उत्तराखंड के कैलाश पर्वत में  भगवन शिव  का निवास स्थान  जाता है। और उत्तराखंड में ही उनका ससुराल भी माना जाता है। क्युकी पर्वतराज हिमावन की पुत्री पार्वती के साथ  विवाह हुवा था। 

जहाँ भगवान शिव और  पार्वती का विवाह हुवा में था ,वह स्थान भी उत्तराखंड में स्थित है। आज वह स्थान दुनिया का फेमस वेडिंग डेस्टिनेशन है। 

पौराणिक कहानियों के अनुसार  भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के त्रियुगीनारायण गांव  में गंगा और मंदाकिनी सोन के संगम पर संपन्न हुआ था।

त्रियुगीनारायण मंदिर, जिसे शिव-पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है।  यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है।  स्थानीय भाषा में इसे त्रिजुगी नारायण के नाम से पुकारा जाता है। 

भगवान शिव की पहली पत्नी का नाम माता सती था। माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा शिव का अपमान किये जाने के कारण अग्नि कुंड में कूदकर आत्म-दाह कर लिया था।

कई वर्षों के बाद पर्वतराज हिमालय के यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ जिनका नाम पार्वती था। पार्वती माता सती का ही पुनर्जन्म था। 

माता पार्वती ने हजारों वर्षों तक उत्तराखंड के गौरीकुंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया।माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए।

इसके बाद माता पार्वती ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा।जिसे भगवान शिव ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह सुनकर पार्वती के पिता हिमालायाराज ने विवाह की तैयारियां शुरू कर दी।

हिमालय राज की नगरी हिमवत की राजधानी त्रियुगीनारायण गाँव ही था। इसलिए त्रियुगीनारायण गाँव के इस त्रियुगीनारायण मंदिर में दोनों का विवाह करवाने का निर्णय किया गया।

 माँ पार्वती के भाई के रूप में भगवान विष्णु ने सभी कर्तव्यों का निर्वहन किया था व विवाह की रस्मों को निभाया था। 

महादेव और पार्वती  के विवाह में ब्रह्मदेव ने पुरोहित की भूमिका निभाई थी। ब्रह्मदेव के मंत्रोच्चारण में महादेव व् माता पार्वती ने फेरे लिए।

कहते हैं इस मंदिर में तीन युगों से अखंड धुनि जल रही है। इसी अखंड धुनि की पवित्र अग्नि में महादेव और गौरी ने फेरे लिए। 

भगवान शिव पार्वती के विवाह के बाद इस स्थान की महत्ता अधिक बढ़ गई है। वर्तमान में यह सबसे पसंदीदा और सबसे डिमांडिंग वेडिंग डेस्टिनेशन है। 

एक और मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु का पंचम अवतार भगवान वामन ने भी इसी स्थल पर जन्म लिया था। इसलिए यहाँ भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।