उत्तराखंड प्राचीनकाल से अपनी परम्पराओं द्वारा प्रकृति प्रेम और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी और प्रकृति की रक्षा की सद्भावना को दर्शाता आया है।
इसीलिये उत्तराखंड को देवभूमी और प्रकृति प्रदेश भी कहते हैं। प्रकृति को समर्पित उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला पर्व , प्रत्येक वर्ष कर्क संक्रांति श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है।
कैलेंडर के अनुसार 2023 में हरेला पर्व 17 जुलाई को मनाया जाएगा। हरेला त्योहार के ठीक 10 दिन पहले हरेला बोया जाता है
उत्तराखंड का यह पर्व प्रकृति प्रेम के साथ कृषि को भी समर्पित है। इस त्यौहार में मिश्रित अनाज की बुवाई की जाती है। कर्क संक्रांति से सूर्य भगवान दक्षिणायन हो जाते हैं।
हरेला के10 दिन पहले देवस्थानम में लकड़ी की पट्टी में छनि हुई मिट्टी को लगाकर, उसमे 7 या 5 प्रकार का मिश्रित अनाज बो देते हैं। इनमे दो या तीन दिन बाद अंकुरण शुरू हो जाता है।
इसकी दस दिन तक ध्यान रखा जाता है। नियमित सिंचाई की जाती है। हरेले की पूर्व संध्या को विशेष पकवान बना कर इनकी निराई गुड़ाई की जाती है।
हरेला पर्व की पूर्व संध्या के दिन कुमाऊं मंडल के कई क्षेत्रों में शिव ,पार्वती ,और गणेश की मूर्ति बना कर पूजा करते हैं। जिन्हे डिकारे पूजा कहते हैं।
हरेला पर्व के दिन परिवार के सभी सदस्य , प्रातः जल्दी उठकर स्नान करके पूजा पाठ की तैयारी करते हैं। महिलाओं का विशेष कार्य होता है कि वे स्वादिष्ठ पारम्परिक भोजन तैयार करें।
कुल पुरोहित आकर हरेला काट कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करके आशीष देकर जाते हैं। उसके बाद देवताओं को और घर के सदस्यों को हरेला चढ़ाया जाता है।
इस त्यौहार पर वृक्षारोपण को विशेष महत्व दिया जाता है।हरेले के दिन पूरे प्रदेश में वृक्षारोपण का कार्यक्रम चलाया जाता है। सरकार और जनता इसमे खुल कर भागीदारी करती हैं।