आज भगवान् शिव के उस मंदिर के बारे में बताने जा रहें है ,जहाँ से सर्वप्रथम उनकी लिंगस्वरूप में पूजा शुरू हुई !

उत्तराखंड में कई ऐसे देवालय  हैं जिनका वर्णन पुराणों में मिलता है। जहाँ ऋषि मुनियो ने तप करके और स्वयं भगवान् ने अवतार धारण कर उस स्थल को पावन कर दिया !

उत्तराखंड के अल्‍मोड़ा जिले में ऐसा ही एक स्थान है जागेश्वर धाम। जहां  सालभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है किन्तु  सावन और महाशिवरात्रि पर यहां  भक्तों का जन सैलाब उमड़ता है।

भगवान शिव का यह मन्दिर उनके बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। जागेश्वर धाम को उत्तराखंड का पांचवा धाम भी  कहते हैं।  

जागेश्वर धाम को भगवान भोलेनाथ  की तपस्थली माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को योगेश्वर नाम से भी जाना जाता है।

बताते हैं  है कि यह प्रथम मंदिर है जहां शिव लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई।इसका उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है।

जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों का निर्माण  बड़े -बड़े पत्थरों से किया गया है।कहते हैं इसे प्राचीन काल में  लव -कुश ने बनाया था। 

इतिहासकारों के अनुसार कत्यूरी युग में कत्यूरों ने इन मंदिरों को एक रात में बनाया था। जागेश्वर धाम में सारे मंदिर केदारनाथ शैली से बने हुए हैं।

इस के बारे में यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इनमें से कुछ मंदिरों का निर्माण किया था। लेकिन यह सिर्फ दवा है कन्फर्म नहीं है। 

जागेश्वर धाम  जाने के लिए काठगोदाम उतर कर अल्मोड़ा होते हुए यहाँ पंहुचा जा सकता है। हल्द्वानी काठगोदाम देश के सभी मार्गों से आसानी से जुड़ा है।