Home संस्कृति भाषा कोरोना पर कुमाउनी कविता | Corona pe kumaoni me kavita

कोरोना पर कुमाउनी कविता | Corona pe kumaoni me kavita

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आजकल उत्तराखंड में कोरोना ,अपने चरम पर चल रहा है। प्रतिदिन लगभग 1000- 1900 तक संक्रमण के शिकार हो रहे हैं।आज हमने आपके मुस्कराने के लिए , कोरोना पर कुमाउनी कविता लिखी है। यह एक हास्य कविता है। इसमें हमने एक प्रेमी और प्रेमिका बीच का वार्तालाप का वर्णन है, जब प्रेमी को मास्क न पहनने के जुर्म में पुलिस की मार भी पड़ती है ,और चालान भी भरना पड़ता है । तो लीजये पढ़िए और आनंद लीजिए।

कोरोना पर कुमाउनी कविता का शीर्षक है-

            “रेशमी रुमाल”

के बतू आपुणे हिया को हाल।

कोरोना ले करि रो हाल बेहाल।

त्यर के बिगेड़ी जानो,

म्यर गिच छोपी जानो,

जो दी दिनी तू आपणो

यो रेशमी रुमाल , रेशमी रुमाल।।

के बतू आपणो हिया को हाल।

कोरोना ले कारि रो हाल बेहाल।

मि पुलिसक दंड नि खानो ।

म्यार डबल बची जाना ।

मिकी कोरोना नि लग्नो।

जो दी दीनी तू आपणो,

यो रेशमी रुमाल ,रेशमी रुमाल।।

के सुनु तेरो हिया को हाल ।

कोरोना ले  कारि रो या हाल बेहाल ।।

द्वी गजेकी दूरी , मास्क छू जरूरी।

नि चलल या  मेरो यो ,

रेशमी रुमाल,रेशमी रुमाल।।

तू  सुई लगे ल्याले,

तू मास्क लगे ल्याले ,हाथ धोइ ल्याले ,

नी लागलो तेपा, कोरोना को काल।।

कोरोना पर कुमाउनी कविता
कोरोना कविता कुमाउनी भाषा मे।

निवेदन –  

उपरोक्त कुछ लाइन हमने कोरोना पर कुमाउनी कविता लिखने की कोशिश की है । इसमे कुछ हास्य का पुट भी रखा है। यदि यह कविता आपको अच्छी लगी तो , साइड में सोशल मीडिया बटन दिख रहे हैं,उनपे क्लिक करके सोशल मीडिया पर शेयर करके हमको अनुग्रहित करें। अगर आप कुछ सुझाव देना चाहते है ।तो हमारे  फेसबुक पेज  देवभूमि दर्शन पर मैसेज करे।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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