उत्तराखंड एक प्राकृतिक प्रदेश है। यहाँ के निवासियों का और प्रकृति का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रकृति यहाँ के लोगो को एक आदर्श जीवनचर्या के लिए एक माँ की तरह सारी सुविधाएँ देती है।

बदले में उत्तराखंड के निवासी समय समय पर प्रकृति की रक्षा और उसके सवर्धन से जुड़े पर्व ,उत्सव मना कर प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करना नहीं भूलते। 

प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का उत्सव है बटर फेस्टिवल। स्पेन के टमाटर युद्ध की तरह सारे भारत वर्ष का खास उत्सव है बटर फेस्टिवल। 

उत्तरकाशी में रैथल ग्रामवासी , मखमली बुग्याल दायरा में भाद्रपद की संक्रांति को अपने मवेशियों के ताजे दूध ,दही , मठ्ठा और मक्खन प्रकृति को अर्पित करके उत्सव मनाते हैं।

स्थानीय ग्रामीणों के पशु अप्रैल से अगस्त तक समुद्रतल से 11 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर बसे उत्तरकाशी के दायरा बुग्याल में रहते हैं।

बुग्यालों की मखमली और औषधीय घास और अनुकूलित वातावरण से मवेशियों का दुग्ध उत्पादन बढ़ने के साथ औषधीय गुणों से युक्त हो जाता है। अगस्त अंतिम सप्ताह और सितम्बर से पहाड़ों में ठण्ड का आगमन हो जाता है।

ठण्ड बढ़ने से पहले सभी गावंवासी अपने-अपने मवेशियों को वापस अपने घरों को लाने के लिए जाते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि लगभग 5 माह प्रकृति उनके पशुधन की रक्षा और पालन पोषण करती है। 

पशुधन को घर लाने से पहले ,वे प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए बटर फेस्टिवल ,अन्दुडी  उत्सव का आयोजन करते हैं। यह उत्सव प्रतिवर्ष 16 -17 अगस्त को मनाया जाता है।

इस उत्सव के दिन लोग दूध दही , ढोल -दमाऊ आदि पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ दायरा बुग्याल पहुंच जाते हैं। वहां एक दूसरे पर दूध मट्ठा फेक कर ,और एक दूसरे को मक्खन लगाकर मक्खन की होली  मनाई जाती है।

ब्रज की होली की तरह राधा -कृष्ण बने पात्र आपस में मक्खन की होली खेलते हैं। पारम्परिक पहनावे के साथ ,पारम्परिक लोक संगीत का आयोजन किया जाता है। पारम्परिक लोक गीत रासो का आयोजन भी किया जाता है।

भारत के इस ख़ास उत्सव में अब स्थानीय ग्रामीणों के साथ देश विदेश से आये टूरिस्ट भी बड़े उत्साह के साथ बटर फेस्टिवल का आनंद लेते हैं।