Tuesday, May 23, 2023
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उत्तराखंड की लोककथा ” ओखली का भूत ” || उत्तराखंड की लोककथाएँ || Uttarakhand folk tales in hindi | Uttarakhand ki lok kathayen

मित्रों आज आपके लिए उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल दोनो मंडलों में सुनाई जाने वाली लोक कथा लाएं है। यदि अच्छी लगे तो शेयर अवश्य करें मित्रों।
तो आइए शुरू करते हैं, उत्तराखंड की लोक कथा ,” ओखली का भूत

पहाड़ के किसी गाव में रमोती नामक एक औरत रहती थी। वो घर मे बच्चे के साथ अकेली रहती थी। उसका पति परदेश में नौकरी करता था। पहाड़ का जीवन आज भी संघर्षमय है। और प्राचीन काल मे तो बहुत ज्यादा संघर्ष था पहाड़ की जिंदगी में , पहाड़ के जीवन यापन में।

ऐसा ही संघर्षमय जीवन था ,रमोती का दिन भर खेती बाड़ी का काम ,पशुओं की देखभाल करना , पशुओं के लिए चारा लाना, शाम को खाना बनाना,खाना खिला कर बच्चों को सुला देना । दूसरे दिन के लिए उखोऊ कूटना ( मतलब ओखली में अनाज कूट कर रखना ) ओखली का कार्य ,पहले की पहाड़ी परम्परा का मुख्य अंग हुवा करता था। वर्तमान रेडीमेड अनाज आने के कारण , उखोऊ कूटने का चलन जरा कम हो गया है। पहले शाम के समय , लगभग हर आंगन में उखोऊ में दो मुसेई कंपीटिशन चला रहता था। आर्थत 2 मुसोव ( मूसल ) का प्रयोग करते हुए ,दो औरते बहुत स्पीड और दोनो मूसल को बिना आपस मे टकराये एक ही ओखली में अनाज को कूटने की क्रिया को ,दो मुसेई कहा जाता था।

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आज भी रमोती अकेले उखोऊ कूट रही थी। उखोऊ कूटते कूटते कब अंधेरा हो गया पता ही नही चला, क्योंकि चाँदनी रात थी। और छिलुक जला रखे थे। पहले जमाने मे जब दिन में टाइम नही होता था तो, रात को चाँदनी रात में ,छिलुक ( पहाड़ी मसाल, चीड़ के लकड़ियों से बनी ) धान कुटाई आदि का काम करते थे। अचानक रमोती के छिलुक बुझ गए, तो वह छिलुक जलाने पारेकी खोई ( खोई आंगन को कहते हैं ) से घर गई । किसी किसी के दो आंगन भी होते थे । इसी प्रकार रमोती के भी दो आंगन थे, एक घर के पास , दूसरा घर से थोड़ी दूर । जहाँ उखोऊ कूट रही थी,वो घर से थोड़ा दूर था।

वो घर के अंदर जैसे ही गई, बाहर ऊखल कूटने की आवाज सुनाई देने लगी। रमोती ने बाहर जाकर देखा तो एक औरत उसके उखोऊ में धान कूट रही थी। रमोती ने सोचा  पड़ोसी होगी। उसने वही से आवाज मारी , ओ धनुली दीदी , कोई जवाब नही मिला । फिर आवाज मारी ओ पनुली दीदी, फिर कोई जवाब नही मिला। वो औरत अपनी धुन में उखोऊ कूटते रही । अब रमोती को शक जैसा हुवा,उसने छिलुक ,विलुक वही छोड़े सीधे पार की खोई में गई , जहां वो औरत उखोऊ कूट रही थी, वो औरत बहुत सुंदर लग रही थी, और उखोऊ कूटे जा रही थी। इतने में रमोती ने औरत का चेहरा देखते हुए बोला , दीदी तुम जानी पहचानी तो नही लग रही हो , कौन हो और कहाँ की हो ?

तब उस औरत ने जवाब दिया ,” म्यार मुख के देखछे , म्यार खुट देख ” मतलब मेरा चेहरा क्या देख राही, मेरे पैर देख । तब रमोती ने उसके पैरों पर नजर डाली तो उसके होश उड़ गए। वो तो भूत थी, उसके पैर उल्टे थे। रमोती ने वहाँ की दौड़ सीधे गोरु के गोठ में रखी (गौशाले में छुप गई ) वहाँ गाय के पीछे छुप गई। कहते हैं गाय में देवताओं का वास होता है। इसलिए नकारात्मक शक्तियां उनसे दूर रहती है।  उधर भूत भी रमोती के पीछे पीछे , गौशाले में पहुँच गया । वहाँ उसने गाय माता से कहा कि वो रमोती को अपने साथ अपनी दुनिया मे लेके जाएगा , इसलिए  गाय तुम आगे से हट जाओ । मगर गौ माता नही मानी ,उसने कहा, कि ये मेरी शरण मे आई है, मैं इसे ऐसे ही तुम्हारे हवाले नही कर सकती । पहले मुझे हराकर दिखाओ फिर इसे ले जाना ।

उत्तराखंड की लोक कथा

भूत बोला , बताओ तुम्हे हराने के लिए क्या करना है?  गाय बोली , तुम्हे एक सरल काम देती हूँ । तुम मेरे शरीर के सारे बाल गिन दो और इसको ले जाओ। तब भूत बोला ये तो आसान काम है। अभी गिन देता हूँ। अब भूत गाय के बाल गिनने लगा, वो जैसे ही आधे बाल गिनता , तब तक गौ माता अपने शरीर मे झुरझुरी कर देती मतलब शरीर मे सिहरन पैदा कर देती , और सारे बाल मिक्स हो जाते थे। और भूत अपने गिने हुए बाल भूल जाता था । उसके बाद वो दुबारा गिनती चालू करता , फिर गौ माता सिहरन लेती फिर भूल जाता। ऐसा करते करते सुबह हो गई और भूत का समय चला गया और वो भी गायब हो गया। रमोती कि जान बच गई। गौमाता को प्रणाम करके रमोती भी अपने दैनिक कार्यों में लग गई।

दोस्तों कही कही ये उत्तराखंड की लोक कथा  इस प्रकार भी सुनाई जाती थी, कि एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था। अंधेरा हो गया तो एक आदमी उसके पास आया, किसान ने उससे पूछा आप कौन हो ? तब भूत ने बोला, म्यार मुख के देखछे , म्यार खुट देख । उसके बाद किसान गौमाता के पास छुप जाता है। उससे आगे को कहानी उपरोक्तानुसार ही है।

यहाँ भी देखें :- बुबुधाम रानीख़ेत की कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें।

नोट :- उपरोक्त कहानी उत्तराखंड की लोक कथा पर आधारित कहानी है। जो पहले या अब भी कुमाऊँ मंडल के कुछ क्षेत्रों में सुनाई जाती थी। यह एक पहाड़ी लोककथा या कुमाउनी लोक कथाओं पर आधारित है। अंधविश्वास फैलाने का हमारा कोई उद्देश्य नही हैं।

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