Tuesday, November 12, 2024
Homeसंस्कृतिउत्तराखंड में बग्वाल , जब पहाड़ के वीरों ने महाभारत में खेली...

उत्तराखंड में बग्वाल , जब पहाड़ के वीरों ने महाभारत में खेली थी बग्वाल।

बग्वाल का मतलब –

उत्तराखंड के कुमाऊं और  गढ़वाल क्षेत्र में बग्वाल नाम से कई लोक उत्सव मनाये जाते हैं। मुख्यतः उत्तराखंड में बग्वाल के नाम से दीपावली और दीपावली से जुड़े त्योहारों को इंगित किया जाता है। उत्तराखंड में बग्वाल का अर्थ होता है पत्थर युद्ध अथवा पत्थर युद्ध का अभ्यास। प्राचीनकाल में पहाड़ो में  राजाओं और सामंतों के पास सेना एक ऐसी टुकड़ी रहती थी ,जो पत्थर युद्ध करती थी। उसे आप वर्तमान भाषा में पत्थर मार टुकड़ी भी कह सकते हैं। जिस प्रकार राजपूत सेना के सैनिक अपनी विजय यात्राओं से पहले युद्धाभ्यास करते थे उसी प्रकार पहाड़ों के पत्थर मार सैन्य टुकड़ी वर्षा काल के बाद अपने पत्थर युद्ध का अभ्यास करती थी जिसे बग्वाल कहते थे।

जब पहाड़ के वीरों ने महाभारत में खेली बग्वाल –

कहते हैं इस विशेष युद्ध कला का उल्लेख महाभारत के युद्ध में भी मिलता है ,जब पहाड़ के पत्थर मार टुकड़ी ने अपने कौरवों की तरफ से अपना विशेष कौशल दिखाते हुए पांडव पक्ष के वीर सात्यकि को परेशान कर दिया था। जब दुशाःशन ने देखा कि सात्यकि ने कृतवर्मा ,कम्बोजे आदि कौरव योद्धाओं को पराजित कर दिया ,तब दुःशाशन ने अपनी पर्वतों से लायी गई विशेष पत्थरयुद्ध विशारद टुकड़ी को सात्यकि पर हमला करने का आदेश दिया ,क्यूकी सात्यकि पत्थर युद्ध में निपुण नहीं था।

कुछ समय के लिए पर्वतीय पत्थर वीरों ने सात्यिकी को भी परेशान और असहज कर दिया था। फिर सात्यिक ने अपने विशेष धनुर्कौशल का प्रयोग करते हुए ,पर्वतीय पत्थर वीरों को पराजित कर दिया। कहते हैं अज्ञातवास के दौरान पांडवों  ढूढ़ने के लिए दुसाशन अल्मोड़ा के कौरव छीना और बग्वालीपोखर तक आया था ,वहां के राजा को हरा कर कुछ समय वहां रुका भी था।

इसके अलावा कहते हैं जब राजा रघु अपनी दिग्विजय यात्रा पर हिमालय पहुंचे तो उन्हें यहाँ के राजाओं की पत्थर मार सेना टुकड़ी का सामना करना पड़ा।

पुराने समय का अभ्यास आज उत्तराखंड में बग्वाल की परम्परा –

Best Taxi Services in haldwani

पहले पहाड़ों के मांडलिक राजा या सामंत लोग वर्षा के बाद विशेष उत्सवों को अपने वीरों से पत्थर युद्ध का अभ्यास करवाते थे ,जो कालान्तर में बग्वाल उत्सवों के नाम से प्रसिद्ध हो गए। विशेषकर दीपावली का उत्सव बग्वाल के नाम से भविष्य में प्रचलित हो गया ,जिसमे मुख्य दीपवाली और उसके आगे पीछे पड़ने वाले उत्सवों को बग्वाल के नाम से सम्बोधित किया जाता है। जिसमे मुख्य इगास बगवाल ,मंगशीर बग्वाल इत्यादि मुख्य हैं। उत्तराखंड में बग्वाल की इस परम्परा में शारीरिक हानि ,चोट इत्यादि लगने के कारण धीरे -धीरे पत्थर युद्ध खत्म कर दिया गया और उनकी जगह आपसी सौहार्द वाली परम्परा शुरू कर दी गई।

यही परम्पराएं वर्तमान लोक पर्वों का रूप ले चुकी हैं , कालान्तर यही परम्पराएं बग्वाल के नाम से लोक पर्व के रूप में निभाई जाती है।

उत्तराखंड में बग्वाल पर्व –

उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल में निम्न लोक पर्व या तिथियां बग्वाल के रूप में मनाई जाती हैं।

1 – श्रावणी पूर्णिमा की बग्वाल –

रक्षा बंधन के दिन चम्पावत जिले के वाराही देवी मंदिर के प्रांगण खेली जाने वाली ये बग्वाल एकमात्र बग्वाल है जो अपने वास्तविक रूप में खेली जाती है। इसे देवीधुरा बग्वाल मेला भी कहते हैं। इसमें दो पक्ष एक दूसरे पर पत्थर वर्षा करते हैं।

2 – दियाई बग्वाल या दीपावली की बग्वाल –

प्राचीन काल में उत्तराखंड के पहाड़ों में दीपावली ,गोवर्धन पूजा और भाई दूज के अवसर पर भी बग्वाल खेली जाती थी। जो धीरे धीरे बंद हो गई लेकिन ,पहाड़ों में दीपावली को बग्वाल का नाम दे गई। हां गोवर्धन पूजा के अवसर पर अल्मोड़ा के पाटिया गांव में बग्वाल खेलने की परंपरा आज भी कायम है। इसके अलावा दीपावली के ठीक एक माह बाद उत्तराखंड के जौनसार और हिमाचल के कुछ भागों में बूढी दीवाली मनाई जाती है जिसे दियाई बग्वाल कहते हैं।

3 – इगास बग्वाल –

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के कुछ क्षेत्रों में दीपावली के ग्यारह दिन बाद यानी एकादशी के दिन बगवाल मनाई जाती है ,जिसे ईगास बग्वाल कहते हैं। ईगास का अर्थ स्थानीय भाषा में एकादशी होता है तो बग्वाल का अर्थ वैसे तो पत्थरों का युद्ध होता है ,लेकिन वर्तमान में ईगास बग्वाल को एकादशी के दिन मनाई जाने वाली दीपावली कहते हैं। अब बग्वाल का अर्थ दीपावली से लेते हैं।

इस दिन पशुधन की सेवा की जाती है। और स्थानीय पकवानों का आनंद लेते हैं ,और रात को चीड़ की लकड़ी से भैलो खेलते हैं।

उत्तराखंड में बग्वाल , जब पहाड़ के वीरों ने महाभारत में खेली थी बग्वाल।
इगास बग्वाल की शुभकामनायें।

मंगसीर बग्वाल –

उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र की बूढी दीवाली के साथ उत्तरकाशी ,रवाई ,जौनपुर बूढ़ाकेदार आदि क्षेत्रों में मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है। कहते हैं माधो सिंह भंडारी के विजय उत्सव के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। लेकिन ये बाद की घटनाएं हैं। पहले समस्त पर्वतीय क्षेत्रों में विशेष तिथियों या पर्वों पर पत्थर युद्ध का अभ्यास किया जाता था।

उत्तराखंड में बग्वाल , जब पहाड़ के वीरों ने महाभारत में खेली थी बग्वाल।

संबंधित लेख –

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments