Friday, May 9, 2025
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चल तुमड़ी बाटै बाट, कुमाउनी लोक कथा

चल तुमड़ी बाटै बाट.. उत्तराखंड की यह प्रसिद्ध लोक कथा कुमाऊँ मंडल में सुनाई जाती है। पहले हमारे दादा दादी ने हमको यह कथा सुनाई थी,आज हम आपको डिजिटल माध्यम से उत्तराखंड की लोक कथा सुनाते हैं।

दूर जंगल के पास गाव में , रामी नामक एक बुजुर्ग औरत रहती थी। रामी बुढ़िया की एक ही लड़की थी, जिसकी शादी हो चुकी थी। उसका ससुराल बहुत दूर भयानक जंगल के पार था। पहले जमाने मे गाड़ी और संचार की कोई व्यवस्था नही थी। तब घर पर पैदल जाकर ही कुशलक्षेम ली जाती थी।

एक दिन रामी बुढ़िया को अपनी बेटी की बहुत याद आ रही थी, उसको बार बार बाटुली ( हिचकी ) लग रही थी। बुढ़िया ने सोचा, एक बार मिल के आती हूँ बेटी से। तब उसने पूरी , बड़े , पुए ,सब्जी ( कुमाऊनी पकवान ) बनाई और पोटली बांध कर चल दी बेटी के ससुराल को । रामी बुढ़िया की बेटी के ससुराल को जाते समय रास्ते मे एक भयानक जंगल पड़ता था। उस जंगल मे बहुत भयानक भयानक जानवर रहते थे। इधर से बुढ़िया बेटी के ससुराल को जाते हुए, उस भयानक जंगल के बीच मे पहुँच गई, बुढ़िया को भी पता था,यहां खतरा है,वो तेज तेज जा रही थी। इतने मैं अचानक एक शेर बुढ़िया के सामने आ गया और बोला ,”बुढ़िया मी तिकें खानु ” मतलब बुढ़िया मैं आज तुझे कहूंगा ।

बुढ़िया ने कहा ,”मी यदु कमजोर है री, यू हाडिक खाण में तुमुगु स्वाद नी आल,  मी अपूण चेली वा जानी,वा पूरी,खीर साग, दै दूध खूल मोटे घोटे बे ऊल, तब तुम मिके खाया ” मतलब मैं इतनी दुबली पतली हूँ, इन सुखी हड्डियों में आपको स्वाद नही आएगा। मैं अपनी लड़की के ससुराल जा रही हूं, वहाँ पूरी कचोरी,खीर, दूध दही खाकर मोटी होकर आऊंगी, तब तुम मुझे खाना। शेर मान गया और बुढ़िया को जाने दिया । आगे जाकर बुढ़िया को भालू ,भेड़िया, और सियार मिले, बुढ़िया ने सबको यही कहा कि वो अपनी बेटी के घर जा रही, वहाँ से अच्छा खाना खा कर मोटी होकर आएगी, उसे तब खाना।

अब बुढ़िया अपनी बेटी के घर पहुच गई। वहाँ दोनो माँ बेटियों ने हँसी खुसी खाना खाया,दिन बिताए। जब बुढ़िया के वापस आने का समय हुवा ,तो बुढ़िया उदास हो गई। बेटी ने कहा अगली बार जल्दी आना माँ मिलने,तब बुढ़िया बोली , चेली ज्यून रूलो तो ऊल पे। मतलब जिंदा रहूंगी तो आऊंगी ।तब उसकी बेटी समझ गई,कोई बात तो है, जिसे मा छुपा रही है। बहुत पूछने पर बुढ़िया ने जंगल और वहां के जानवरों को किये वादे के बारे विस्तार से बताया।

रामी बुढ़िया की बेटी भी ,उसकी तरह चालाक थी। उसने अपनी माँ को बोला,”ईजा तू फिकर ना कर ” अर्थात माँ तुम चिंता मत करो । उसके बाद बुढ़िया की बेटी ने एक बड़ी गोल लौकी लि ,जिसे कुमाऊनी में तुमड़ी कहते हैं। उसे पूरा खाली करके,अपनी माँ को उसमे बिठा दिया,और साथ मे पूरी पकवान बना कर और एक पोटली देकर उसे तुमड़ी (कद्दू) में बिठा दिया । और उस कद्दू के अंदर घुस कर बुढ़िया अपने घर को चली गई।अब रास्ते मे वही भयानक जंगल था, वहां सियार ,भालू और शेर उसे खाने का इंतजार कर रहे थे।

तुमड़ी ( बड़ा कद्दू या बड़ी गोल लौकी) जैसे ही जंगल मे पहुँची तो ,सबसे पहले उसे भालू मिला , भालू ने तुमड़ी से पूछा कि तुमड़ी तुमने एक बुढ़िया को देखा क्या? जो अपनी बेटी के ससुराल गई थी, और वहां से मोटी होकर आने वाली थी। तब तुमड़ी के अंदर से बुढ़िया बोली ,”   चल तुमड़ी बाटै बाट …. मी के जाणू तेरी बुढ़ियाक बात … मतलब ,तुमड़ी अपने रास्ते पर चलती है, मुझे किसी बुढ़िया के बारे में पता नहीं है। इतना बोल कर तुमड़ी आगे बढ़ गई। आगे चलकर तुमड़ी को शेर मिला , शेर ने भी तुमड़ी से वही सवाल किया, कि तुमने बुढ़िया को देखा, जो मोटी ताज़ा होकर अपने बेटी के घर से आने वाली थी। फिर तुमड़ी ने वही जवाब दिया , चल तुमड़ी बाटै बाट …. मी के जाणु त्येरी बुढ़ियाक बात …. इतना बोल कर तुमड़ी आगे बढ़ गई।

आगे जाकर उसको चतुर सियार मिला, सियार ने भी तुमड़ी से वही सवाल किया,फिर तुमड़ी ने भी वही जवाब दिया, ” चल चल तुमड़ी बाटै बाट…… मगर ये जवाब सियार को जमा नहीं, उसकी बुद्धि खटक गई,वो बुढ़िया की आवाज पहचान गया । वो चुपचाप तुमड़ी से आगे जाकर ,तुमड़ी के रास्ते मे किला गाड़ दिया। जब तुमड़ी वहाँ पहुँची तो,किले से टकराकर ,तुमड़ी फूट गई,और बुढ़िया बाहर निकल गई। तब सियार खुश हो गया, उसने सबको आवाज लगाई,”शेर दादा ,भालू  काका जल्दी आओ ,बूढ़ी मिल गे” इतने में बुढ़िया जल्दी से सामने के पेड़ पर चढ़ गई।

चल तुमड़ी बाटों बाट

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अब सारे जानवर इक्कठा हो गए, और चिल्लाने लगे बुढ़िया नीचे उतर ,हम तुझे खाएंगे। बुढ़िया बोली, “ठीक है, मैं उतर रही हूं, तुम ऊपर को देख कर तैयार रहना, जैसे ही मैं नीचे उतरु, तुम खा लेना। जानवर बोले ,”ठीक है! और टकटकी लगा कर ऊपर बुढ़िया को देखने लगे।अब बुढ़िया ने निकाली, अपनी बेटी की दी हुई लाल मिर्च की पोटली और ऊपर से लाल मिर्च पावडर सब के ऊपर फैंक दिया। सारे जानवर लाल मिर्च की जलन से आँखें मलते रह गए।

और बुढ़िया अपने घर को भाग गई…

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फ़ोटो – साभार फेसबुक

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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