Home कुछ खास उत्तराखंड में बादल फटना , कारण एवं निदान।

उत्तराखंड में बादल फटना , कारण एवं निदान।

0

पिछले कुछ सालों से उत्तराखंड में अतिवृष्टि बढ़ गई है। जिसके कारण भूस्खलन, और कई प्रकार की जान माल की हानि हो रही है। उत्तराखंड में बादल फटना आम हो गया है। उत्तराखंड में होने वाली अचानक अतिवृष्टि को बादल फटना कहते हैं। अब सवाल ये उठता है, कि क्यों फटते है बादल ? या बादल फटना क्या होता है ? और उत्तराखंड में ज्यादा बादल क्यों फटते हैं ?

 बादल फटना क्या होता है ?

उत्तराखंड में लगातार बादल फटने (Cloud brust) की घटनाओं ने हम सब को झकझोर कर रख दिया है।  मई 2021 में उत्तराखंड में एक हफ्ते के अंदर लगातार बादल फटने की घटना देखी गई। उत्तराखंड की सबसे बड़ी बादल फटने की घटना केदारनाथ आपदा के रूप में हम सब देख चुके हैं।

क्या है बादल फटना ? क्यों फटते हैं बादल ?  बादल फटना या cloud brust बारिश का भयंकर स्वरूप है। इस घटना को मेघ बिस्फोट या मूसलाधार बारिश या अतिवृष्टि भी कहते हैं।  मौसम विज्ञान के अनुसार , बादल फटना बारिश का चरम उत्कर्ष है। इस घटना में तेज बारिश के साथ, ओले और बिजली भी कड़कती है। बादल फटने का अर्थ है, पूरी आद्रता, और संघनित बादल , एक ही स्थान पर बरस जाते हैं। उस स्थान पर बाढ़ की जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

या पूर्ण आद्रता ,बहुत नमी वाले बादल एक स्थान पर रुक जाते हैं। वह पानी की बूंदे एक दूसरे से टकराने लगती है। या किसी अवरोधक से रुक कर सारा पानी एक ही स्थान पर बरस जाता है।यह घटना कुछ ऐसी होती है, जैसे पहाड़ी से एक पानी का गुब्बारा फोड़ दिया जाता है। और वो बड़ी तेजी से घाटी की तरफ बहता है।

यह बादल फटने  की घटना पृथ्वी से लगभग 15 किमी की ऊँचाई पर होती है। बदल फटने  की वजह से , 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की स्पीड से बारिश होती है। और कुछ ही देर में एक सीमित स्थान पर लगभग 2 सेंटीमीटर से अधिक बारिश हो जाती है। बादल फटने  के कारण भारी तबाही और जान माल का नुकसान भी होता है।

उत्तराखंड में बादल फटना
फ़ोटो साभार – गूगल

बादल फटने के कारण –

बादल फटने के मुख्य तह दो कारण होते हैं –

बादलों के मार्ग में बाधा आना –

भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार , जब बादल स्वयं में अत्यधिक मात्र में आद्रता लेकर चलते है।मतलब बादल अधिक मात्रा स्वयं में जल भरकर चलते हैं तो उनके राह में पर्वत रुपी, या अन्य कोई बाधा आ जाती है, तो उस बाधा से टकराने के बाद, बादल उसी स्थान पर अचानक फट पड़ते हैं। या बादल अपने आप मे  बहुत सारी नमी लेकर चलते हैं, और एक स्थान पर रुक जाते हैं या घाटी वाले स्थान पर फंस जाते हैं।

और वहीं आपस मे टकराकर या अवरोध से टकराकर ऐसी स्थिति में बहुत सारा पानी ,एक ही स्थान पर गिरता है। जिसके कारण वहा तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है। भारत मे हिमालय बादलों के लिए अवरोधक बन जाता है। इसलिए  हिमालयी क्षेत्र में बादल अधिक फटते हैं।

बादल फटने की जिम्मेदार गर्म हवाएं भी होती है। कभी आद्रता से भरे हुए बदलो पर अचानक कोई गर्म हवा के झोंका आकर टकराता है। बादल अत्यधिक आद्रता से भरे होने के कारण, गर्मी नही सहन कर पाते वही पर बरस जाते हैं। मौसम विज्ञान के अनुसार उदाहरण के लिए – जब 26 जुलाई 2005 में मुंबई में अतिवृष्टि हुई थी , तो वो भी बादलों पर गर्म हवाएं टकराने के कारण था।

बादल फटना क्या है ?

 को  समझने के लिए जानना होगा , बादल क्या हैं ? और  बादल कैसे बनते हैं ?  बादल कितने प्रकार के होते हैं ?

बादल क्या है ?

हमारे वायुमंडल में उपस्थित पानी के वाष्प के संघनन प्रक्रिया से बने जलकणों या हिमकणों की एकत्रित दृश्य मात्रा को बादल कहते हैं।

बादल कैसे बनते हैं ?

बादल कैसे बनते हैं? वैसे इसके बारे में ,सामान्य रूप से सब जानते हैं। मगर जब यहाँ बादल के फटने पर चर्चा  कर ही रहे हैं तो। संशिप्त में ये भी जान लेते हैं कि बादल कैसे बनते हैं ?

“सूर्य की गर्मी से नदियों, तालाबों, झीलों और महासागरों का जल वाष्प बनकर हवा में उड़ जाता है। और गर्म वाष्प युक्त हवा हल्की होने के कारण ऊपर वायुमंडल में पहुच जाती है। वहाँ  अधिक वाष्प  वाली  जल कण एक जगह धुवे के आकार में एकत्रित हो जाते हैं। इन्ही को बादल बनने की प्रक्रिया कहते हैं ”

उपरोक्त्त बादलों में उपस्थित जल वाष्प प्राकृतिक संघनन क्रिया द्वारा बारिश की बूंदों में परिवर्तित हो जाती है। और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण वो बूदें पृथ्वी पर आ गिरती हैं।

बादल कितने प्रकार के होते हैं ?

बादल निम्न प्रकार के होते है –

1- उच्च बादल –

वायुमंडल में 16,500 फिट ,या 5000 मीटर से अधिक उचाई पर इन बादलों का निर्माण होता है। उच्च बादलों में भी निम्न अलग अलग प्रकार के बादल आते हैं।

  • पक्षाभ बादल  
  • पक्षाभ स्तरीय बादल 
  • पक्षाभ कपासी बादल 

मध्यम उचाई वाले बादल 

माध्य्म ऊंचाई वाले बादलों का निर्माण धरातल से लगभग 2 से 7 किलोमीटर के अंतर्गत होता है। इसके निम्न भाग हैं।

  • स्तरीय बदल 
  • कपासी मध्य उचाई के बादल 

निम्न ऊँचाई वाले बादल

ये बादल धरती से लगभग 0 से 2 किलोमीटर के अंतर्गत होता है। इसके निम्न प्रारूप हैं –

  • स्तरीय कपासी बादल 
  • स्तरीय बादल 
  • वर्षा स्तरीय बादल 

ऊर्ध्वाधर रचना वाले मेघ –

इस प्रकार के बादल  धरातल से 18 किलोमीटर तक अपना आकर ग्रहण करते हैं। इसके निम्न प्रारूप हैं ।

  • कपासी बादल
  • कपासी -वर्षी बादल 

बादल फटने  की घटना (clouds burst ) कपासी -वर्षी बादल के कारण होती है। इनकी लंबाई लगभग 14 किलोमीटर तक होती है। 

पहले ये सफेद रंग के होते है। जब इनमे कोई गर्म हवा का झोंका आ टकराता है या इनके अंदर घुस जाता है। तो ये एकदम काले घने होकर , बिजली के साथ बरसना चालू कर देते है। ये अधिक भारी और नजदीक होने के कारण किसी अवरोधक से टकराने के कारण या गर्म हवा से टकराने के कारण   एक ही  स्थान पर बरस जाते हैं । और वहीं पर बाढ़ की स्थिति बना देते हैं।

उत्तराखंड में बादल क्यों फटते हैं ? या उत्तराखंड में बादल फटना की घटना अधिक क्यों होती है ?

बादल क्या है ? बादल कितने प्रकार के होते हैं ?  और बादल क्यों फटते हैं ? उपरोक्त लेख में हमने इन सवालों के बारे में बात की । अब सवाल  है कि , ” उत्तराखंड में इतने बादल क्यों फट रहे है ?

उत्तराखंड में बादल फटने के मुख्य कारण निम्न है –

बदलो का पहाड़ो से टकराकर फटना  क्योंकि उत्तराखंड एक हिमालयी राज्य है। और हिमालय की पहाड़ियां बादलों के सामने अवरोधक बन के खड़ी हो जाती हैं। बादल जल वाष्प से अत्यधिक भरे होने के कारण ,एक साथ उसी पहाड़ी की घाटी में बरस जाते हैं। यह एक सामान्य कारण है। मगर बिगत वर्षो में उत्तराखंड में बादल फटने की घटनायें तेज हो गई है। जिसके कारण बाढ़ और जान माल की हानि हो रही है। इन्ही घटनाओं के कारण उत्तराखंड एक आपदा प्रदेश बन गया है।

उत्तराखंड में बादल फटने का सबसे मुख्य कारण है। प्रकृति का  अत्यधिक दोहन जिससे उत्तराखंड में प्राकृतिक संतुलन खराब हो गया है।  और उत्तराखंड में बादल फटना ( Cloud brust in Uttarakhand ) और उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने ( Glaciers brust in Uttarakhand ) जैसी घटनाएं हो रही है।

उत्तराखंड देवप्रयाग में बादल फटने के बाद , भुस्खलन
फ़ोटो साभार – सोशल मीडिया

उत्तराखंड में बादल फटने के मुख्य कारण –

1- उत्तराखंड में बांध का अधिक बनना

उत्तराखंड में बांधो के रूप में जल का रुकाव अधिक है, जिसके कारण जलवाष्प से अधिक बादलों का निर्माण होता है, या बादल अधिक भारी हो जाते हैं। जो यहीं घाटियों में टकरा कर बादल फटने की घटना को अंजाम देते हैं।

2- उत्तराखंड में पेड़ो का अधिक दोहन या उत्तराखंड के जंगलों में आग लगकर जंगल नष्ट होना –

  पेड़ प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। पेड़ो की वजह से तापमान संतुलित रहता है। पेड़ भूस्खलन को रोकने में सबसे ज्यादा सहायक होते हैं। आजकल हम सब ये नोटिस कर रहे हैं कि तापमान में असंतुलन पैदा हो गया है।

पेड़ो की कमी की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव बढ़ गया है। आजकल उत्तराखंड का ही नही पूरे संसार का तापमान असन्तुलित हो गया है। और इसी तापमान असंतुलन की वजह से चमोली आपदा, चमोली में ग्लेशियर फटने ( Glaciers brust in Chamoli )की घटना हुई थी। और इसी तापमान असन्तुलन की वजह से बादल फटने, जैसी घटनाएं घटित होती है।

तापमान असंतुलन से उत्तराखंड की घाटियों में तापमान अधिक रहता है, जिसके कारण मेघ द्रवित होकर सारे एक स्थान पर बरस जाते हैं। और पेड़ ना होने के कारण , बादल फटने के साथ बाढ़ भी आती है।और भू स्खलन भी बढ़ जाता है।

उत्तराखंड में बादल फटना कैसे रोके

बादल फटने की घटना एक प्राकृतिक घटना है। वर्तमान में प्रकृति के अत्यधिक दोहन या प्राकृतिक असंतुलन के कारण यह घटना अधिक हो गई है। इस घटना को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसे कम किया जा सकता है। और इसके नुकसान को भी रोका या कम किया जा सकता हैं। इसके मुख्य उपाय निम्न है –

फ़ोटो साभार – गूगल

1-पानी को रोकने की प्रवत्ति को कम करना

बांधो का निर्माण कम करना। जिससे बादल कम बने और प्राकृतिक संतुलन बना रहे। बांध मानव जीवन मे लाभ से अधिक हानिकारक ज्यादा है।

2 – वृक्षारोपण  और उत्तराखंड के वनों को आग से बचाना

प्राकृतिक आपदाओं से बचने का और प्राकृतिक संतुलन को बनाने का सबसे महत्वपूर्ण , रामबाण उपाय है, वृक्षारोपण । यदि जहां वन अधिक होंगे वहाँ प्रकृतिक आपदाएं कम होंगी  । और बादल फटने से बचने का एक ही उपाय है , पेेङ लगाना।

पेड़ हमको बादल फटने की घटना से निम्न प्रकार बचाते हैं –

  • पेड़ प्रकृति का तापमान संतुलित करते हैं। जिससे असन्तुलित बारिश या अतिवृष्टि नहीं होती है।
  • पेड़ो की जड़े मिट्टी को जकड़ कर रखती हैं, जिससे भुस्खलन नही होता।
  • जब बादल फट कर ऊपर से पूरे वेग के साथ गिरता है, तो वृक्ष या वन पानी का आधा वेग अपने ऊपर धारण कर लेते हैं। जिससे धरती पर पानी आराम से गिरता है। जिससे ज्यादा नुकसान नही होता। जैसे पौराणिक कथाओं में , जब माँ गंगा पूरे वेग से धरती की तरफ आ रही थी, और वे उसी वेग से धरती पर गिरती तो, धरती तहस नहस हो जाती। लेकिन भगवान  शिव ने उनका यह वेग अपने ऊपर रोका था। ठीक उसी प्रकार पेड़ हमारे लिए  भगवान शिव का रोल अदा करते हैं।

पेड़ हमको बहुत सारे लाभ प्रदान करते है। वर्तमान में कोरोना महामारी में ऑक्सीजन की कमी से लोग मर रहे हैं । यह प्राण वायु भी हमे पेड़ ही देते हैं। कलयुग में पेड़ हमारे असली भगवान हैं।

निवेदन –

बादल फटने की घटना को वीडियो में समझने के लिए यहाँ क्लिक करें।

इसे भी पढे – उत्तराखंड का सबसे खूबसूरत हिल स्टेशनों में से एक है , रानीखेत हिल स्टेशन , रानीखेत के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

 

Exit mobile version