उत्तराखंड में कोटेश्वर नामक कई शिवालय हैं। इस लेख में हम रुद्रप्रयाग जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित कोटेश्वर गुफा का वर्णन कर रहें हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में जिला मुख्यालय 4 किलोमीटर आगे अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है यह गुफा। यहाँ चट्टान पर 15 -16 फ़ीट लम्बी और 2 -6 फीट ऊँची प्राकृतिक गुफा है। इस गुफा में कई शिवलिंग हैं। प्रमुख मंदिर में हनुमान जी की आदमकद मूर्ति भी है।
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कोटेश्वर गुफा का इतिहास –
इस गुफा के बारे में यह मान्यता है कि यहाँ भगवान् भोलेनाथ ने तपस्या की थी। इस स्थान पर भगवान शिव के एक करोड़ शिवलिंग होने के कारण इस स्थान का नाम कोटेश्वर पडा। 2005 से 2007 के बीच पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में यहाँ पक्की ईंटों से बना भगवान् शिव का मंदिर मिला। इस मंदिर के निर्माण का समय छठी या सातवीं शताब्दी माना गया है। कोटेश्वर मंदिर उत्तराखंड में मंडप ,गर्भगृह तथा अंतराल बनाया गया है। इस मंदिर के चौकोर मंडप की लम्बाई 6.60 *8 .80 मीटर है। कोटेश्वर मंदिर की कुल लम्बाई 13.10 मीटर है।
मंदिर से जुडी पौराणिक कथाएं –
कोटेश्वर मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार पांडवो को यहाँ भगवान् शिव तपस्यारत मिले थे। महाभारत युद्ध के बाद पांडव भगवान शिव को मुक्ति के लिए ढूंढ रहें थे। पांडवों को ढूढते -ढूढ़ते भगवन शिव के दर्शन यही हुए थे। इसके अलावा कोटेश्वर महादेव मंदिर से एक और कथा जुडी है। कहते हैं भगवान् शिव ने भस्मासुर नामक असुर को शिव ने यह बरदान दिया कि ,वो जिसके सर में हाथ रख देगा वो भस्म हो जायेगा। अपने वरदान की जाँच के लिए भस्मासुर ने भगवान् शिव के सर में हाथ रखना चाहा। तब भगवान् शिव ने अपनी जान बचाने के लिए इसी गुफा में शरण ली।
कोटेश्वर गुफा उत्तराखंड से जुडी मान्यता –
इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि संतान सुख की कामना से , निःसंतान महिलाएं ,शिवरात्रि के दिन थाली में दीप जलाकर उसे दोनों हाथ से थामकर रातभर भगवान शिव की आराधना करती है। शिवरात्रि में कोटेश्वर महादेव विशेष महत्त्व बताया गया है।
कैसे पहुंचे कोटेश्वर गुफा –
कोटेश्वर गुफा जाने के लिए देहरादून से सड़क मार्ग से रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय पहुंचकर ,वहां से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है कोटेश्वर गुफा।
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