समर्पित है।
सातू आठू पर्व में महादेव शिव को जीजाजी और माँ गौरी को दीदी के रूप में पूजने की परम्परा है।भगवान शिव को और माँ पार्वती को अपने साथ दीदी और जीजा के रिश्ते में बांध कर यह त्यौहार मनाया जाता है।
कहते है ,जब दीदी पार्वती महादेव से नाराज होकर अपने मायके आ जाती है ,तब महादेव उनको वापस ले जाने ससुराल आते है। दीदी की विदाई और जीजाजी की सेवा के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है।
यह त्यौहार कुमाऊँ सीमांत में सांतू आंठू के नाम से तथा ,नेपाल में गौरा महेश्वर के नाम से मनाया जाता है। इस लोक पर्व को गमारा पर्व भी कहा जाता है।
भाद्र पंचमी को बिरुड पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन एक साफ ताबें के बर्तन में ,गाय के गोबर से पंच चिन्ह बनाकर उसपे दुब अक्षत करके उसमे पांच या सात प्रकार का अनाज भिगोने डाल दिया जाता है।
इन अनाजों में मुख्यतः गेहू ,चना, सोयाबीन , उड़द ,मटर,गहत, क्ल्यु बीज होते हैं। सातू के दिन जल श्रोत पर धो कर ,आठू के दिन गमारा मैशर (गौरी महेश ) को चढ़ा कर ,फिर स्वयं प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।
सातों (सप्तमी ) के दिन गमारा दीदी का श्रृंगार किया जाता है। गमारा दीदी का श्रृंगार के लिए महिलाएं सोलह श्रंगार करके धान के खेत से एक विशेष पौधा सौं और धान के पौधे लाती हैं।
भिगाये गए बिरुड़ से गमरा दीदी की पूजा होती है।अखंड सौभाग्य और संतान की मंगल कामना के लिए सुहागिन महिलाएं, गले व हाथ मे पीली डोर धारण करती हैं। पुरोहित सप्तमी की पूजा करवाते हैं।
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आठू के दिन सभी महिलाएं एक स्थान पर जमा होकर खेतों में से डलिया में सौं और धान के पौधे लेकर भगवान शिव की प्रतिमा बनांते हैं। और उन्हें माँ पार्वती के साथ स्थापित किया जाता है।
कहते है,कि इस दिन भगवान शिव रूठी हुई माँ पार्वती को मनाने आते हैं। पूजा और लोकगीत , लोकनृत्यों के बाद दीदी जीजा को नम आखों से विदाई दे दी जाती है।