Sunday, April 14, 2024
Homeसंस्कृतिभाषापहाड़ी कहावतें ,कुमाउनी कहावतें और गढ़वाली कहावतें।

पहाड़ी कहावतें ,कुमाउनी कहावतें और गढ़वाली कहावतें।

इस लेख में पहाड़ी कहावतें , गढ़वाली कहावतें और कुमाऊनी कहावतें दोनों  हिंदी अर्थ के साथ लिखीं हैं।

गढ़वाली कहावतें  ( पहाड़ी कहावतें )

  • तौ न तनखा, भजराम हवालदारी । बिना वेतन के बड़ा काम करना
  • कख नीति, कख माणा, रामसिंह पटवारी ने कहाँ -कहाँ जाणा । एक ही आदमी को ,एक समय मे अलग अलग काम देना।
  • माणा मथै गौं नी, अठार मथे दौ नी । माणा से ऊपर गांव नहीं, और अट्ठारह से ऊपर दाव नही ।
  • कख गिड़की, कख बरखी । बादल कही गरजा ,कही बरसा । अर्थथात कुछ और बोलना, कुुुछ अलग करना।
  • बांजा बनु बरखन । बंजर जमीन में बरसना ,अर्थात जहां ज़रूरत ना हो वहाँ काम करना।
  • जब जेठ तापलो ,तब सौंण बरखलो । जेठ का महीना जितना तपेगा ,सावन में उतनी अच्छी बारिश होगी। अर्थात जितनी अधिक मेहनत होगी उतना अच्छा फल मिलेगा।
  • नि होण्या बरखा का बड़ा -बड़ा बूंदा । बारिश की बड़ी बड़ी बूंदे पड़ने का मतलब है ,अच्छी बारिश नही होगी।
  • भादों की छास भूत खुणी, कातिक की छास पूत खूणी। भादों की छास भूत खाते हैं, और कार्तिक की छास पूत अर्थात भादो में मौसम परिवर्तन होता है,इसलिए छास स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। और कार्तिक माह में शीत ऋतु आ जाती है, तो छास से कोई दिक्कत नही होती है।
  • गरीबिकी ज्वानी अर ह्यून्द की ज्युनी, अरकअत जाउ । गरीबी की जवानी और जाड़ो की चाँदनी बेकार जाती है।
  • बांस -बाबलू काटण ,पर आस औलाद भी देखण । घास लकड़ी बेसक काटो लेकिन आने वाली पीढ़ियों के ध्यान बजी रखो। अर्थात प्रकृति से ज्यादा छेड़ छाड़ ठीक नही है। ( पहाड़ी कहावतें )

इसे भी देखें –उत्तराखंड की झीलों में भी उतरैंगे सी प्लेन। जानने के लिए क्लिक करें।   

गढ़वाली ओखाण :-

  • त्वेते क्या होयूं गोरखाणी राज । यहाँ कोई गोरखों का राज चल रहा क्या ? जो अपनी मनमानी करोगे। गोरखा राज में उत्तराखंड में भारी अत्याचार और मनमानी की जाती थी।
  • पंच भी प्रपंची हवेगैनि । पंच भी परपंची हो गए है। अर्थात जो मुखिया है, न्याय करने वाला है ,वही बेईमान हो गया है।
  • बैसाखू और सौणयां बणिग्या पंच । मतलब अयोग्य लोग प्रतिनिधि बन गये। ( पहाड़ी कहावतें )
  • अपणी करणी, बैतरणी तारणी । अपनी मेहनत से ही अच्छा फल मिलता है। या अपने अच्छे कर्म ही साथ देते हैं।
  • अगास कैन नापि बखत कैन थापि । आसमान को कोई नाप नही सकता और समय को कोई रोक नही सकता।
  • रौत और गौथ कख नि होंदा । पहाड़ में रावत जाती के लोग और गहत की दाल हर जगह मिल जाती है।
  • बिनडी बिरवो मा मूसा नि मोरदा । ज्यादा लोगो मे काम सफल नही होते।
  • सिंटोलो की पंचेत । अयोग्य लोगो का ग्रुप या आयोग्य लोगो की मीटिंग।
  • निगुस्यो का गोरु उजाड़ जन्दन ।  बिना अभिवावक की संतान खराब होती है।
  • सूत से पूत प्यारो । बेटे से पोता ज्यादा प्यारा होता है।
  • पदाने बवारीकु नोउ तोले नथुली । अर्थात बढ़े लोगों की बड़ी बातें।
पहाड़ी कहावते
पहाड़ी कहावते (pahaadi kahawaten )

 कुमाउनी कहावतें –

  • जै जोस तै तोस ,मूसक पोथिर मूसक जस । मतलब -बच्चे के अंदर गुण अपने माँ बाप जैसे होते हैं।
  • अपूण धेई कुकुर ले प्यार। अपने घर की। खराब चीज भी अच्छी लगती है।
  • अपूण मैतोक ढुगं ले प्यार । यह कहावत ससुराल की बहू द्वारा बनाई गई है। जब उसे मायके की याद आती है,तो बोलती है , अपने मायके का पत्थर भी प्यारा लगता है।
  • मूसक आइरे गाव गाव , बिरौक हैरी खेल । चूहे की आफत आई है, बिल्ली को मस्ती आ रही है। मतलब  दूसरे की परेशानी में खुश होना।
  • बान बाने बल्द हैरेगो । हल जोतते जोतते बैल का खो जाना । अर्थात काम करते करते काम करने वाली चीज का खो जाना।
  • देखी मैस के देखण , तापी घाम के तापण। अर्थात देखा परखा हुआ इंसान क्या देखना। रोज तापी हुई धूप को रोज क्या तपना।
  • च्यल के देखचा चयलक यार देखों।   मतलब बेटे को परखना है तो उसकी संगत देेखो।
  • मडु फोकियोल आफी देखियोल। जब कुछ होगा तो सबको पता चल जाएगा।
  • जब बाघ बाकरी लीगो ,तब हुल्ल। जब नुकसान हो गया तब हल्ला करना।
  • काणि के चै नि सकन , काणि बिना रै नि सकन । अंधी का ख्याल भी नही रखते ,और अंधी के बिना रह भी नही सकते। अर्थात यह पहाड़ी कहावत नेताओ के चरित्र को चरितार्थ करती है। वो गरीब का ख्याल भी नही रखते ,और गरीब के बिना रह भी नही सकते।

कुमाउनी मुहावरे  :-

  • लगने बखत हगण । शादी के समय  टॉयलेट लगना। मतलब महत्वपूर्ण कार्य के बीच मे विघ्न।
  • रामु कौतिक  गौ कैतिके नि लाग । जिस काम के लिए गए ,उस काम का न होना।
  • मान सिंह कु मौनेल चटकाई ,पान सिंह उसाई।  बात किसी को सुनाई और बुरा किसी और को लगा।
  • सासुल बुवारी तै कोय, बुवारिल कुकुरहते कोय, कुकुरल पुछड़ हिले दी।  अर्थात आलसीपन एक ने दूसरे को काम बताया ,दूसरे ने तीसरे को ,अगले ने हामी भर कर काम नही किया।
  • हगण तके बाट चाण । जब जरूरत पड़े तब सामान खोजना।
  • नाणी निनाणी देखिनी उत्तरायणी कौतिक । नहाने और ना नहाने वाले का पता उत्तरायणी के मेले में पता लग जाता है। अर्थात झूठ बोलने वाले का सामाजिक कार्यों में पता चल जाता है।
  • पुरबक बादलेक ना द्यो ना पाणि । पूर्व के बादल से बारिस नही होती है।
  • भैसक सींग भैस कु भारी नि हूं। अर्थात माता पिता को अपनी संतान बोझ नही लगती है।
  • स्यावक भागल सींग टूट । सियार की किश्मत से सींग टूट गया। अर्थात किस्मत से कामचोर को अच्छा मौका मिल गया ।

पहाड़ी कहावतें –

  • तितुर खाण मन काव बताय । मन मे कुछ और मुह पर कुछ और।
  • कोय चेली ते , सुणाय बुवारी कु। बोला बेटी को और सुनाया बहु को।
  • च्यल हेबे सकर नाती प्यार । बेटे से ज्यादा पोता प्यारा होता है।
  • ना सौण कम ना भदोव कम। कोई भी किसी से कम नही है। दोनों प्रतियोगी बराबर क्षमता के।
  • नी खानी बौड़ी,चुल पन दौड़ि !  नखरे वाली बहु, सबसे ज्यादा खाती है।
  • द्वि दिनाक पूण तिसार दिन निपटूण ! आदर सत्कार अधिक दिन तक नहीं होता।
  • शिशुणक पात उल्ट ले लागू सुल्ट ले ! धूर्त आदमी से हर तरफ से नुकसान
  • अघैन बामणि भैसक खीर ! संतुष्ट ना होने पर मना करने का झूठा बहाना करना
  • जो घडी द्यो ,ऊ  घडी पाणी ! कई तरीको से एक साथ व्यवस्था होना।
  • भौल जै  जोगी हुनो , हरिद्वार रून ! अच्छाई  हमेशा अपने मौलिक रूप में रहती है।
  • नौल गोरू नौ पू घासक ! नए कार्य पर  जोश के साथ काम करना।
  • पिनौक पातक पाणी ! इधर की बात उधर करने वाला इंसान।
  • घर पिनाऊ बण पिनाऊ ! हर जगह एक ही चीज सुनाई देना।
  • नौ रत्ती तीन त्वाल ! अनुमान लगाना।
  • राती बयाणक भाल भाल स्वैण ! आलस्य के बहाने ढूढ़ना !
  • तात्ते खु जई मरू ! जल्दबाजी करना !
  • कभी स्याप टयोड, कभी लाकड़ ! परिस्थितियां अनुकूल ना होना।
  • अक्ले उमरेक कभी भेंट नई होनी ! अक्ल और उम्र की कभी मुलाकात नहीं होती। जब शरीर में ताकत रहती है तब अक्ल नहीं आती , और जब अक्ल आती है ,तब शरीर कमजोर पड़  जाता है।
  • गुणी आपुण पुछोड  नान देखूं ! अपने दोषों को कम बताना।
  • गऊ बल्द अमुसी दिन ठाड़ ! आलसी इंसान जब कार्य ख़त्म हो जाता है ,तब  उपलब्ध होता है।
  • का राजेकी रानी , का भगतविकि काणी ! धरती आसमान का अंतर होना।
  • कब होली थोरी , कब खाली खोरी ! आशावान रहना।
  • आफी  नैक ऑफि पैक ! सब कुछ खुद ही करना।
पहाड़ी मुहावरे –
  • दातुल  आपुणे तरफ काटू ! अपना व्यक्ति अपना साथ देता है।
  • नाइ देगे सल्ला ना, और मुनेई  भीजे दी ! बिना तयारी के काम शुरू करना।
  • निर्बुद्धि राजेक काथे काथ ! मुर्ख हमेशा चर्चा का पात्र होता है।
  • भाल भाल मरगाय और मुसक च्याल पधान ! अयोग्य का पद पर आसीन होना।
  • बांज दैगे नी सक सकी, बुरांश में चोट ! कमजोर पर ताकत दिखाना।
  • बाटमेक कुड़ी ,चाहा में उड़ी ! आसानी से उपलब्ध चीज जल्दी ख़त्म होती है।

इसे भी पढ़े –कुमाऊनी शायरी जिन्हे पारम्परिक भाषा में कुमाऊनी जोड़ कहा जाता है।

कुमाऊनी ,गढ़वाली गीतों के लिरिक्स देखने के लिए यहाँ क्लीक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments